और अब देश में एटीएम सरकार
और अब देश में एटीएम सरकार
देश में लोग भले ही प्रधानमंत्री जी की शैक्षणिक उपाधियों को लेकर विवाद खड़े करते हों किन्तु एक अकेला मै हूँ जो उनकी मेधा का कायल हूँ । सबसे बड़ी बात तो ये है कि हमारे प्रधानमंत्री जी जो बोलते हैं उसमें से ज्यादातर उनके ‘ मन की बात ‘ होती है । वे ‘ मन की बात ‘ मन में नहीं रखते,उसे सार्वजनिक करते हैं। उन्होंने पहली बार छत्तीसगढ़ में रहस्योद्घाटन किया कि छग की राज्य सरकार कांग्रेस का एटीएम है। प्रधानमंत्री के इस रहस्योद्घाटन से मुमकिन है कि कांग्रेसियों को बुरा लगा हो लेकिन मुझे कोई हैरानी नहीं हुई ।
हमारे प्रधानमंत्री जी दिल्ली आने से पहले डेढ़ दशक तक अपने गृह राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं ,उनसे बेहतर कोई नहीं जानता होगा कि राज्य सरकारें एटीएम होती हैं या नही ? अगर नहीं होतीं तो क्या मुमकिन था कि भाजपा और संघ हमारे मोदी जी को अचानक 2014 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देती और लालजी भाई देखते रह जाते ? जहाँ तक मेरा अपना तजर्बा है कि जो एटीएम जितना समर्थ होता है उसकी मान्यता उतनी ज्यादा होती है। बुंदेलखंड में कहते हैं की कमाऊ पूत ही माँ-बाप को ज्यादा प्यारा होता है।
इस हकीकत से लोग वाकिफ हैं कि जितने भी राजनीतिक दल है वे राज्य सरकारों की कमाई से ही चलते है। कोई राजनीतिक दल न कोई उद्योग चलता है और न उसके पास खेती होती है । कार्यकर्ताओं की सदस्य्ता शुल्क और उद्योग घरानों के चंदे से कोई दल नहीं चलता। अलवत्ता एक जमाने में वामपंथी दल जरूर अपने सांसदों के वेतन से चलाये जाते थे। देश में आजादी के बाद से ही राज्य सरकारें राजनीतिक दलों का सबसे बड़ा आसरा रहीं हैं। जो मुख्यमंत्री अपने है कमान को जितना ज्यादा कमा कर देता रहा उसे उतना ज्यादा महत्व मिलता रहा। भाजपा को ये मौक़ा बहुत बाद में मिला कि वे अपने दल की सरकार को एटीएम की तरह इस्तेमाल कर सकें।
प्रधानमंत्री जी के इस आक्षेप से कांग्रेस और कांग्रेसियों को विचलित होने के बजाय सहज भाव से स्वीकार कर लेना चाहिए। इसमें वैसे भी बुरा क्या है ? देश में भाजपा की राज्य सरकारें सबसे ज्यादा हैं यानि भाजपा के पास सबसे ज्यादा एटीएम सरकारें हैं और इन्हीं के बल पर भाजपा कांग्रेस को पटकनी देती आ रही है। ,देश में कांग्रेस की राज्य सरकारें गिनी-चुनी हैं लेकिन इनके बूते से ही कांग्रेस रेस में शामिल है। बाहर नहीं हुई है। जिनके पास सरकारी एटीएम नहीं है वे पार्टियां मरणासन्न हैं फिर चाहे वे बहुजन समाज पार्टी हों या समाजवादी पार्टी। आप ने भी दो राज्यों में एटीएम सरकारें हासिल कर ली । इसलिए आजकल सबसे ज्यादा उछल-कूंद आप ही कर रही है । बाकी जिन क्षेत्रीय दलों के पास केवल एक-एक एटीएम हैं वे बेचारे राज्य की सीमाओं से बाहर नहीं निकल पा रहे ,
राज्य सरकारों को एटीएम के तरह इस्तेम्मल करना राजनितिक दलों की विवशता है। इसी विवशता के चलते देश में सबसे ज्यादा राजस्व कमाने वाले विभागों में सबसे ज्यादा भ्र्ष्टाचार के आरोप लगते हैं। किसी भी राज्य में आबकारी,परिवहन और वाणिजीकर विभाग जितना राजस्व राज्य सरकार के लिए कमाते हैं उससे कुछ कम या कुछ ज्यादा राजनीतिक दलों के लिए कमाया जाता है। इसके साक्ष्य नहीं दिए जा सकते ,किन्तु लगातार मंहगे होते चुनावों से इसका अनुमान लगाया जा सकता है। आखिर चुनावों में अंधाधुंध खर्च के लिए पैसा आता कहाँ से है ? इन्हीं एटीएम से न ? पिछले साल 5 राज्य विधान सभाओं के चुनावों में भाजपा ने नंबर एक में 344 करोड़ रूपये से ज्यादा खर्च किया थ। कांग्रेस के पास खर्च करने के लिए 194 करोड़ रूपये ही थे।
