गरीबी घट रही है तो भला कुपोषण कब तक रहेगा ..!

कन्सर्न वर्ल्डवाइड एक आइरिश एनजीओ है, वहीं वेल्थुंगरहिल्फे जर्मन एनजीओ है। वे 2006 से ग्लोबल हंगर इंडेक्स प्रकाशित कर रहे हैं। 2022 के इंडेक्स में भारत को 107वां स्थान दिया गया है, जबकि तालिका में 121 देश थे। इसमें शक नहीं कि भारत को पांच या उससे कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की स्थिति के प्रति सचेत रहना चाहिए, लेकिन ग्लोबल हंगर इंडेक्स के लिए भी यह कम चिंता का कारण नहीं होना चाहिए कि वे कुपोषण की व्याख्या भुखमरी की तरह करके दुनिया को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं।

इंडेक्स का निर्माण जिन चार मानदंडों पर किया जाता है, उनमें से केवल एक ही पूरे देश के लिए है, बाकी के तीन पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों के लिए हैं। तब इसे ग्लोबल हंगर इंडेक्स क्यों कहा जा रहा है? वास्तव में यह ग्लोबल चिल्ड्रंस न्यूट्रिशन इंडेक्स है। इसके जिस एक मानदंड में सभी वयस्कों का आकलन किया जाता है, वह भी दोषपूर्ण है।

सर्वे की सेम्पल साइज मात्र 3000 है और उसके आधार पर सवा अरब आबादी वाले देश के बारे में निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं। क्या बच्चों में कुपोषण को सम्पूर्ण आबादी में भुखमरी की तरह प्रदर्शित किया जा सकता है? इंडेक्स में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया कि देश की सकल आबादी के लिए प्रति व्यक्ति कितनी मात्रा में अनाज की उपलब्धता है। अगर वह आंकड़ा जुटाया जाता तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता।

इसमें संदेह नहीं है कि बच्चों में कुपोषण के कारण उनका कद और वजन बढ़ नहीं पाता और वे असमय मृत्यु के शिकार होते हैं। लेकिन भूख के पैमाने इससे अलग हैं। भारत जैसे देश में भूख का आकलन करना सरल नहीं। हमारे यहां खाद्य सामग्रियों पर सबसिडी दी जाती हैं, मुफ्त राशन दिया जाता है और खाने-पीने की चीजों की किल्लत को कम करने के लिए कैश ट्रांसफर है।

अनेक वर्षों से भारत खाद्य सामग्रियों का निर्यातक है तो भोजन की किल्लत का तो प्रश्न ही नहीं उठता। मुख्य समस्या है उन परिवारों तक किफायती दरों पर भोजन पहुंचाना, जिन्हें सबसिडी के द्वारा कवर नहीं किया गया है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कांग्रेस पार्टी की 100वीं वर्षगांठ पर 1985 में कहा था कि एक रुपए में से केवल 15 पैसे गरीब तक पहुंच पाते हैं। बीच के 85 पैसे बिचौलियों के द्वारा हजम कर लिए जाते हैं।

डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर और भुगतान की इस जैसी अन्य डिजिटल रीतियों से यह स्थिति बदल गई है। अब प्राप्तकर्ता तक पूरे रुपए पहुंच रहे हैं, उनमें बीच में सेंध नहीं लगाई जा रही है। यही कारण है कि भुखमरी से होने वाली मौतों में बीते कुछ सालों में तेजी से गिरावट आई है। सरकार के मुताबिक, भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम चला रहा है। इसके बावजूद बच्चों में कुपोषण की समस्या पर कोई कार्रवाई करना जरूरी हो गया है।

इसका सम्बंध बौद्धिक विकास और सीखने की क्षमता में क्षति से भी है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन जीने की स्थितियों में सुधार नहीं आ पाता। यह एक दुष्चक्र है। बचपन में कुपोषित और बड़े होने पर अल्पशिक्षित होने के कारण एक बड़ी आबादी गरीबी से बाहर नहीं आ पाती है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के बाद यूएन ने एक और सर्वेक्षण प्रकाशित किया था, जिसके मुताबिक भारत में 2005-06 में 55.1 प्रतिशत आबादी गरीब थी, लेकिन 2019-2021 तक यह आंकड़ा घटकर 16.4 प्रतिशत हो गया है।

भारत में गरीबी घटने को यूएन ने एक ऐतिहासिक परिवर्तन निरूपित किया है। यूएन डेवलपमेंट प्रोग्राम और ऑक्सफोर्ड पावर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव ने एक मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स बनाया है। उसकी रिपोर्ट स्वीकार करती है कि भारत ने गरीबों को उनकी दशा से उठाने के लिए बड़ी प्रतिबद्धता और नेतृत्वशीलता का परिचय दिया है।

चूंकि कुपोषण का सीधा सम्बंध गरीबी से है, इसलिए आप मान सकते हैं कि कुपोषण के आंकड़ों में भी देर-सबेर सुधार होगा ही। ग्लोबल इंडेक्स को भारत में भूख के बजाय पोषण की वस्तुस्थिति के बारे में निष्कर्ष निकालने चाहिए।

भारत ने गरीबों को उनकी दशा से उठाने के लिए बड़ी प्रतिबद्धता का परिचय दिया है। कुपोषण का सम्बंध गरीबी से है, इसलिए आप मान सकते हैं कि कुपोषण के आंकड़ों में भी देर-सबेर सुधार होगा ही।

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