मध्यप्रदेश में 13 मेडिकल कॉलेजों में 30 फीसदी स्टाफ की कमी ..!
मध्यप्रदेश में 13 मेडिकल कॉलेजों में 30 फीसदी स्टाफ की कमी, 5 साल में 150 डॉक्टर छोड़ गए नौकरी
नए कॉलेजों की हालत ज्यादा खराब
प्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेजों में से सात पिछले पांच वर्षों में शुरू किए गए हैं। इन कॉलेजों की हालत भी सबसे खराब है, यहां सरकार के लगातार भर्ती विज्ञापन जारी करने के बाद भी विशेषज्ञ आने को तैयार नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा मेडिकल कॉलेजों में ही टीचर्स के पद भरना सरकार के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। ऐसे में लगातार नए कॉलेजों खोलने की घोषणा से यहां दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे मिल पाएगी। वे सिर्फ थ्योरी पढ़कर ही डॉक्टर बन पाएंगे, क्योंकि प्रैक्टिकल कराने के लिए वहां पर्याप्त विशेषज्ञ ही नहीं है।
2890 पद हैं स्वीकृत
प्रदेश के तेरह मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के कुल 2890 पद स्वीकृत हैं। इसके विरुद्ध 2027 पद ही भरे हुए हैं, यानि 863 चिकित्सा शिक्षकों की कमी है। इनमें से करीब 600 से ज्यादा मेडिकल टीचर्स बीते पांच साल में शुरू हुए मेडिकल कॉलेजों में कम हैं। इन कॉलेजों में स्थायी डीन तक नहीं है। नए कॉलेज खुलने पर प्राइवेट मेडिकल कॉलेज से नौकरी छोड़कर डॉक्टर्स आए। सरकार ने इनसे तीन साल का बॉन्ड भराया। लेकिन यहां सुविधाएं नहीं मिलने से वर्ष-2021-22 में 30 प्रतिशत चिकित्सा शिक्षकों ने नौकरी छोड़ दी। पांच साल में 150 से ज्यादा चिकित्सा शिक्षक नौकरी छोड़ चुके हैं। विदिशा मेडिकल कॉलेज से 25, सागर से 15, रतलाम से 9, शहडोल से 4, दतिया से 15, खंडवा से 6, छिंदवाड़ा से 13, रीवा से 9 चिकित्सा शिक्षको ने नौकरी छोड़ी।
भोपाल-इंदौर तक में कमी
प्रदेश के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेजों में भी प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफसर के पद खाली है। भोपाल से 26, इंदौर से 20 और जबलपुर के 4 चिकित्सा शिक्षक नौकरी छोड़ चुके हैं। चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि सरकार लगातार चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर कर रही है। नए मेडिकल कॉलेज खुलेंगे तो इससे आने वाले वर्षों में डॉक्टर और चिकित्सा शिक्षकों की कमी पुरी होगी।