वैवाहिक बलात्कार पर कानून कब ?

मैरिटल रेप, एक ऐसी क्रूर व्यवस्था जिसे विवाह की संस्कृति मान्यता देती है और कानून भी
वैवाहिक बलात्कार एक ऐसी क्रूर व्यवस्था है जिसे विवाह की संस्कृति द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई है.
जब किसी महिला का किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बलात्कार होता है तो उसे जिंदगी भर उस दर्दनाक याद के साथ जीना पड़ता है लेकिन जब बलात्कार पति द्वारा ही किया जाए तो उसे पीड़ा के साथ-साथ उस बलात्कारी व्यक्ति के साथ भी रहना पड़ता है. यह और मुश्किल हो जाता है जब समाज से लेकर कानून तक विवाह के बंधन में महिलाओं के कंसेंट को कोई खास तवज्जोह नहीं मिलता और पति द्वारा बिना कंसेंट के शारीरिक संबंध बनाने को यौन हिंसा या बलात्कार नहीं माना जाता है.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वैवाहिक बलात्कार एक ऐसी क्रूर व्यवस्था है जिसे विवाह की संस्कृति द्वारा स्वीकृति दी गई है. ऐसा कहना अनुचित नहीं लगना चाहिए क्योंकि आजतक वैवाहिक बलात्कार भारतीय कानून के तहत अपराध नहीं है. इससे पहले कि इसपर चर्चा करें जरूरी है हम जान लें कि वैवाहिक बलात्कार को लेकर हमारे देश का कानून क्या कहता है. कैसे उसे परिभाषित किया जाता है. 

समझिए क्या है वैवाहिक बलात्कार

वैवाहिक बलात्कार वो बलात्कार है जो ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जिससे पीड़िता का विवाह हुआ हो यानी उसका पति. यह पत्नी की इच्छा के बिना बलपूर्वक, धमकी देकर या शारीरिक हिंसा यानी मारपीट कर बनाया गया संबंध है. ऐसे वक्त में जब पत्नी की सहमति न हो.

भारतीय कानून क्या कहता है

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करता है. इसके अनुसार पति पत्नी के बीच संभोग कोई बलात्कार नहीं है अगर पत्नी 18 साल की उम्र से कम नहीं है. 18 साल से कम उम्र की लड़की से शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार है फिर चाहे वो पत्नी ही क्यों न हो.

इससे साफ है कि वैवाहिक बलात्कार को लेकर देश में कोई स्पष्ट कानून नहीं है. इसे सीधे तौर पर बलात्कार नहीं कहा गया है. हालांकि भारत में इसे घरेलू हिंसा के अंतर्गत रखा गया है. भारतीय दंड संहिता 1960 की धारा 498 A के अनुसार वैवाहिक बलात्कार को क्रूरता माना गया है. हालांकि क्रूरता को यहां भी साफ तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है. यहां शारीरिक और मानसिक क्रूरता लिखा है और अपराधी को 3 साल सजा और जुर्माने का प्रावधान है.

आज दुनिया के 185 देशों में से 77 देशों में मैरिटल रेप पर कानून बना है. 74 देशों में महिलाओं को रिपोर्ट दर्ज कराने का अधिकार है. बाकी भारत समेत 34 देशों में पति द्वारा पत्नी का रेप हो सकता है ऐसा माना नहीं जाता.

आंकड़ें देते हैं गवाही

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के तीसरे (2005-06) और चौथे (2015-16) दौर के सर्वे से पता चलता है कि वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ कानूनी सुरक्षा का अभाव भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है. देश के अलग-अलग राज्यों में महिलाओं के खिलाफ इंटिमेट पार्टनर वायलेंस 3 प्रतिशत के बढ़कर 43 प्रतिशत हो गया.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण का ही 5वां दौर, 2019-20 में हुआ. 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों में लगभग 637,000 घरों में सर्वे किया गया. इसमें पता चला कि भारत में 18-49 आयु वर्ग की 3 में से 1 महिला को हिंसा का शिकार होना पड़ा, जिनमें से कम से कम 5 %-6% महिलाएं यौन हिंसा की शिकायत करती हैं.

एनएफएचएस सर्वेक्षण के अनुसार 5.6% विवाहित महिलाओं को शारीरिक रूप से अपने पतियों के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया था, 2.7% महिलाओं को शारीरिक रूप से उन यौन गतिविधियों को करने के लिए मजबूर किया गया था जो वे नहीं करना चाहती थीं, और 3.7% महिलाओं को धमकी देकर मजबूर किया गया था कि वो इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाएं.

एनएफएचएस के आंकड़ों के मुताबिक 2021 तक जमा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 82% विवाहित पुरुष अपनी पत्नियों के साथ यौन हिंसा करने की बात स्वीकार करते हैं. साथ ही 13.7% मर्दों ने माना कि वो यौन हिंसा करते थे और यही उनकी तलाक की वजह बनी. 

