कार्बन उत्सर्जन में प्रभावी कमी लाने में सक्षम हैं हाइब्रिड वाहन ..!
इलेक्ट्रिक वाहन एवं पर्यावरण: सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहन प्रोत्साहन नीति से संभव नहीं 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना …
कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए इथेनॉल युर्क्त इंधन व बैटरी संकरित ईंधन के उन्नयन को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है, ताकि वास्तविक रूप से ‘शून्य कार्बन’ लक्ष्य प्राप्ति की ओर ठोस कदम उठाया जा सके।
विश्व में चहुंओर इलेक्ट्रिक यानी बैटरी चलित वाहनों के प्रचलन को बढ़ावा देने के प्रयास काफी गंभीरता सेे किए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि कार्बन उत्सर्जन के एक चौथाई स्रोत को वाहन ऊर्जा किस्म परिवर्तन से रोका जा सकता है। बैटरी चलित वाहनों को दूरगामी सोच के तहत अपनाया भी जा रहा है। प्रत्यक्ष तौर से इन वाहनों से धुंआ नहीं निकलने के कारण यही माना जाता है कि यह विकल्प पर्यावरण सम्मत और प्रदूषण रहित है। पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर की ओर से विभिन्न प्रकार के वाहनों को लेेकर जो शोध रिपोर्ट जारी की गई है, उसने इस विषय पर नई बहस छेड़ दी है कि क्या सम्पूर्ण बैटरी युक्त इलेक्ट्रिक वाहन, अथवा बैटरीमय जीवाश्म ईंधन उपयुक्त चयन है। हालांकि इसमें कोई विवाद नहीं है कि सम्पूर्ण जीवाश्म ईंधन के वाहन जेब और पर्यावरण दोनों को गहराई तक प्रभावित कर रहे हैं। उनके समक्ष नए विकल्प निश्चित रूप से किफायती हैं।
इस अध्ययन में प्राथमिक एवं द्वितीयक स्तर पर बैटरी परिवर्तन, विभिन्न पारिस्थितिकियाें, तय दूरी, निर्माण लागत, परिचालन लागत अपशिष्ट निवारण लागत समेत समस्त अवयवों का एक वर्ष से अधिक अवधि तक विभिन्न यात्री वाहनों का आकलन किया गया है। इलेक्ट्रिक वाहन के वर्तमान स्वरूप में लिथियम बैटरी का उपयोग ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जा रहा है और इसके साथ दुर्लभ धातुओं जैसे कि कोबाल्ट, बोरीन, निओडाइमियम का भी बहुतायत से उपयोग हो रहा है। ये धातुएं अधिकांशतया छोटे देशों में खनन द्वारा उत्सर्जित की जाती हैं, जहां इस प्रक्रिया के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर दुष्प्रभाव की एक अलग समस्या है। उन देशों में अभी भी उन्नत तकनीक के अभाव में सुरक्षा एक चुनौती है।
आइआइटी कानपुर के प्रो. अविनाश कुमार अग्रवाल के निर्देशन में किए गए अध्ययन के अनुसार सम्पूर्ण जीवन चक्र में भारतीय वाहनों द्वारा कार्बन उत्सर्जन सबसे कम हाइब्रिड (बैटरी मय जीवाश्म ईंधन) वाहनों में होता है। हाइब्रिड वाहन, बैटरी चलित वाहनों से लगभग 11 प्रतिशत और जीवाश्म ईंधन वालों से 32 प्रतिशत कम कार्बन उत्सर्जन करते हैं। वाहन निर्माण की प्रक्रिया में तो आश्चर्यजनक रूप से बैटरी संचालित वाहन, हाइब्रिड वाहनों से लगभग 35 प्रतिशत अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं। सम्पूर्ण जीवन चक्र में पर्यावरण हेतु बैटरी के साथ इथेनॉल मिश्रित जीवाश्म ईंधन के परिचालित वाहन सबसे बेहतर होते हैं। एक अन्य अध्ययन में वाहनों में प्रयुक्त लिथियम बैटरी के लिथियम कार्बोनेट इक्विवेलेंट का आकलन करने पर सम्पूर्ण बैटरी वाहन में इसकी मात्रा जहां 80 किलोग्राम पाई गई, वहीं हाइब्रिड वाहन में यह मात्र 5 किलोग्राम ही रही। वर्तमान संदर्भ में लिथियम बैटरी का अत्यन्त सीमित पुन: चक्रीकरण भी भविष्य की विकट समस्याओं का संकेत प्रदान करता है। वैसे भी सम्पूर्ण जीवन चक्र में एक बार बैटरी का बदलाव कर आयु वृद्धि करने के प्रयास से भी बैटरीचलित वाहन में लगभग 7 प्रतिशत तथा हाइब्रिड में 1 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन की वृद्धि हो जाती है।
इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण वर्तमान में अनुसंधान के दौर से गुजर रहा है। जिसमें एक गम्भीर चुनौती बैटरी के वजन को लेकर भी है। अत्यधिक वजनी होने के कारण वाहन का कुल वजन कम रखना मुश्किल हो जाता है और उसके कारण दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है। इसके वजन के कारण टायर एवं ब्रेक भी तुलनात्मक रूप से अधिक प्रदूषण अवयव उत्पन्न करते हैं। निर्माण की प्रक्रिया में ताम्बे और एलुमिनियम का एनोड व कैथोड के रूप में अत्यधिक उपयोग अप्रत्यक्ष खनन को बढ़ावा देता है।
यदि तुलनात्मक रूप से लागत का आकलन किया जाए तो समकक्ष वाहनों में जीवाश्म ईंधन के वाहनों की लागत सबसे कम होती है। हाइब्रिड एवं बैटरी चलित वाहनों के मध्य की लागत की प्रचलित अनुदानों, कर राहत एवं अन्य प्रोत्साहनों को समावेशित कर तुलना करने पर हाइब्रिड वाहन की कुल स्वामित्व लागत लगभग 12 प्रतिशत तक कम पाई जाती है। वर्तमान नीतियों के तहत हाइब्रिड वाहनों के प्रोत्साहन की कोई योजना नहीं है। जबकि बैटरी चलित वाहन को पर्यावरण संरक्षण में वरदान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। वास्तविकता यह है कि बैटरी चलित वाहन परोक्ष रूप से पर्यावरण सम्मत दिखते हैं, जबकि हाइब्रिड वाहन समेकित रूप से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाते हैं।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सन् 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन की प्रतिबद्धता प्रकट की है। एकाकी रूप से इलेक्ट्रिक वाहन प्रोत्साहन नीति से यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। उस दूरगामी लक्ष्य के लिए बहुआयामी प्रयास करने होंगे। भविष्य की विषमताओं को ध्यान में रख नियोजित तरीके से समाधान तलाशने होंगे। इस प्रक्रिया में स्थानीयता को अहमियत देना आवश्यक है अन्यथा जीवाश्म ईंधन की जगह हम दुर्लभ धातुओं के लिए ऑस्ट्रेलिया, कांगो जैसे देशों पर आश्रित हो जाएंगे। कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए इथेनॉल युर्क्त इंधन व बैटरी संकरित ईंधन के उन्नयन को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है, ताकि वास्तविक रूप से ‘शून्य कार्बन’ लक्ष्य प्राप्ति की ओर ठोस कदम उठाया जा सके।