हमें सुंदर दिखने वाले भारत का निर्माण करना होगा !

हमें सुंदर दिखने वाले भारत का निर्माण करना होगा

भारत की आर्थिक महत्वाकांक्षाएं बड़ी हैं। वह 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और 2047 तक विकसित देश बनना चाहता है। लेकिन अगर हम सच में ही विकसित होना चाहते हैं तो हमें उच्च आय अर्जित करने के अलावा भी कुछ और करना होगा। हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाए रखने के साथ एक सुंदर देश का निर्माण भी करना होगा।

जब हम आने वाले कल के भारत की बात करते हैं तो इस आयाम पर पर्याप्त चर्चा नहीं की जाती। अनेक लोग इस बात से सहमत होंगे कि समय के साथ हमारे अनेक शहर पहले से भी अधिक कुरूप होते चले गए हैं। इसका कारण यह है कि उनकी प्लानिंग सुनियोजित रूप से नहीं की जाती, शहरों के सौंदर्यीकरण के पुख्ता नियम नहीं होते, शॉर्टकट अपनाए जाते हैं, हमारा नागरिक-बोध बदहाल है और हमारी रुचियां भी बहुत परिष्कृत नहीं हैं।

तेज गति से बढ़ती इकोनॉमी हमें रोमांच से भरती है, लेकिन अगर यह कुरूपता की शर्त पर मिलती हो तो क्या यह पाने योग्य होगी? भारत में प्राकृतिक सौंदर्य की कमी नहीं। हमारे यहां अनगिनत ऐतिहासिक धरोहरें हैं। लेकिन अपवादों को छोड़ दें तो हम अपने शहरों को सुंदर बनाए रखने में सफल नहीं हो पाए हैं।

शायद हमें इसकी परवाह भी नहीं है। आखिर, जहां जीवनयापन ही मुश्किल हो, वहां सुंदरता को तो विलासिता ही समझा जाएगा। लेकिन शहरों का सौंदर्यीकरण महंगा हो यह जरूरी नहीं है। इसके लिए हमें समस्या को पहचानना होगा, एस्थेटिक्स को महत्व देना होगा, विशेषज्ञों की राय लेना होगी, कुछ सरल नियम बनाने होंगे और उनके पालन के अनुशासन को कायम रखना होगा। हमारे शहरों को सुंदर, सुरुचिपूर्ण बनाने के लिए मैं कुछ सुझाव देना चाहता हूं :

1. होर्डिंग्स से मुक्ति : होर्डिंग्स आखिरकार आंखों को खटकते ही हैं। ठीक है कि उनसे शहरों को राजस्व मिलता है, पर वे दिखने में बहुत बदनुमा होते हैं और हमारे पहले से ही भीड़भरे शहरों को और खचाखच भरा दिखलाते हैं। इनके लिए कुछ स्थानों का चयन किया जा सकता है। दिल्ली में एक होर्डिंग पॉलिसी अपनाई गई है, जो सफल रही है। इसे मुम्बई सहित अन्य शहरों में भी लागू किया जाना चाहिए।

2. भड़कीली एलईडी लाइट्स नहीं : मैं समझता हूं कि वे बिजली बचाती हैं। लेकिन वे सिरदर्द भी देती हैं। मुम्बई में तो सी-लिंक के हर पोल पर चीन से आयात की गई सस्ती एलईडी लाइट्स लगाई गई हैं, जिससे यह सुंदर स्थान भी कुरूप लगने लगा है। पूरे शहर में ही इन चीप एलईडी का बोलबाला है। जबकि पेरिस जैसे शहर कभी भी अपने किसी लैंडमार्क को एलईडी लाइट्स से नहीं लादेंगे। भारत में प्रतिभाशाली आर्किटेक्ट्स और लाइटिंग एक्सपर्ट्स की कमी नहीं है। दिल्ली के कुछ स्मारकों पर तो बहुत ही अच्छी तरह से लाइटिंग की गई है।

3. डस्टबिन और उससे सम्बंधित इंफ्रास्ट्रक्चर : केवल डस्टबिन रख देना काफी नहीं है, अलबत्ता उनकी भी किल्लत ही है। लेकिन कचरा-संग्रह की भी योजना होनी चाहिए। नगरीय निकाय के अधिकारियों को इसके लिए पर्याप्त संसाधन मुहैया कराने चाहिए, विशेषकर भीड़भरे इलाकों में। भारतीयों को सिविक-सेंस सीखने की जरूरत है। हम सबने ऐसे लोगों को देखा है, जो बीएमडब्ल्यू में बैठे हैं पर सड़क पर स्नैक रैपर्स फेंक रहे हैं। क्या विकसित देश के लोग ऐसा व्यवहार कर सकते हैं?

4. स्ट्रीट डॉग : कुत्ते बहुत प्यारे जानवर होते हैं, वे मनुष्यों के सबसे अच्छे दोस्त भी हैं। लेकिन उन्हें सड़कों पर आवारा नहीं घूमने देना चाहिए। किसी विकसित देश में आवारा कुत्ते सड़कों पर नहीं होते। अगर आपको कुत्तों से प्यार है तो उन्हें घर पर रखें और उन्हें बाहर घुमाने ले जाएं तो उनके द्वारा गंदगी करने पर सफाई भी करें।

5. गुटखे के दाग : पहली बात तो यह कि गुटखा खाना हमारी सेहत के लिए बहुत बुरा है। इससे कैंसर हो सकता है। दूसरे, गुटखा खाकर लोग जो थूकते हैं, उनके दागों ने हमारे पूरे देश को ही पीकदान बना डाला है।

6. शॉर्टकट इंफ्रास्ट्रक्चर : मुम्बई में ऐसे ओवरब्रिज हैं, जिन्हें एक साल में बना दिया गया है। वे चरमराते हैं, उन पर जंग लगी है, और यकीनन, वे भद्दे दिखते हैं। उन पर लगे जंग के दाग को छुपाने के लिए पेंट किया जा सकता है, पर बेहतर होगा कि निर्माण में ही उम्दा सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाए, ताकि मेंटेनेंस के लिए खर्च न करना पड़े।

यही बात सड़कों पर भी लागू होती है, जिनमें हर साल बारिश के मौसम में गड्ढे उभर आते हैं। जो काम ठोस और पुख्ता होता है, वह खूबसूरत भी लगता है। शहर को पेंट कर देने और सस्ती एलईडी लाइट्स से लाद देने से सुंदरता नहीं आती।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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