आखिरकार अनुच्छेद 370 हटा, जानें अब कैसा होगा जम्मू और कश्मीर?

आखिरकार अनुच्छेद 370 हटा, जानें अब कैसा होगा जम्मू और कश्मीर?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ये उम्मीद की जानी चाहिए कि डल झील की सुंदरता बारहों महीने पर्यटकों को लुभाएगी. पूरी दुनिया में डल जैसे शिकारे और कहीं नहीं मिलेंगे. डल झील चारों तरफ पहाड़ियों से घिरी हुई है. एक तरफ निशात बाग है, जिसे जहांगीर ने बनवाया था. शंकराचार्य मंदिर है, खीर भवानी है. क्या हिंदू क्या मुसलमान- कश्मीर की जो सूफ़ी परंपरा है उसके आग़ोश में सब आ जाएंगे.
बड़े बदलाव की ओर कश्मीर

अंततः अनुच्छेद 370 अब अंतिम रूप से हट गया है. इसकी वैधानिकता पूरी तरह समाप्त हो गई है. 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने फैसला किया कि राष्ट्रपति को इसे हटाने का पूरा अधिकार था. संसद ने इसे हटाने का निर्णय किया और राष्ट्रपति ने उस पर मुहर लगाई. इसको हटाने का फैसला करते समय सभी विधिसम्मत औपचारिकताएं पूरी की गई थीं. इसे दोबारा कभी लागू नहीं किया जा सकता. एक तरह से इसको भूल जाना ही उचित होगा. जम्मू-कश्मीर राज्य पाकिस्तान और चीन से घिरा ही नहीं है, बल्कि इसकी काफी जमीन पर इन दोनों देशों का क़ब्ज़ा है. जबकि यह संपूर्णतः भारत राष्ट्र का हिस्सा है. क्योंकि महाराजा हरि सिंह ने इस रियासत का पूरी तरह से भारत में विलय को स्वीकार किया था. इसलिए भी भारत का पूरा हक़ है, कि वह कश्मीर के पूरे हिस्से को अपना मानें.

आज की तारीख़ में स्थिति यह है कि महाराजा हरि सिंह की रियासत जम्मू-कश्मीर का महज़ 48 प्रतिशत हिस्सा भारत के पास है. जबकि 35 प्रतिशत हिस्से पर पाकिस्तान का क़ब्ज़ा है और 17 प्रतिशत चीन ने क़ब्ज़ाया हुआ है. अक्साई चिन तथा शक्सग्राम पर चीन अपना हक़ जमाता है. जबकि विलय के पूर्व ये सभी हिस्से महाराजा हरि सिंह के पास थे. पाकिस्तान की तरफ़ से क़बायली हमला जब हुआ तब महाराजा ने 26 अक्तूबर 1947 को विलय पत्र पर साइन किये और कश्मीर भारत का हिस्सा बना. हालांकि महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर को डोमीनियन दर्जा दिलवाने की शर्त राखी, जो भारत ने मान ली. यह सही है कि आज़ादी के वक्त कश्मीर में मुसलमानों की संख्या अधिक थी, लेकिन कश्मीर के मुसलमानों ने पाकिस्तान जाने की इच्छा कभी जतायी नहीं इसलिए लॉर्ड माउंटबेटन का यह आग्रह ग़लत था, कि नियमतः कश्मीर पाकिस्तान को मिलना चाहिए.
कश्मीर में किसकी, कितनी आबादी?

पिछली जनगणना (2011) के अनुसार कश्मीर में मुस्लिम आबादी लगभग 85.67 लाख है, जबकि हिंदू यहां 35.66 लाख हैं. पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में कोई 40 लाख मुसलमान हैं. ये मुसलमान भी खुद को पाकिस्तान के साथ असहज पाते हैं. कश्मीर के ये सभी हिस्से मिल कर एक ऐसा सुंदर भू-भाग रचते हैं, जिसके आगे स्वीटजरलैंड की खूबसूरती फीकी है. हरी-भरी वादियां, कल-कल कर बहती नदियां और बर्फीले मैदान मन मोह लेते हैं. भले उत्तराखंड और हिमाचल में हिमालय के पहाड़ कच्चे हों लेकिन निरंतर बर्फ गिरने के कारण कश्मीर में यही हिमालय खूब मजबूत है. 1980 के पहले तक बम्बइया फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में होती थी. लोग गर्मियां गुजारने कश्मीर घाटी जाते थे. डल लेक के शिकारे सभी के आकर्षण के केंद्र थे. इसी वजह से कश्मीर में पर्यटन से इतनी आमदनी थी कि आम कश्मीरी को रोजी-रोटी के लिए न पलायन करना पड़ता था न केंद्र का मुंह देखना पड़ता था.

