जी20 सम्मेलन में यूक्रेन पर भारत के कूटनीतिक दांव के आगे क्यों पस्त हुए पश्चिमी देश?
जी20 सम्मेलन में यूक्रेन पर भारत के कूटनीतिक दांव के आगे क्यों पस्त हुए पश्चिमी देश?
G20 समिट में भारत की कामयाबी पर पूरे विश्व की निगाहे हैं. इसी बीच भारत ने अपनी बेहतरीन कूटनीति से दिल्ली घोषणापत्र पर G20 में शामिल सभी देशों की सहमति ले ली.
G20 समिट में प्रधानमंत्री मोदी के साथ अन्य राष्ट्रप्रमुख …
शनिवार को भारत ने G20 समिट में दिल्ली घोषणा पत्र पेश किया. जिसने अमेरिका और यूरोपीय देशों को हैरान कर दिया. इस घोषणापत्र पर जी 20 में शामिल देशों की मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आई. हालांकि भारत ने कुछ इस तरह से दिल्ली घोषणा पत्र को पेश किया था जिससे कोई भी देश इस पर सहमति जताने से खुद को रोक नहीं पाया. इस पत्र पर भारत ने यूक्रेन का नाम लिए बिना शांति की बात की, तो वहीं भारत से रूस पर दबाव बनाने की कोशिशों में लगे पश्चिमी देशों से भी अपनी बात मनवा ली.
भारत ने इस घोषणापत्र में जिस भाषा का उपयोग किया, उससे कोई भी यूरोपिय देश रूस की निंदा नहीं कर पाया. जिसके बाद जी20 समिट में शामिल किसी भी देश के पास किसी निंदा करने का विकल्प ही नहीं बचा.
दरअसल जब रूस और यूक्रेन का युद्ध शुरू हुआ तो भारत के ऊपर अमेरिका और पश्चिमी देशों का दबाव था कि वो रूस के खिलाफ बयान दे और उसकी आलोचना करे. इसके साथ ही रूस से तेल खरीदना भी बंद कर दे, लेकिन भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर साफ जाकर कहा कि भारत किसी भी खेमेबाजी में नहीं फंसेगा.
हालांकि भारत ने यूक्रेन के ऊपर हमला करने पर रूस को भी समय-समय पर नसीहत दी, लेकिन रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी भी रखा. इस बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी यह भी कहा था कि यूरोपीय देश ये न समझें कि उनकी समस्या पूरे विश्व की समस्या है. ये बयान उस समय आया था जब रूस ने यूरोपीय देशों को गैस सप्लाई बंद करने की धमकी दी थी.
क्या है दिल्ली घोषणा पत्र की अहम बातें?
जी20 समिट में नई दिल्ली घोषणा पत्र पर भारत ने सभी सदस्य देशों की मंजूरी ले ली. इस घोषणा पत्र की कई अहम बाते थीं. इस साझा घोषणा पत्र में सभी देशों से क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता और राजनीतिक स्वतंत्रता को बनाए रखने का आह्वान किया गया था.
साथ ही घोषणा पत्र में आतंकवाद को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए बड़े गंभीर खतरे के रूप में बताया गया था. इस दौरान घोषणा पत्र में आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा की गई. आतंकवादी समूहों को सुरक्षित पनाहगाह और भौतिक या राजनीतिक समर्थन से वंचित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने का भी आह्वान किया गया.
व्यक्तियों, धार्मिक प्रतीकों और पवित्र पुस्तकों के विरुद्ध धार्मिक नफरत के सभी कार्यों की निंदा की गई.
घोषणा पत्र में मजबूत और सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए तेजी लाने के लिए हरित विकास समझौते और बहुपक्षवाद को मजबूत करने पर बल दिया गया.
जांबिया, घाना और श्रीलंका जैसे विकासशील देशों की अहम जरूरतों पर ध्यान देने पर आम सहमति बनाई गई.
सभी महिलाओं और बालिकाओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव को स्वीकार करते हुए लैंगिक समानता को मूल में रखते हुए जलवायु संकट से निपटने संबंधी कदमों में तेजी लाने की बात कही गई.
साथ ही इसमें छोटे हथियारों और हल्के हथियारों की अवैध तस्करी को लेकर चिंता जताई गई. इसके अलावा फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) और एफएटीएफ जैसी संस्थाओं की संसाधनों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए आश्वस्त किया गया.
क्यों जी20 में ये घोषणा पत्र मंजूर करना था जरूरी?
