राष्ट्रीय पार्टियों के साम, दाम, दण्ड, भेद के सामने दम तोड़ रही हैं क्षेत्रीय पार्टियां
क्षेत्रीय पार्टियों के बुरे हाल हैं। कम से कम केंद्र में भाजपा शासन आने के बाद तो क्षेत्रीय पार्टियां बिखर सी गईं हैं। या तो भाजपा के प्रभाव के आगे वे अपनी जमीन नहीं खोज पा रही हैं या भाजपा उन्हें जमीन दिखाने पर तुली हुई है।
खैर, क्षेत्रीय पार्टियों में उनके मुख्य नेता के बाद सरवाइव करने की ताकत कम ही रह जाती है। रामचंद्रन और जयललिता के बाद अन्नाद्रमुक के कई टुकड़े हो चुके। सोमवार को ही दो पूर्व मुख्यमंत्रियों का झगड़ा इतना बढ़ गया कि पलानी स्वामी ने पन्नीरसेल्वम को पार्टी से बाहर कर दिया।
केवल अन्नाद्रमुक ही नहीं, बाला साहेब के बाद की शिवसेना को देख लीजिए। कांशीराम के बाद की बसपा को देख लीजिए। द्रमुक के करुणानिधि के बाद उनके बेटे स्टालिन मुख्यमंत्री जरूर बने हैं लेकिन आगे उनकी पार्टी का क्या होगा, यह भविष्य बताएगा।

क्षेत्रीय पार्टियों का गठन और उनका विकास इसलिए हितकारी होता है क्योंकि क्षेत्रीय मुद्दों की उन्हें राष्ट्रीय पार्टियों से ज्यादा अच्छी समझ होती है। लेकिन इन क्षेत्रीय दलों का एक एक करके इस तरह बिखरना क्षेत्रीय हितों के लिए ठीक नहीं है।
द्रमुक से याद आता है यह सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी है। द्रविड मन्नेत्र कषगम का अर्थ है द्रविड़ों के विकास वाला संगठन। देश के सबसे पहले और आक्रामक अनीश्वरवादी ईवी रामास्वामी नायकर द्वारा 1926 में खड़े किए गए इस सामाजिक संगठन को आजादी के बाद पार्टी का रूप दिया गया।
नायकर के नेतृत्व में यह संगठन आजादी के पहले ब्राह्मणवाद का विरोध करता रहा। न केवल सामाजिक या जातिगत आधार पर बल्कि उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरियों में भी ब्राम्हणों की उच्चतम स्थिति और बहुलता को इस संगठन ने ललकारा। अनीश्वरवाद इस हद तक कि उत्तर भारत के आराध्यों को अपमानित करते हुए, पीटते हुए जुलूस तक निकाले गए।

राजनीतिक पार्टी के रूप में द्रमुक के संस्थापक सीएन अन्नादुरई ने 1956 में इस पार्टी को चुनाव मैदान में उतारने की घोषणा की। 1967 में आजाद द्रविड़नड के नारे के बूते द्रमुक ने तमिलनाडु में पहली बार सत्ता पाई और कांग्रेस को यहां सत्ता से पहली बार बाहर होना पड़ा।
मुख्यमंत्री अन्नादुरई के उत्तराधिकारी बने एम करुणानिधि। इस बात से खफा होकर अन्नादुरई के दूसरे चेले एमजी रामचंद्रन ने नई पार्टी अन्नाद्रमुक बना ली। तमिलनाडु की सत्ता फिर कभी द्रमुक और कभी अन्नाद्रमुक के पास रही। रामचंद्रन के निधन के बाद उनकी ब्याहता पत्नी जानकी कुछ दिन मुख्यमंत्री रहीं। फिर यह जगह रामचंद्रन की करीबी रहीं जयललिता ने ले ली।
जयललिता की मृत्यु के बाद अन्नाद्रमुक के कई फाड़ हो गए। एक धड़ा है जिसे जयललिता की करीबी रही शशिकला हांकती हैं। दूसरे के नेता पन्नीरसेलवम (ओपीएस) हैं और तीसरे धड़े के नेता पलानीस्वामी (ईपीएस) हैं। सोमवार को पलानीस्वामी ने पन्नीर सेल्वम को हटाकर खुद को अन्नाद्रमुक का मुखिया घोषित कर दिया। पलानीस्वामी को भाजपा समर्थक माना जाता है।

उधर भाजपा समर्थक शिवसेना धड़े (शिंदे) को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली। इस धड़े के सोलह विधायकों की अयोग्यता का मामला टाल दिया गया है। इस बीच गोवा में कांग्रेस के 11 में से छह विधायक भाजपा की तरफ जाते दिख रहे हैं। यानी यहां भी विपक्ष लगभग खत्म होने वाला है। पंजाब में अकाली दल और हरियाणा में इनेलो की स्थिति सबके सामने आ ही चुकी है।