युद्ध के ग्लोबल डिसऑर्डर वाले माहौल में सवाल यह कि आने वाले पीढ़ी को हम क्या सौंपेंगे?

युद्ध के ग्लोबल डिसऑर्डर वाले माहौल में सवाल यह कि आने वाले पीढ़ी को हम क्या सौंपेंगे?

संसार में हो रही उथल-पुथल ने मुझे फिर से लियो टॉलस्टॉय के उपन्यास ‘वॉर एंड पीस’ को पढ़ने के लिए प्रेरित किया है। रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनिया बाहर नहीं निकली थी कि इजराइल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध शुरू हो गया। मैं टॉलस्टाय के उस अहिंसा या शांति के संदेश को ढूंढ रहा हूं जिसने महात्मा गांधी को भी प्रेरित किया था।

‘वॉर एंड पीस’ के कथानक का अधिकांश भाग नेपोलियन बोनापार्ट की यूरोप विजय पर केंद्रित है और जिससे रूस के नागरिकों में चिंता बढ़ जाती है। ‘वॉर एंड पीस’ में टॉलस्टाय ने संघर्ष और प्रेम, जन्म और मृत्यु, स्वतंत्र इच्छा और विश्वास जैसे विषयों को उठाया है और ऐसा लगता है जैसे हमेशा से दुनिया दो हिस्से में ही बंटी हुई है।

किताब का पात्र पियरे कहता है, ‘जहां भी सरलता, अच्छाई और सच्चाई नहीं है वहां कोई महानता नहीं हो सकती। मेरे लिए तो पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंटी हुई है, एक वह है जहां सारी खुशियां, आशा, रोशनी है और दूसरी वह है जहां वह नहीं है और वहां निराशा और अंधकार है…।’

पहले हिस्से वाली दुनिया कुछ समय के लिए कोविड के समय नजर आई। उसके पहले तो बम की शक्ति और संख्या आधार पर दुनिया बंटी और कोविड के बाद फिर से कुछ वैसी ही होती जा रही है यह दुनिया। लेकिन युद्ध में फंसी दुनिया वह शांति वाली दुनिया बनने के लिए क्या कर रही है? वो जो बच्चे मारे जा रहे हैं, या बंधक बने हैं, उनका क्या होगा? क्या सरहद पार करते ही मनुष्यता का प्रश्न गौण हो जाता है?

ऐसा नहीं लगता कि मानवता का प्रश्न कमजोर पड़ता जा रहा है? मानवता का अर्थ अगर शब्दकोश में देखें तो यह है- वह मूल्य, जो विश्व के तमाम लोगों को एक ही मानें और वो भी दया और सहानुभूति के मूल्यों के साथ। बर्ट्रेंड रसेल को 1950 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उन्हें उनके लेखन- जिसमें उन्होंने मानवीय आदर्शों और विचार की स्वतंत्रता की वकालत की है- के लिए यह सम्मान मिला। उसी वर्ष 11 दिसंबर को 78 वर्षीय रसेल ने सम्मान लेते हुए स्टॉकहोम में मंच संभाला। और सभी मानव व्यवहार को संचालित करने वाली चार इच्छाओं का जिक्र किया।

उन्होंने बताया कि सभी मानवीय गतिविधियां इच्छा से प्रेरित होती हैं। यही मनुष्य अन्य जानवरों से भिन्न हो जाता है। अजगर जब पर्याप्त भोजन कर लेता है, तो सो जाता है और तब तक नहीं उठता जब तक उसे दूसरे भोजन की आवश्यकता नहीं होती। और मनुष्य की इच्छाएं यूं कहें तो अनंत हैं, जो कभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो सकती हैं और जो उसे स्वर्ग में भी बेचैन रखती हैं। रसेल यह तर्क देते हैं कि चार इच्छाओं में से सबसे शक्तिशाली, शक्ति के लिए प्यार है। सत्ता के प्रति प्यार काफी हद तक उस तीसरी इच्छा वैनिटी या घमंड के समान है, लेकिन उससे बहुत अलग भी है।

उस अभिमान या वैनिटी को अपनी संतुष्टि के लिए बहुत ज्यादा महिमा की आवश्यकता होती है। शक्ति, घमंड की तरह अतृप्त है। सर्वशक्तिमान से कम कोई भी चीज इसे पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर सकती। उनका यह मानना है कि इस तरह से शक्ति या पावर के प्रति आसक्ति उस दूसरी इच्छा राइवलरी या प्रतिद्वंद्विता का भी परिणाम होती है और इन सबकी शुरुआत अत्यधिक संग्रहशीलता से शुरू होती है।

आज युद्ध के ग्लोबल डिसऑर्डर वाले माहौल में शक्ति के प्रति प्यार की इच्छा को जब तक मानवता से नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक गाजा के अस्पताल पर गिरने वाला बम या इजराइल में निहत्थों को मारने वाले आतंकियों की ही बात दुनिया करती नजर आएगी। लेकिन जो निर्दोष मरते हैं, चाहे वो बच्चे, जवान, बूढ़े हों या कोई, उनकी पहचान कौन करेगा?

सवाल यह है कि युद्ध में जीत या हार तो होती नहीं, लेकिन एक युद्ध हमेशा चलता रहता है और वह होता है अपने देश को मानवता का हिस्सेदार बनाना। युद्ध करते रहने से हम आक्रामक हो जाते हैं, लेकिन उस नेपोलियन की तरह हमें वापस भी लौटना होता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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