कश्मीर की केसर, कहवा, कालीन उद्योग और दस्तकारी की डिमांड पूरी दुनिया में थी. लेकिन 370 के चलते कश्मीर का विकास सीमित था. कोई उद्योग धंधे कश्मीर में खुल नहीं सकते थे. 370 और 35A ने इतनी बंदिशें लगा राखी थीं कि कोई भी इंवेस्टर कश्मीर घाटी में आने को राजी नहीं था. कुल मिलाकर कश्मीर एक ऐसा राज्य था, जिसकी खूबसूरती की तारीफ तो सभी करते परंतु यहां बसने या पैसा लगाने के बारे में कभी नहीं सोचते थे. कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार को कश्मीर से ऐसा भावनात्मक लगाव था कि वे येन-केन-प्रकारेण कश्मीर को बस भारत से हिलगाये रखना चाहते थे. इस राज्य को मुख्यधारा में लाने का प्रयास कभी नहीं किया गया. नतीजा यह हुआ कि कश्मीर भारत में होते हुए भी न होने जैसा था. भाजपा की इस बात के लिए तारीफ करनी चाहिए कि उसने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए पूरी ताकत लगाई और वह इसमें सफल भी हुई.

सातवां दशक और कश्मीरी पंडित

मैं तीन बार कश्मीर घाटी गया हूं. पहली बार 1973 में और फिर 1998 में और आखिरी बार 2014 में. पहली यात्रा स्कूल की तरफ से प्रायोजित थी. उस समय कश्मीर के किसी भी इलाक़े में निर्भय घूम सकते थे. तब सैयद मीर कासिम जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री थे. तब तक पाकिस्तान ने इस तरफ घुसपैठ नहीं शुरू की थी. कश्मीर के सौदागर जाड़ों में क़ालीन लाद कर दिल्ली, बम्बई और कलकत्ता निकल जाते तथा उन्हें बेच कर पैसा कमाते. गर्मियों में मैदान से पर्यटक आते. यही कश्मीर की आमदनी थी. उस समय भी कश्मीर की केसर अव्वल थी, लेकिन उसके बाज़ार का प्रचार-प्रसार नहीं हुआ था अतः वह स्पेन की केसर से मात खा गई. कश्मीरी सेबों का भी कोई मार्केट तब तक नहीं पनपा था. 1970 के दशक में कश्मीरी पंडित भी घाटी में बेखौफ घूमते थे.

लेकिन 1998 तक आते-आते माहौल बदल चुका था. कश्मीर में आतंक और भय का माहौल था. श्रीनगर शहर के अंदर घुसना मुश्किल था. हर निगाह आप पर चौकस रहती. सुरक्षा बल और आम नागरिकों की भी. बीच-बीच में सेना की कोई जीप भी गुजरती रहती. लाल चौक एक ऐसी संधि रेखा थी, जिसे पार करना असंभव था. तब वहां फारूख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे. वे एक ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो केंद्र और अब्दुल्ला परिवार की अभिजात्यता को बनाए रखने के बीच सेतु का काम करते थे. वे अपना अधिकांश समय दिल्ली में गुज़ारते, श्रीनगर में बस उनकी लीगेसी चलती. उनके बारे में कहा जाता था कि जब वे हार जाते तो लंदन चले जाते और अगर जीत गए तो दिल्ली. आम कश्मीरियों की दिक्कतों और परेशानियों को समझने की उन्होंने कभी कोई कोशिश नहीं की. इसलिए भी कश्मीर की जनता बदहाल होती गई. उस समय कश्मीर घाटी से पंडित एकदम समाप्त हो चुके थे.

इसके बाद 2014 की जुलाई में मेरा कश्मीर जाना हुआ. तब मेरी यात्रा का मकसद अमरनाथ जाकर दर्शन करना था. उस समय वहां उमर अब्दुल्ला की सरकार थी. वे शेख अब्दुल्ला के पोते और फारूख अब्दुल्ला के बेटे थे. उनकी शिक्षा दीक्षा ब्रिटेन के स्कॉटलैंड से हुई और वे कश्मीर घाटी के मुसलमानों की स्थिति सुधारने के पक्ष में थे. मुख्यमंत्री बनने के पूर्व वे केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रह चुके थे. लेकिन उनकी राह में रोड़ा स्वयं उनके पिता फारूख अब्दुल्ला थे. वे कभी आग-उगलू भाषण नहीं देते थे. लेकिन 1971 के बाद से पाकिस्तान जिस तरह से कभी पंजाब तो कभी कश्मीर में आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रहा था, उसकी आग से कश्मीर जल रहा था. श्रीनगर से बाल्टाल जाते समय कई जगह हमारी बस पर पथराव भी हुआ. यह पथराव पाकिस्तानी पोषित तत्त्व कर रहे थे.

