हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई, लॉन्चिंग के 4 महीने बाद भी एमबीबीएस छात्रों तक नहीं पहुंचीं हिंदी में किताबें

ऑर्डर का इंतजार:हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई, लॉन्चिंग के 4 महीने बाद भी एमबीबीएस छात्रों तक नहीं पहुंचीं हिंदी में किताबें
30 हजार से ज्यादा किताबें छपने के बाद भी गोदाम में पड़ी हैं …

मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में कराने की कवायद दम तोड़ती नजर आ रही है। आलम यह है कि किताबों की लॉन्चिंग को 4 महीने से भी ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन प्रदेश के किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज की लाइब्रेरी में यह किताबें नहीं पहुंच पाई हैं। ऐसा नहीं है कि हिंदी की किताबें उपलब्ध नहीं है, बल्कि सरकार की ओर से इन किताबों की खरीदी के लिए दिए गए बजट में लेटलतीफी से यह स्थिति बनी है।

यही वजह है कि 30 हजार से ज्यादा किताबें छपने के बाद भी प्रकाशक के गोदाम में भरी हुई हैं। गौरतलब है कि मप्र सरकार ने मेडिकल की पढ़ाई हिंदी कराने के लिए तीन विषय एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री की किताबों को हिंदी में तैयार कराया है। इन किताबों का भव्य विमोचन 16 अक्टूबर 2022 को लाल परेड ग्राउंड में किया गया था, लेकिन इसके बाद से अब तक न किताबें स्टूडेंट्स के पास नहीं पहुंच सकी हैं।

भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज की लाइब्रेरी में भी नहीं हैं किताबें

एमबीबीएस का मौजूदा सत्र नवंबर में शुरू हो चुका है। यदि भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) की बात करें तो यहां प्रथम वर्ष में 250 छात्र हैं। पिछला सत्र देर से शुरू हुआ ऐसे में उक्त सत्र के 250 छात्र भी पढ़ाई कर रहे हैं, यानी कि अभी एमबीबीएस के 500 छात्र-छात्राएं हैं। लेकिन, लाइब्रेरी के लिए अभी तक किताबों की खरीदी नहीं की गई है। लोकार्पण के लिए आई किताबों में से ही चंद किताबें हैं, जो देश के वीवीआईपी को भेजने के लिए हैं।

3 किताबों के 8 वॉल्यूम, 6 ही छपवाईं

जो 3 किताबें हिंदी में बनवाई हैं, उनमें एनॉटोमी के 3 वाल्यूम, फिजियोलॉजी के 3 और बायोकेमिस्ट्री के 2 वॉल्यूम हैं। पब्लिशर्स ने इन 3 विषयों के 6 वाल्यूम के 5-5 हजार के हिसाब से 30 हजार किताबें छपवाई हैं। एक किताब की औसत कीमत 950 रुपए है। इस तरह दो करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं, लेकिन किताबें गोदाम में पड़ी हैं। यही वजह है कि बाकी के दो वाल्यूम की किताबें तैयार होंगी भी या फिर नहीं यह अभी तय नहीं हैं।

किताबों की खरीदी में बजट का रोड़ा

जीएमसी सूत्रों की मानें तो पब्लिशर्स जब भी जिम्मेदारों से किताबों की खरीदी के लिए संपर्क करता है, अधिकारी बजट का अभाव बताकर मामले को टाल देते हैं। अभी तक विभाग की ओर से हिंदी की किताबों की खरीदी के लिए अलग से कोई बजट दिया ही नहीं गया है। ऐसे में जो छात्र हिंदी की किताबें पढ़ना चाहते हैं उनको लाइब्रेरी में किताबें ही नहीं मिल पा रही हैं।

यह थी योजना

किताबों को तैयार करने के दौरान ही यह बताया गया था कि इन किताबों को प्रदेश के सभी 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों की लाइब्रेरी में उपलब्ध कराया जाएगा। ताकि, छात्र यहां से इन किताबों को अलॉट कराकर पढ़ाई कर पाएं। कॉलेज में जितने छात्र हाेते हैं उसके हिसाब से 20 से 30 प्रतिशत की संख्या में किताबें रखी जाती हैं। इस तरह एक विषय की कम से कम 100 किताबें (एक किताब के तीन वॉल्यूम तो 300 किताबें) रखी जानी चाहिए थीं।

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