यूरोपीय संघ के एक बड़े अधिकारी ने रविवार को मीडिया से बातचीत के दौरान इस बात को स्वीकार किया कि रूस पर और अधिक आक्रामक हुआ जा सकता था. हालांकि उन्होंने ये भी माना कि वो और सख्ती दिखाते तो ये घोषणापत्र सभी की मंजूरी से जारी नहीं हो पाता. ऐसे में जब पूरे विश्व में G20 की अहमियत पर ही सवाल उठ रहे हैं और यूक्रेन पर लगातार रूस हमले कर रहा है. उस वक्त इसके मायने अलग ही निकाले जाते. ऐसे में G20 का मजबूत और एकजुट होना बहुत जरूरी है.
भारत ने अन्य देशों के सामने इस घोषणा पत्र को मंजूर करने के अलावा कोई अन्य विकल्प ही नहीं छोड़ा था. यूरोपीय संघ के आला अधिकारी ने इस बात को स्वीकार किया कि वो रूस पर सख्त कदम उठाने के लिए तैयार हैं. वहीं यूरोपीय देशों और अमेरिका के रूस के सामने कमजोर दिखने पर उन देशों की मीडिया ने भी सवाल उठाया और कहा कि भारत ने हमेशा से अपना यही रुख रखा है. जो वो दूसरे देशों से भी मनवाने में सफल रहा.
घोषणापत्र पर सभी की सहमति ने क्यों कर दिया हैरान?
इस घोषणापत्र पर सभी की सहमति ने हर किसी को हैरान कर दिया वो इसलिए क्योंकि पिछली बार बाली में जो समिट हुई थी, उसकी भाषा और विषय पर चीन और रूस ने सहमति तो दे दी थी.
लेकिन दिल्ली समिट आते-आते उनका रुख बिल्कुल बदल गया. जिसके बाद भारत में जी20 से जुड़ी जितनी भी मंत्री स्तरीय बैठकें हुईं, उनमें किसी प्रकास की सहमति नहीं बनी. ऐसे में ये भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गई थी. फिर शनिवार को पीएम मोदी ने जब घोषणा की कि साझा बयान पर सहमति बन गई है तो ये सबके लिए हैरान करने वाला था.
इन सब के पीछे एक चीज थी और वो थी घोषणापत्र की भाषा. बाली में जो साझा बयान जारी किया गया था, उसमें यूक्रेन युद्ध से जुड़े पैरा में रूसी आक्रामकता लिखा गया था और रूस की निंदा भी की गई थी. इसके अलावा दिल्ली के बयान में ‘यूक्रेन में युद्ध’ लिखा गया है न कि यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध. जाहिर है इसके बाद G20 देश यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा नहीं कर पाए.दिल्ली घोषणापत्र में यूक्रेन में जारी जंग में रूस का जिक्र तक नहीं किया गया.
ब्रिक्स ने भी निभाई अहम भूमिका
दिल्ली घोषणा पत्र पर भारत को सहमति पाने में BRICS के दबाव ने भी अहम भूमिका निभाई. भारत ब्रिक्स में शामिल चुनिंदा देशों में से एक है. ब्रिटेन के सीनियर अफसर के अनुसार जिस तरह चीन पिछले दिनों में BRICS की विस्तार करते नजर आ रहा है और रूस और चीन ने इसे G20 के एक विकल्प के रूप में सामने लाने की पहल की है. उसे देखते हुए भी कोई देश सम्मेलन में किसी भी प्रकार के मतभेद को बढ़ाकर जोखिम नहीं लेना चाहता था.
वहीं इस समिट में रूस और चीन के राष्ट्रपति भी शामिल नहीं हुए थे. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साउथ अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेकर दोनों समूहों के साथ अपने रिश्ते में संतुलन बनाए रखा. इसे देखते हुए G20 समिट में अमेरिका और यूरोपीय देशों के पास कम ही विकल्प थे. वहीं फ्रांस इस घोषणापत्र से बहुत खुश है.समिट ने फ्रांस ने भारत की अध्यक्षता में इस घोषणा पत्र की मंजूरी से खुशी जताते हुए बाली डिक्लेरेशन को याद किया.
यूक्रेन की स्थिति हुई कमजोर?
यूक्रेन इस कूटनीतिक घोषणापत्र पर मंजूरी से अमेरिका और यूरोपीय देशों से नाराज नजर आया. दिल्ली घोषणा पत्र में रूस का जिक्र न होने पर यूक्रेन ने निराशा जताई. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने यूरोपीय देशों के रुख से हैरानी भी जताई. यूक्रेन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ओलेग निकोलेंको ने G20 घोषणापत्र पर कहा कि घोषणापत्र में कुछ भी गर्व की बात नहीं है. अगर हमें इस समिट का हिस्सा बनने का मौका मिलता तो हम स्थिति को और बेहतर ढंग से सामने ला सकते थे. बता दें, कहीं न कहीं माना ये जा रहा है कि इस समिट में घोषणापत्र पर सभी देशों की मंजूरी के बाद यूक्रेन की स्थिति कहीं न कहीं कमजोर हुई है