ऐसा नहीं कि इस तरह की घटनाएं सिर्फ अशिक्षित महिलाओं के साथ होती हैं. इंडियन कोर्ट फॉर रिसर्च ऑन वुमेन द्वारा 2002 में एक निजी अध्यन किया गया था जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक, 56 प्रतिशत शिक्षित भारतीय महिलाओं ने माना था कि उनके साथ पति ने मर्जी के खिलाफ यौन हिंसा की है.

भारत सहित 6 एशिया पैसिफिक देशों पर आधारित  संयुक्त राष्ट्र के 2013 के सर्वेक्षण के अनुसार 1000 पुरुषों से सवाल करने पर लगभग एक चौथाई द्वारा स्वीकार किया गया कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ बलात्कार किया है.

वैवाहिक बलात्कार की वजह क्या है

वैवाहिक बलात्कार के कई वजहें  हैं जैसे-

1-भारत में विवाह स्नेह और विश्वास का बंधन माना जाता है. यहां सात जन्मों की स्वीकृति प्राप्त होती है. यहां माना जाता है कि शादी के बाद पति को यौन संबंध की स्वकृति अपने आप मिल जाती है.

2– पेंटेकोस्टल ईसाई धर्म के विवाहित लोग कहते हैं कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था को बनाए रखना एक सौदा है जिसमें महिलाएं थोड़े से समर्थन के बदले पुरुषों के अधिकार को चुपचाप सह लेती हैं. इसका मतलब यही है कि वैवाहिक बलात्कार पर चुप रहना इसको बढ़वा  देता है. भारतीय समाज में भी यह एक बड़ी वजह है जहां आर्थिक रूप से जो महिलाएं स्वतंत्र नहीं होतीं और पति पर आश्रित रहती हैं वो वैवाहिक बलात्कार को लेकर कभी कुछ नहीं बोलती हैं.

3– पहले से समाजिक और पारिवारिक परिभाषित भूमिका भी वैवाहिक बलात्कार की एक बड़ी वजह है. यहां माना जाता है कि पति की यौन संतुष्टि, एक खुशहाल परिवार महिला की जिम्मेदारी है.

वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ दुनियाभर में उठी आवाज

इसमें कोई शक नहीं कि वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में दिए गए अधिकारों का. वैवाहिक बलात्कार पर सबसे पहले चर्चा 19वीं सदी में नारीवादी आंदोलन के साथ शुरू हुई. अमेरिका में महिला अधिकार आंदोलन में पति के वैवाहिक संभोग के अधिकार को चुनौती दी गई. एलिजाबेथ कैडी स्टैंटन और लुसी स्टोन जैसे कई नारीमपंथियों (Suffragists) ने इसका विरोध किया. ब्रिटिश उदारवादी-नारीवादी जॉन स्टूअर्ट मिल और हैरिएट टेलर ने वैवाहिक बलात्कार को लेकर कानून के द्वि अर्थी रवैये पर प्रहार किया. ये आंदोलन तब और तेज हुआ जब फ्री लव आंदोलन के प्रवक्ता Voltairine de cleyre और Emma Goldman इस आंदोलन में शामिल हुए.

कन्सास स्थित एक प्रकाशक और महिला अधिकारों के समर्थक मूसा हरमन को वैवाहिक बलात्कार को रोकने और कानून बनाने को लेकर लिखे गए लेख के कारण जेल हो गई.

Bertrand Russell जिन्हें 1950 में साहित्य का नोबेल प्राइज मिला उन्होंने अपनी किताब मैरिज एंड मॉरल्स (1929) में विवाहित महिलाओं की स्थिति पर खेद प्रकट किया. उन्होंने लिखा

”महिलाओं के लिए विवाह आजीविका का सबसे सरल तरीका है और विवाह के बाद महिलाओं द्वारा सहन किए जाने वाले आवंछित यौन संबंध की कुल राशि वैश्यावृत्ति की तुलना में कई अधिक है.”

1993 में मानव अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वैवाहिक बलात्कार को मानव अधिकारों का उल्लंघन करार दिया.

आंकड़ें मौजूद फिर कब बनेगा कानून

‘अन्विति सिद्धांत’ जिसे अंग्रेजी में Unites Doctrine कहते हैं यहां सबसे फिट बैठता है. इस सिद्धांत के अनुसार विवाह के बाद महिलाओं और पुरुषों के पहचान का विलय हो जाता है और कानून की नजर में वो एक व्यक्ति के तौर पर देखे जाते हैं. पर सवाल है कि अगर विवाह के बाद महिला को एक स्वतंत्र अस्तित्व के तौर पर परिभाषित नहीं किया जाएगा तो कैसे उसे इंसाफ मिल सकता है. कैसे ये तय होगा कि वैवाहिक जीवन में भी उसके हां और ना की अहमियत है.

भारतीय समाज में महिलाएं परिवार, समाज के लिए प्रतिष्ठा मानी जाती है. महिला के साथ बलात्कार पुरुष की प्रतिष्ठा का अपहरण है, इसलिए समाजित स्तर पर इसे आजतक स्वाकार नहीं किया गया कि पति द्वारा भी पत्नी का बलात्कार किया जा सकता है.  सवाल ये है कि कब देश में वैवाहिक बलात्कार को लेकर कानून बनेगा. कब अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) की ऐसे केस में हिफाजत होगी

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