डाटा प्रोटेक्शन की आड़ में सरकार की ताकतें और बढ़ीं !

डाटा प्रोटेक्शन की आड़ में सरकार की ताकतें और बढ़ीं …

हमारे शिक्षक डेसमंड रेडन ने मुझे लोकतांत्रिक जिम्मेदारी के बारे में बताया था। पिछले हफ्ते मैंने राज्यसभा में कहा कि सरकार संसद के प्रति जवाबदेह है और संसद लोगों के प्रति। इसलिए जब संसद नहीं चलती तो इससे सरकार को जनता के प्रति जवाबदेही से पल्ला झाड़ने का मौका मिल जाता है। संसद का सुचारु रूप से नहीं चलना सरकार के हित में है।

तीन सप्ताह के मानसून सत्र में भाजपा ने 23 विधेयक पारित करवाए। इनमें से कई बुनियादी रूप से दोषपूर्ण हैं। इंडिया गठबंधन के अनेक वक्ताओं ने दिल्ली अध्यादेश पर बहस के दौरान पुरजोर तरीके से अपनी बात रखी। लेकिन दु:खद है कि मणिपुर पर संसद में नहीं बोलने की प्रधानमंत्री की हठधर्मिता के चलते इंडिया गठबंधन के दलों को तब वॉकआउट करने पर मजबूर होना पड़ा, जब डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) सहित अन्य विधेयकों पर चर्चा चल रही थी।

डीपीडीपी एक्ट 2023 संसदीय और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की प्रणालीगत अवमानना की बानगी है। डाटा की सुरक्षा के लिए कानून एक दशक से लम्बित था। इसमें गति लाने के लिए 2012 में एपी शाह द्वारा प्राइवेसी पर कमेटी बनाई गई। 2017 में केएस पुट्टास्वामी जजमेंट द्वारा निजता को बुनियादी अधिकार निर्दिष्ट किया गया।

2018 में जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा की अगुवाई वाली कमेटी ने इस काम को आगे बढ़ाया। 2021 में जेपीसी- जिसका मैं सदस्य था- द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। एक साल बाद विधेयक को वापस ले लिया गया। इसके बाद नया विधेयक लोक-परामर्श के लिए रखा गया, जो कि डीपीडीपी बिल 2022 था। इस ‘लोक-परामर्श’ के तहत केवल अंग्रेजी में टिप्पणियां की जा सकती थीं और उन्हें निजी रखा गया था।

सूचना प्रौद्योगिकी पर स्टैंडिंग कमेटी ने संसद द्वारा औपचारिक रूप से विधेयक को संदर्भित किए बिना ही उस पर चर्चा करने का निर्णय ले लिया। क्या आपको यहां दाल में कुछ काला नहीं नजर आता? कमेटी ने अपने सदस्यों से मशविरा लिए बिना ही रिपोर्ट बनाई और बैठक से एक रात पूर्व ही उसे उनसे साझा किया गया।

वहीं केंद्र सरकार ने तमाम जांच-पड़ताल को ताक पर रखते हुए जुलाई 2023 में विधेयक के एक अज्ञात संस्करण को मंजूरी दे दी। जब मानसून सत्र शुरू हुआ तो लुटियंस की गलियों में इस विधेयक के कम से कम तीन संस्करण घूम रहे थे।

पारित किए गए अधिनियम में भी कुछ कम समस्याएं नहीं हैं। एक झटके में केंद्र सरकार ने स्वयं को इस बात के अतिशय अधिकार दे डाले कि क्या, किसके द्वारा और कहां पर कुछ कहा जा सकता है। अब सरकार के पास ये शक्तियां हैं कि वह लोकहित का हवाला देकर किसी भी सूचना तक पहुंच को अवरुद्ध कर सकती है।

चूंकि ये लोकहित क्या हैं, इन्हें अच्छे-से परिभाषित नहीं किया गया है, इसलिए वह कंटेंट के प्रकाशन और उपभोग पर व्यापक प्रतिबंध लगा सकती है। इससे प्रेस की स्वतंत्रता बाधित होगी। डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड भी अब सीबीआई और ईडी जैसी उन संस्थाओं में शामिल होने जा रहा है, जिन्हें यों तो स्वायत्त होना चाहिए, पर जो सरकार के इशारों पर काम करती हैं।

तकनीकी रूप से तो यह एक स्वशासी डाटा प्रशासन प्राधिकरण है, लेकिन चूंकि इसमें पूरी तरह से केंद्र सरकार के सदस्य होंगे, इससे यह स्पष्ट होता है कि इसे रिमोट-कंट्रोल से चलाया जाएगा। केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियां स्वयं को इस कानून की किसी भी बाध्यताओं से मुक्त रख सकती हैं, जिनमें डाटा की गैर-सहमति से प्रोसेसिंग को दंडित करना भी है।

एक ऐसे समय में, जब इस बात की रिपोर्ट्स मौजूद हैं कि सरकार के आलोचकों के विरुद्ध राज्य की एजेंसियों द्वारा साक्ष्यों को प्लांट किया जाता है, यह सोचना विचलित कर सकता है कि इन नई ताकतों का और कितना दुरुपयोग किया जाएगा।

डीपीडीपी एक्ट 2023 पारदर्शिता के सबसे ताकतवर उपकरणों में से एक सूचना के अधिकार को भी अवरुद्ध करता है। इस अधिकार के तहत वे सूचनाएं भी प्राप्त की जाती हैं, जिन्हें सरकार संसद में प्रदान करने से इनकार कर देती है। लेकिन इस विधेयक ने सरकार के लोकसूचना अधिकारियों को आरटीआई आवेदनों को रद्द करने की अपरिमित शक्ति दे दी है।

साथ ही, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध निजी डाटा को इस कानून के अधिकार-क्षेत्र से मुक्त रखने का निर्णय भी दोषपूर्ण है। तकनीकी-विशेषज्ञ निखिल पाहवा ने मुझे बताया था कि ऐसा करके सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न कर दिया है। इससे नागरिक थर्ड-पार्टीज़ द्वारा गैरजरूरी प्रोफाइलिंग और निगरानी से अपनी रक्षा नहीं कर सकेंगे।

अब सरकार के पास ये शक्तियां हैं कि वह लोकहित का हवाला देकर किसी भी सूचना तक पहुंच को अवरुद्ध कर सकती है। वह कंटेंट के प्रकाशन और उपभोग पर व्यापक प्रतिबंध लगा सकती है। इससे प्रेस की स्वतंत्रता बाधित होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं। इस लेख की सहायक शोधकर्ता वर्णिका मिश्रा हैं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *