बाधाओं को सहजता से पार करने की प्रेरक यात्रा …!

पुस्तक लक्ष्य पर नजर रखते हुए धैर्य के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करती है …

आशा, प्राप्ति की तड़प एवं इस बीच उदासी, निरंतर संघर्ष, लक्ष्य प्राप्ति का उत्साह, अप्राप्त की शालीन स्वीकार्यता और उसके साथ समानांतर किसी ओर चल रही जलन की अनुभूति। यह सार है -‘वेल प्लेड : फ्रॉम हियर टू इटर्निटी’ पुस्तक का जो राजस्थान के अलवर में जन्मे डॉ. जगदीश प्रसाद बगरहट्टा के जीवनकाल में घटित विभिन्न घटनाओं को लेकर उनके पुत्र और हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. राजीव बगरहट्टा ने लिखी है। इस पुस्तक में कला व विज्ञान के सामंजस्य और उससे जुड़ी सृजनात्मकता को बहुत ही रोचक, लेकिन गंभीरतापूर्वक उकेरा गया है।

इस पुस्तक में डॉ. बगरहट्टा के 1933 में जन्म से लेकर 2014 तक के जीवन काल में घटित विभिन्न घटनाओं, संघर्ष, आशा, विश्वास एवं कुछ अनूठा करने के प्रयासों को प्रस्तुत किया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे एक कला संकाय का विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज में शोधकर्ता एवं तत्पश्चात् संकाय सदस्य के रूप में अपना स्थान बनाने में सफल हो जाता है। इस पूरी पुस्तक में जगदीश के डॉ. जगदीश बनने की यात्रा का उल्लेख है। साथ ही इसमें विभिन्न व्याधियों, क्षणिक उदासी एवं फिर लक्ष्य प्राप्ति के लिए किए गए निरंतर प्रयासों से युवा पीढ़ी को परिचित कराया गया है एवं निराशा से दूर रहने का संदेश दिया गया है। बहुत सारे मिथक एवं वर्जनाओं को तोड़ते हुए सामाजिक सम्बंधों एवं प्रचलित व्यवस्थाओं के विरुद्ध डॉ. जगदीश के प्रयासों का वर्णन करने का प्रयास किया गया है। जगदीश के उन्नयन एवं परिवर्तन के पीछे की प्रेरणा, अंतर्दृष्टि, ललक एवं दूरदृष्टि का अति सुंदर रूप से वर्णन है।

अध्याय 1 का पृष्ठ 174 जीवनसार के रूप में जीवन में कुछ चाह रखने वालों का मार्गदर्शन करता है। इसमें लेखक ने जगदीश के दर्शन, ‘चाहने वाले जीवन के प्रति निर्णय नहीं चित्रित करते। वे अपनी पहचान आक्रोश या विवशता से नहीं बनाते। यदि कोई कष्ट है तो वे अपने बनाए हैं एवं जीवन सफर अपना स्वयं का है। जब वे थक जाते हैं, ध्यान चूक जाते हैं तो अपने लिए वे बड़े और खतरनाक लक्ष्य तय कर लेते हैं।’ जीवन के सफर में आई अनेकानेक बाधाओं को जिस सहजता, दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास के साथ जगदीश ने पार किया, वह प्रेरणादायी है। जगदीश के जीवन में घटित हर महत्त्वपूर्ण घटना हार न मानने का संदेश देती है।

पुस्तक में जहां परिवार के सहयोग को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है, वहीं अध्याय-8 में स्नेहिल परिजनों के बीच घटित नकारात्मक घटना का उल्लेख भी सहज भाव से किया गया है। परिवार के लिए समर्पित जगदीश की प्रगति में मुख्य किरदार काका और शशि प्रभा के बारे में उल्लेख करते हुए उनके करुणामयी भाव को प्रस्तुत करने का प्रयास भी यहां किया गया है। संभवतया, लेखक जगदीश की व्यावसायिक उपलब्धियों पर ज्यादा केन्द्रित रहे, इस कारण पात्र की पत्नी शशि प्रभा के समर्पण, सहयोग, एकाकी जीवन, त्याग को अपनी पुस्तक में पूर्ण न्याय नहीं दे पाए। जगदीश के उन्नयन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका शशि की रही, जिन्होंने परिवार को आगे बढ़ाया, सामाजिक दायित्व पूरे किए एवं कोई चाह नहीं रखी। उन्होंने साबित किया कि पुरुष के व्यक्तित्व निर्माण में महिला की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अपने छात्रों, साथियों, शहरवासियों एवं सभी सम्पर्क में आने वालों को प्रभावित करने वाले जगदीश के विभिन्न प्रसंगों में इस मिथक को तोड़ने का भी प्रयास किया गया है कि राजनीतिक व्यक्ति प्रगति में सहयोगी नहीं होते।

एक सतत छात्र के रूप में जगदीश ने हर अवसर को भुनाया और उसका लाभ आमजन तक पहुंचाया। कला के इस छात्र ने जीव विज्ञान को अत्यन्त गहराई से समझा। एक प्रसंग में उनके द्वारा अमरीका के विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में डॉ. फिलिप विलसन के साथ पत्राचार का उल्लेख करते हुए यह संदेश भी दिया गया है कि तथ्यों को छिपाएं नहीं, कमियों को स्वीकार करें, इससे मार्ग प्रशस्त होगा, न कि अवरुद्ध। दिन में डॉक्टर, दोपहर में भौतिक शिक्षक और सांझ पड़े सामाजिक कार्यकर्ता का जीवन जीने वाले इस व्यक्तित्व में विरोधियों का मन जीतने की कला भी थी।

शहर के वर्णन से प्रारम्भ पुस्तक का अंतिम अध्याय डॉ. जगदीश बगरहट्टा के उत्तरार्द्ध को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करता है, जिसमें बताया गया है कि जीवट वाला व्यक्ति भी कैसे लाचार महसूस करने लगता है। यह वर्णन अत्यन्त संवेदनशील एवं हृदय को छू लेने वाला है। यह पुस्तक अत्यंत प्रेरणादायी है, जो लक्ष्य पर नजर रखते हुए धैर्य के साथ कार्य करने और कभी न हार मानने के लिए प्रेरित करती है।

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