मैली गंगा ,मैडल और महामहिम
मैली गंगा ,मैडल और महामहिम
राम की गंगा मैली है , मैली थी नहीं ,हो गयी है । पापियों के पापों को धोने से भी और बेशर्मी से अपशिष्ट बहाने से भी । अब इसी गंगा में सरकार को जगाने के लिए देश के खिलाड़ी अपने मैडल बहाना चाहते थे,लेकिन भला हो नरेश टिकैत का कि उसने खिलाड़ियों को ऐसा न करने के लिए मना लिया। खिलाड़ी समझदार हैं,संवेदनशील हैं ,इसलिए मान गए । यदि वे भी हमारी सरकार की तरह संज्ञाहीन और असंवेदनशील होते तो शायद नहीं मानते।
देश के शारीरिक सौष्ठव के खिलाड़ी सत्तारूढ़ दल के एक सांसद के खिलाफ कार्रवाई को लेकर एक लम्बे समय से जंतर-मंतर पर गांधीवादी तरीके से अपनी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहे है। किन्तु सरकार को खिलाड़ियों का ये गांधीवादी तरीका प्रभावित नहीं कर पाया। गांधी और गांधीवादी दृष्टिकोण से सरकार और सरकार में बैठे लोग शायद कभी प्रभावित होते भी नहीं हैं। वे तो लाठीवादी लोग है। माफीवीर सावरकरवादी लोग हैं। विरोध के लिए यदि कोई लाठीवादी या सावरकरवादी तरीका आजमाया जाता तो मुमकिन है कि खिलाड़ियों की मांगें मान ली जातीं।
खिलाड़ी सरकार से आसमान के तारे नहीं मांग रहे। वे एक कदाचारी सांसद की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। सरकार के लिए सांसद को गिरफ्तार करना अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ लगता है। हमारी सरकार अपनी प्रतिष्ठा का बहुत ख्याल रखती है ,इतना ख्याल रखती है कि देश के राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति की प्रतिष्ठा को भी मिट्टी में मिला देती है। खिलाड़ी शायद इस सच्चाई से वाकिफ नहीं हैं। नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में देश के राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति को टके सेर न बूझने वाली सरकार खिलाड़ियों को क्यों पूछने लगी ?
सरकार सबको साथ लेकर सबका विकास करने वाली सरकार है। सब में खिलाड़ी शायद शामिल ही नहीं है। सबमें सांसद शामिल हैं। उनकी प्रतिष्ठा के लिए सरकार कुछ भी कर सकती है सिवाय गिरफ्तारी को छोड़कर। सरकार ने सांसद के खिलाफ पास्को क़ानून के तहत मामला दर्ज कर लिया यही क्या कम है ? ये मामला आपके या मेरे खिलाफ दर्ज किया गया होता तो दिल्ली की शाही पुलिस हमें या आपको कभी भी दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का पड़ौसी बना देती। सरकार अपने सांसदों को छोड़कर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है फिर चाहे वो दिल्ली के उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसौदिया हों या और कोई। लेकिन सांसद बृजभूषण नारायण सिंह गिरफ्तार नहीं किये जा सकते। मुमकिन है कि उनकी गिरफ्तारी से कयामत आ जाए !
सरकार की हठधर्मी से निराश याची खिलाड़ी देश के लिए दुनिया बाहर में हुई प्रतियोगिताओं में जीते पाने पदक गंगा नदी में प्रवाहित करना चाहते थे। मै इसके खिलाफ हू। गंगा पाप धोने और लाशें बहाने के लिए है । पदक बहाने के लिए नहीं। ये पदक किसी बेशर्म सरकार ने नहीं दिए । इन्हें जीता गया है। अपना कस-बल लगाकर। इन्हें बहाने की नहीं बल्कि दिखाने की जरूरत है। गंगा में यदि कुछ बहाकर विरोध प्रदर्शन करना ही है तो गूंगी-बाहरी और अंधी सरकार को बहाओ। जन प्रतिनिधियों को प्रवाहित करो। शायद गंगा इन्हें अंगीकार कर ले। मुझे लगता है कि जो लोग चुल्लू भर पानी में डूब कर नहीं मरते उन्हें हमारी गंगा मान भी शायद ही समाप्त कर सके।
भारत विश्वगुरु है। हमारे प्रधानमंत्री जी विश्वात्मा हैं। लेकिन उनके रहते इस देश में विरोध प्रदर्शन के लिए कोई जगह नहीं है । वे विरोध प्रदर्शन करने वालों को छकाते है। उनसे शहादत मांगते हैं। देश के किसानों ने बलिदान दिया । सैकड़ों की जान गयी। साल भर से ज्यादा का वक्त लगा। तब कहीं जाकर सरकार ने किसान कानून वापस लिया ,लेकिन जो वचन दिए थे वे आजतक नहीं पूरे किये। खिलाड़ियों के साथ भी ऐसा ही बर्ताव किया जा रहा है । अभी विरोध प्रदर्शन करने वाले खलाड़ी छके नहीं है। पस्त नहीं हुए हैं। वे लड़ रहे हैं,गांधीवादी तरीके से लड़ रहे हैं। उन्हें लड़ते रहना पडेगा ,मै तो कहता हूँ कि वे अपनी लड़ाई के लिए चुनाव भी लड़े। जीतें या हारें ,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है न लड़ने से। जो लड़ेगा,वो एक दिन जीतेगा भी। खिलाड़ी भी जीतेंगे। सरकार हारेगी। सांसद बृजभूषण को गिरफ्तार होना पडेगा। जेल जाना पडेगा। खिलाड़ियों को पीटने से कुछ होने वाला नहीं है।
खिलाड़ियों की लड़ाई में केवल खांप पंचायतों के शामिल होने से काम नहीं चलने वाला । खिलाड़ी केवल खांप की धरोहर नहीं है। वे देश के खिलाड़ी है। पूरे देश को उनके साथ खड़े होकर लड़ाई को तेज करना होगा। जो देश केवल अपने नेताओं के पीछे खड़ा होता है वो देश पिछड़ जाता है । देश को नेताओं के अलावा अपने खिलाड़ियों,कलाकारों ,साहित्यकारों के साथ भी खड़े होने की आदत डालना चाहिए ,क्योंकि देश सिर्फ नेताओं से नहीं पहचाना जाता। देश की पहचान संकीर्ण नेताओं के नेतृत्व से नहीं बनती । ये देश आज भी गांधी और नेहरू की वजह से दुनिया में पहचाना जाता है न कि 9 साल से देश का नेतृत्व कर रहे नरेंद्र मोदी की वजह से। खिलाड़ी निराश न हो। एक न एक दिन देश के प्रथम नागरिक से लेकर दुसरे नागरिकों की आत्मा जागेगी । वो सरकार से खिलाड़ियों कि मांगों के बारे में हस्तक्षेप करने को कहेगी। आखिर महामहिम कोई रबर या लकड़ी से बने नहीं हैं। उनके भीतर भी वे सभी पंचतत्व हैं जिनसे एक भला इंसान बनता है। वे बोलेंगे,अवश्य बोलेंगे। उनकी बात को सुनना पडेगा सरकार को। अमृतकाल में विश ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सकता।