वरुण गांधी का कॉलम:नौकरियों व भर्तियों की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर सुधार जरूरी

आंध्र प्रदेश में 1998 में जिला चयन समिति की परीक्षा पास करने वाले 4,500 उम्मीदवारों को अब जाकर सरकारी स्कूलों में बतौर शिक्षक नियमित नौकरी की पेशकश की गई है। नौकरी की आस में इन लोगों के 24 साल बेकार चले गए और इनमें से ज्यादातर इस दौरान सेवानिवृति के करीब पहुंच गए।

दरअसल, कुछ सरकारी पदों के लिए भर्ती एक थकाऊ और अंतहीन प्रक्रिया हो गई है। पटना के जय प्रकाश विश्वविद्यालय में छात्रों को स्नातक होने के लिए लंबे इंतजार से गुजरना पड़ रहा है। यह इतंजार कुछ के लिए छह साल से भी लंबा हो गया है। शिक्षकों की कमी, वेतन में लेट-लतीफी और कोविड जैसी वजहों से परीक्षा में देरी हो रही है।

हजारों छात्र किराए के आवास में रहते हुए पढ़ाई पूरी करने का इंतजार कर रहे हैं। विडंबना यह कि कुछ छात्रों ने अपने छोटे भाई-बहनों को खुद से पहले स्नातक होते देखा है। उच्च शिक्षण संस्थानों में परीक्षा से जुड़ी देरी अब सामान्य बात हो गई है। जेईई मेंस 2022 की परीक्षा में इस साल पहले ही कुछ महीनों की देरी हो चुकी है।

मगध विश्वविद्यालय के छात्रों ने परीक्षा आयोजित करने में बार-बार देरी से आजिज आकर इसी साल मई में विरोध प्रदर्शन किया। आम्बेडकर विधि विश्वविद्यालय और पांडिचेरी विश्वविद्यालय के छात्र भी इस देरी के भुक्तभोगी हैं। कई छात्रों के लिए स्नातक में देरी का मतलब प्लेसमेंट ऑफर के रद्द होने जैसा है।

भर्ती परीक्षाओं की तैयारी के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं। पंजीकरण शुल्क आसमान छू रहा है। जम्मू-कश्मीर राज्य सेवा बोर्ड (एसएसबी) ने बेरोजगार युवाओं से मार्च 2016 से सितम्बर 20 के बीच 77 करोड़ रु. इकट्ठा किए, जबकि उन्हें आज भी परीक्षाओं और उनसे मिलने वाली नौकरियों का इंतजार है।

रेलवे ने लगभग 2.41 लाख आवेदनों से आरआरबी-एनटीपीसी और ग्रुप-डी परीक्षाओं (2019) के लिए 864 करोड़ रु. एकत्र किए। जब तक कोई अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल हो, तब तक जेब पूरी तरह ढीली हो चुकी होती है। इस तरह के निर्मम आर्थिक दोहन के बाद परीक्षाओं में देरी का आलम स्थिति को और गंभीर बना देता है। रेलवे की नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए 2019 में 1.3 लाख पदों के लिए ग्रुप डी की अधिसूचना के बाद से इसकी परीक्षा के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा।

आलम यह है कि नतीजे आ जाने के बाद भी उम्मीदवारों को नौकरी मिलने की आस नहीं बंधती। एसएससी जीडी 2018 के मामले को ही लें। सीएपीएफ में (सितम्बर 2020 तक) एक लाख से ज्यादा रिक्तियां थीं और ये ज्यादातर कांस्टेबल ग्रेड में थीं।

52 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया और आखिर में जाकर 60,210 नौकरियों की पेशकश की गई। रिक्तियों को पहले से न भरे जाने के बाद एसएससी जीडी 2021 के तहत महज 25,271 पदों के लिए परीक्षा ली गई। 2018 के उन 4,295 उम्मीदवारों- जो पहले ही परीक्षा पास कर चुके हैं- पर कोई विचार नहीं किया गया।

कई मोर्चों पर संरचनात्मक सुधारों की दरकार है। सबसे पहले परीक्षा प्रक्रिया सुधारनी होगी। आर्थिक रूप से कमजोर उम्मीदवारों को शुल्क में छूट मिले। ऑनलाइन परीक्षाएं राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित हों। एक ही दिन कई परीक्षा होने की कठिनाई दूर करने के लिए एकीकृत कैलेंडर बने।

सरकारी भर्ती के लिए हर मंत्रालय को विभिन्न विभागों से अनुरोध करना चाहिए कि वे निर्धारित तिथि से तीन दिन के भीतर अपने यहां मौजूदा रिक्तियों की सूची तैयार करें और जमा कराएं। अनुमोदित सूची के प्रकाशन में विलंब होने पर कसूरवार विभागों को प्रशासनिक खर्चों में कटौती करनी होगी। किसी अप्रत्याशित घटना के कारण परीक्षा रद्द होने की सूरत में आवेदकों को पात्रता व आयु मानदंड में छूट मिलनी चाहिए।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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