अगर केन्द्र की सत्ता हासिल करने के लिए राजनीतिक दल अपनी राज्य सरकारों का इस्तेमाल एटीएम की तरह न करे तो किसी भी राज्य सरकार को कर्ज न लेना पड़े ,लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। सबको एटीएम सरकार चाहिए। सारा द्वन्द इसी एटीएम सरकार की संख्या बढ़ने को लेकर है। हाल ही में भाजपा के हाथ से कर्नाटक का एटीएम निकल गया। कर्नाटक का एटीएम सबसे ज्यादा पैसा उगलने वाला एटीएम माना जाता था। छग का एटीएम भी भाजपा को खल रहा है । भाजपा कांग्रेस से उसके सारे एटीएम झपट लेना चाहती है। इसके लिए उसे कभी किसी राजनीतिक दल को दो फाड़ करना पड़ता है तो कभी किसी दल के विधायक खरीदना पड़ते हैं। मध्यप्रदेश का एटीएम भाजपा को इसी तकनीक से हासिल हुआ था ,लेकिन राजस्थान और छग का एटीएम पिछले पांच साल की मेहनत के बाद भी भाजपा हासिल नहीं कर सकी सो बैचेनी बढ़ रही है।
एटीएम सरकार हासिल करने के लिए अक्सर नैतिकता को ताक पर रखना पड़ता है। भाजपा जिन लोगों को जेल भेजना चाहती है उन्हें बाद में अपनी पार्टी में शामिल कर लती है । ये भाजपा की अपनी तकनीक है । इस पर किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए। मुझे तो बिलकुल नहीं ह। यदि mai आपत्ति करूँ भी तो मेरी कौन सुनता है ? अब तो देश की न्याय व्यवस्था भी समर्थ की ही बात पहले सुनती ह। आधी रात को अपने इजलास सजा लेती है। आम आदमी के लिए कभी ऐसा नहीं हुआ। भाजपा और कांग्रेस से तमाम राज्य सरकारें अपने-अपने एटीएम बचाकर रखने में लगी है। कुछ मिलजुलकर इस अभियान में शामिल है। इसे विपक्षी एकता का नाम दिया जाता है। एटीएम बचाना कोई आसान काम नहीं है । आजकल तो एटीआएआएम उखड लिए जाते हैं। लुटे तो पहले से जाते रहे हैं। एटीएम में लगे कैमरे भी कभी-कभी सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाते।
मुझे मजा आता है की प्र्धानमंत्री जी आजकल जिस किसी राज्य में चुनाव अभियान का श्रीगणेश करने जाते हैं,वहां कोई न कोई नया जुमला उछलकर आते है। कोई माने या न माने किन्तु मै ,मानता हूँ कि प्रधान जी के इन्हीं जुमलों की वजह से देश की राजनीयति में रंगत बची हुई है । अन्यथा कांग्रस के पास क्या है ? एक अडानी और मोदी जी को लेकर चल रही है । एक मुद्दे ने कांग्रेस के राहुल भाई साहब की सांसदी छीन ली और दुसरे का जबाब आजतक भाजपा ने उन्हें दिया नही। कांग्रेस दो माह से जलते मणिपुर को भी आजतक मुद्दा नहीं बना पायी क्योंकि उसके पास आईटीएम सरकारों की कमी है।
कुल मिलाकर सत्य और तथ्य ये है की एटीएम सरकारों को हासिल करो। बजरंगबली के नाम से चल रहीं सरकारों के भरोसे काम नहीं चलने वाला। बजरंगबली तो लोक -परलोक से भी प्रभावित नहीं होते । उन्होंने हाल ही में कर्नाटक में कैसा नाटक किया की बेचारे राम राज लाने वाले लोग टापते रह गए। मेर पास एटीएम सरकार तो नहीं है लेकिन एक अदद एटीएम जरूर है । एटीएम से रकम निकालने में बड़ा मजा आता है। जब मुझ जैसा आम आदमी एटीएम का आशिक है तो कोई राजनीतिक दल क्यों नहीं होगा ? हमारे देश में तो अनेक मुख्यमंत्री निवासों पर एटीएम लगाने की खबरें लीक हो चुकी है। जब आमदनी होगी तो नोट थूक लगाकर तो गिने नहीं जा सकते।