विपक्षी एकता के लिए अब तक क्या हुआ ..?

विपक्षी एकता के लिए अब तक क्या हुआ, किन मुद्दों पर बनी सहमति, 23 की बैठक के बाद क्या होगा?
साल के अंत तक पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है। वहीं, अगले साल की शुरुआत में देश में लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सियासी पारा हाई होना स्वभाविक है। इससे पहले विपक्षी दलों में एकजुटता की कोशिशें तेज हो गई हैं। 23 जून को पटना में इससे जुड़ी एक बड़ी बैठक बुलाई गई है।

इस बैठक कांग्रेस, जेडीएस, राजद से लेकर टीएमसी, सपा, डीमके तक के नेता मौजूद रहेंगे। बैठक में गठबंधन की रूपरेखा तैयार हो सकती है। ये भी तय होगा कि सीटों का बंटवारा कैसे होगा? कैसे भाजपा को घेरना है इसको लेकर भी मंथन होगा। आइए इस बैठक के एजेंडे और इसके असर के बारे में समझते हैं …

विपक्षी एकजुटता के लिए अब तक क्या हुआ?
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ हुई मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी की बैठक में विपक्षी एकजुटता को लेकर कई बिंदुओं पर सहमति बनी है। अब उसी फॉर्मूले के सहारे विपक्ष के अन्य दलों को एकसाथ लाने की कोशिश हो रही है। इस फॉर्मूले पर अंतिम मुहर तब लगेगी जब एकसाथ सारे विपक्षी दलों के नेता बैठक करेंगे।’ इस फार्मूले में जो ये अहम बिंदु हैं…
1. भाजपा के खिलाफ वैचारिक एकजुटता: नीतीश कुमार ने खरगे और राहुल से मुलाकात के दौरान ये बात कही थी। उन्होंने कहा था कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष को वैचारिक तौर पर एकजुट होना होगा। कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनपर विपक्ष की राय एक है। इन्हीं मुद्दों के सहारे सभी को एक होकर भाजपा से लड़ना होगा। राहुल और खरगे ने भी इसे स्वीकार किया।

2. विपक्षी एकता की अगुआई कांग्रेस करे: नीतीश ने ही इसका प्रस्ताव भी रखा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को ही विपक्ष के सभी दलों की अगुआई करनी चाहिए, लेकिन इसमें कहीं से भी ये न लगे कि किसी दल की उपेक्षा की जा रही है। सभी के सम्मान का ख्याल रखना चाहिए।

3. चुनाव में सीट बंटवारे का फॉर्मूला: नीतीश ने कहा कि चुनाव के वक्त जिस पार्टी का जिस भी राज्य या क्षेत्र में दबदबा हो वहां उसे लीड करने दिया जाए। मसलन बिहार में राजद-जदयू का प्रभाव है। ऐसे में यहां की ज्यादातर सीटों पर इन्हीं दो पार्टियों के उम्मीदवार उतारे जाएं। इसके अलावा अन्य पार्टी जिसका कुछ जनाधार हो, उन्हें भी कुछ सीटों पर मौका दिया जाए।

इसी तरह यूपी में सपा को ज्यादा सीटें दी जा सकती हैं। राजस्थान-छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस लीड कर सकती है। जहां विवाद की स्थिति बने, वहां आपस में बैठकर मसला हल किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि इस फॉर्मूले के दम पर विपक्ष 543 लोकसभा सीटों में से करीब 450 सीटों पर सीधे मुकाबले की तैयारी कर रहा है।

मुद्दे जिन पर विपक्ष की एक राय है

1. विपक्षी दलों पर जांच एजेंसियों की कार्रवाई: इस वक्त सोनिया गांधी-राहुल गांधी से लेकर केसीआर, तेजस्वी यादव, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल तक कई मामलों में फंसे हुए हैं। ये एक ऐसा मुद्दा है, जिसको लेकर सभी दलों की राय एक है। सभी ने इसके खिलाफ सरकार पर हमला बोला है।

2. अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर: विपक्ष ने लगातार आरोप लगाया है कि सरकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ काम कर रही है। सरकार पर सांप्रदायिक होने का भी आरोप लगाया जा रहा है। ऐसे में इस मुद्दे पर भी विपक्ष सहमति बना सकता है।

3. जाति की सियासत पर: विपक्षी दल भाजपा के हिंदुत्व को जातिगत राजनीति से तोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए हर राज्य में विपक्षी दल जातिगत आरक्षण को बढ़ाने, जातिगत जनगणना कराने जैसे मुद्दे उठाएंगे।

गठबंधन के बाद क्या होगा? 
एनसीपी चीफ शरद पवार खुद इसके बारे में बता चुके हैं। उन्होंने पिछले दिनों मीडिया से बातचीत में कहा कि विपक्ष के सभी दलों ने गठबंधन करने का फैसला ले लिया है। अब सभी भाजपा सरकार के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ेंगे।

23 जून को होने वाली बैठक के बाद सभी दल अपने-अपने क्षेत्र में भाजपा सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरेंगे। महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, हिंसा, भ्रष्टाचार, अल्पसंख्यकों का मुद्दा उठाया जाएगा। बड़े पैमाने पर रैलियां, जनसभाएं होंगी। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नेता यात्रा और मार्च निकालेंगे। इसके जरिए भाजपा सरकार को चारों तरफ से घेरने की कोशिश होगी।

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