जब बीजेपी ने महबूबा मुफ़्ती को बनाया था सीएम

किंतु कश्मीर की अलग स्थिति के चलते पाकिस्तानी घुसपैठिये राज्य का माहौल बिगाड़ रहे थे. इसे रोकने का एक ही तरीका था, किसी तरह वहां से धारा 370 हटाई जाए. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने एक प्रयोग किया 4 अप्रैल 2016 को भाजपा के सहयोग से महबूबा मुफ़्ती को राज्य का मुख्यमंत्री बनवा दिया. वे दो तरफ़ से घिर गईं, एक तरफ़ तो मुस्लिम कठमुल्ला और दूसरी तरह हिंदू कट्टरपंथी. कठुआ ज़िले में एक आठ वर्ष की बच्ची के साथ बलात्कार हुआ. आरोपी एक हिंदू पुजारी था. एक तरफ़ उनसे न्याय मांगा जा रहा था दूसरी तरफ भाजपा के विधायक आरोपी के पक्ष में अड़ गए. उधर घाटी में आतंकी तत्त्वों ने रमजान के पवित्र महीने के सीजफायर का उल्लंघन कर भारी हिंसा की. नतीजा यह हुआ कि केंद्र के पर्यवेक्षक राम माधव ने मुफ़्ती सरकार से हाथ खींच लिया. अंततः जून 2018 में पद से इस्तीफ़ा दे कर वे हट गईं. इसके बाद 2019 का लोकसभा चुनाव वे लड़ीं किंतु नेशनल कांफ्रेंस के हंसनैन मुसैदी के मुक़ाबले चुनाव हार गईं.

इसके बाद का घटनाक्रम तेजी से घटा. 5 अगस्त 2019 को संसद में मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटा लेने की घोषणा की. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य की विधानसभा भी समाप्त कर दी गई. दो केंद्रशासित क्षेत्र बने, जम्मू कश्मीर और लद्दाख. किंतु शीघ्र ही जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने की बात मान ली गई मगर लद्दाख को केंद्र शासित क्षेत्र बनाए रखने का निर्णय हुआ. लोकसभा और राज्यसभा में अनुच्छेद 370 व 35 A को हटाने का बिल पास होने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस पर मुहर भी लगा दी थी. इसके विरोध में कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में आईं और 11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि जम्मू-कश्मीर राज्य से 370 तथा 35A को हटाने में किसी भी क़ानून का उल्लंघन नहीं हुआ है. यह पूर्णतया विधि-सम्मत है. इस तरह एक विवादास्पद कानून का अंत हुआ. कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर राज्य का चुनाव सितंबर 2024 तक करवा लिया जाए.

जम्मू-कश्मीर को क्या क्या होगा फायदा?

370 के खात्मे का लाभ जम्मू-कश्मीर को मिलेगा. जो कश्मीरी अभी तक शेष देश में संशय की निगाह से देखे जाते थे, वह अब खत्म हो जाएगा. असली लाभ यह होगा कि अब कश्मीर में इंवेस्टर भी आएंगे. इससे यहां रोजगार के मौके उपलब्ध होंगे. बेरोजगारी के चलते कश्मीरी युवा भ्रमित हो कर आतंकवाद की तरफ आकर्षित होते हैं, वह समाप्त हो जाएगा. कश्मीरी सेब, केसर और कहवा का निर्यात बढ़ेगा. कश्मीरी केसर विश्व में सर्वश्रेष्ठ है, परंतु उसका बाजार अभी तक सीमित रहा है. रामबन के आगे से ही कश्मीरी केसर का इलाका शुरू हो जाता है, जो आगे अनंतनाग और लथपुरा तक जाता है. इसी तरह सोफियान, पुलवामा और सोपोर का सेब जो आतंकवाद कि चपेट में था, अब खुल कर फूले-फलेगा और पूरी दुनिया में जाएगा. यहां की दस्तकारी बेजोड़ है, उसे भी बाजार मिलेगा.

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