चंबल का सीना छलनी कर रहा खनन माफिया …!

खनन माफिया बंदूकों की नोक पर नदी का सीना चीरने में लगे हैं, जो चंबल के लिए बन गए हैं खतरा …

देश के तीन राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश व राजस्थान में बहने वाली चंबल नदी की गिनती देश की सबसे कम प्रदूषण वाली नदियों में की जाती है। मप्र के इंदौर के पास मऊ की जनापाव पहाड़ी से प्रारंभ होने वाली चंबल नदी के बारे में पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है कि श्रापग्रस्त चम्बल में कभी पशुओं की बलि दी जाती थी। इसके किनारे जानवरों की खालों को सुखाया जाता था, जिसके चलते हजारों सालों तक चम्बल के आसपास नगरों का विकास नहीं हुआ। यही अभिशाप इस नदी की पवित्रता की बड़ी वजह बना रहा। प्रदूषण के लिहाज से नदियों को बड़ा खतरा धार्मिक कर्मकाण्डों से भी होता रहा है। चंबल अब तक इससे अछूती थी, लेकिन गंगा और यमुना की तरह अब चंबल नदी के आसपास मानवीय गतिविधियाें के बढ़ने से उसका भी आंचल मैला होने लगा है। नदी में अवैध रेत उत्खनन, प्रदूषण व अतिक्रमण दिनों-दिन बढ़ रहा है जिससे चंबल नदी खतरे में है। 965 किलोमीटर लंबी चंबल नदी के 625 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय घड़ियाल अभयारण्य घोषित कर रखा है। वर्ष 2022 में हुई जलीय जीवों की गणना के मुताबिक चंबल अभयारण्य में 2014 घड़ियाल, 868 मगरमच्छ व 71 डाल्फिन मौजूद हैं, लेकिन नदी में दस मीटर से कम पानी होने के कारण जलीय जीव-जंतु सुरक्षित नहीं हैं। घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन और कछुए की प्रजातियां खतरे में हैं। नदी में अवैध रेत खनन का कारोबार दिनों-दिन फलफूल रहा है। खनन माफिया रात के अंधेरे में बंदूकों की नोक पर नदी का सीना चीरने में लगे हैं, जो चंबल के लिए खतरा बन गए हैं। यह स्थिति तब है, जब सरकार के स्तर पर चंबल में पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास हो रहे हैं। इन प्रयासों के बीच चंबल को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें सरकार की नाक के नीचे होना अत्यंत निराशाजनक है। सरकार का चुपचाप बैठे रहना अखरने वाला है। ऐसा ही होता रहा तो एक दिन चंबल का नामोनिशान मिट जाएगा। वह दिन इस नदी पर निर्भर लाखों जीवनों के लिए त्रासदीपूर्ण होगा। इसलिए जरूरत है कि तीन राज्यों की जीवनदायिनी नदी चंबल को बचाने के व्यापक स्तर पर प्रयास किए जाएं। सरकार प्रयास करे, इसके साथ ही अधिकारियों को भी पूरी भावना व दायित्व के साथ कर्त्तव्य निभाना होगा। विशेषकर खनिज व वन महकमे को हरकत में आना होगा। अभी खनिज विभाग की छवि अच्छी नहीं है। मिलीभगत के आरोप उस पर लगते हैं। ये आरोप सही नहीं भी हों, तो भी यह तो सच है ही कि दायित्व बोध की तो उनमें बहुत कमी है। चंबल के लिए इस कमी को दूर करना होगा।

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