किसी भी धर्म में शादी, माता-पिता की मंजूरी जरूरी नहीं….
किसी भी धर्म में शादी, माता-पिता की मंजूरी जरूरी नहीं…. जानिए कोर्ट मैरिज से जुड़े 10 सवालों के जवाब
स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत दो अलग-अलग धर्म, जाति समुदाय और यहां तक विदेशी भी किसी भारतीय के साथ शादी के बंधन में बंध सकते हैं.
बॉलीवुड के ‘सर्किट’ यानी एक्टर अरशद वारसी आजकल चर्चाओं में बने हुए हैं. कारण है 25 साल बाद अपनी शादी को कोर्ट में रजिस्टर करवाना. अरशद ने 25 साल पहले 1999 में मारिया से शादी की थी. अब उसे रजिस्टर कराया है.
जब अरशद वारसी से पूछा गया कि उन्होंने 25 साल बाद अपनी शादी को कोर्ट में रजिस्टर्ज क्यों कराया? तो उन्होंने कहा- ये हमने कानून के खातिर किया.
पहले कभी ऐसा ख्याल ही नहीं आया. प्रॉपर्टी खरीदते समय या कभी भी दोनों में से किसी की डेथ हो जाए तो कानूनी प्रूफ के तौर पर ये होना जरुरी है.
इस स्पेशल स्टोरी में आप जानेंगे कि शादी के बाद कोर्ट में रजिस्टर क्या जरूरी होता है, कोर्ट मैरिज के क्या नियम हैं, कौन से कोर्ट में मैरिज होती है, क्या समलैंगिक या विदेशियों को भारत में कोर्ट मैरिज का अधिकार है, खर्चा कितना आता है और उत्तराखंड में UCC लागू होने के बाद क्या नियम बदल गए हैं?
मैरिज सर्टिफिकेट कितना जरूरी
मैरिज सर्टिफिकेट यह साबित करता है कि आपकी शादी कानूनी तौर पर रजिस्टर्ड है. इस सर्टिफिकेट की आवश्यकता कई स्थितियों में पड़ती है, जैसे कि पासपोर्ट लेने, ज्वाइंट बैंक अकाउंट खुलवाने, जीवन बीमा पॉलिसी लेने या अपना उपनाम बदलना आदि. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए शादी के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बना दिया था.
कैसे होती है कोर्ट मैरिज
भारत में शादी एक पवित्र बंधन माना जाता है. पारंपरिक विवाह के अलावा भारत में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत कोर्ट मैरिज का भी ऑप्शन मौजूद है. यह उन लोगों के लिए एक अच्छा ऑप्शन है जो सामाजिक समारोह या खर्चे से बचना चाहते हैं या जिनके रिश्ते को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिल पा रही है.
किसी भी धर्म, जाति या वर्ग के लड़का और लड़की कोर्ट में जाकर शादी कर सकते हैं. खास बात ये है कि कोर्ट मैरिज में किसी भी तरह के धार्मिक रीति रिवाज नहीं होते हैं. कोर्ट में मैरिज ऑफिसर के सामने सारे जरूरी दस्तावेज जमा कराए जाने के बाद लड़का और लड़की को सिर्फ साइन करना होता है. इसके बाद दोनों कानूनी रूप से पति-पत्नी माने जाते हैं.
भारत में कोर्ट मैरिज के नियम
स्पेशल मैरिज एक्ट-1954 के अनुसार, कोर्ट मैरिज के लिए लड़की की कम से कम उम्र 18 साल और लड़का 21 साल का होना चाहिए. दोनों मानसिक रूप से स्वस्थ होने चाहिए. दोनों में से कोई भी शादीशुदा नहीं होना चाहिए. दोनों का शादी के लिए सहमत होना अनिवार्य है. दोनों पक्ष एक-दूसरे के सपिंड नहीं होने चाहिए. नियम का उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई हो सकती है.
कोर्ट मैरिज के लिए सबसे पहले आपको ऑफलाइन या ऑनलाइन फॉर्म भरकर आवेदन करना होता है. फॉर्म के साथ सभी जरूरी डॉक्यूमेंट्स भी लगाने होते हैं.
ये डॉक्यूमेंट्स हैं- दोनों का आधार कार्ड, दोनों की 10वीं व 12वीं की मार्कशीट, 5-5 पासपोर्ट साइज फोटो, निवास प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, अगर तलाक हुआ है तो उसका सर्टिफिकेट और विधवा है तो पहले पति का डेथ सर्टिफिकेट. ऑफलाइन सत्यापन के लिए मूल दस्तावेजों के साथ दस्तावेजों की फोटोकॉपी के दो सेट लेकर जाना होता है.
घोषणा पत्र में क्या लिखा होता है
ऑनलाइन आवेदन के बाद 30 दिन का नोटिस पीरियड दिया जाता है. सभी डॉक्यूमेंट्स वेरिफाई करने के बाद कोर्ट में मैरिज की तारीख मिल जाती है. तय तारीख वाले दिन लड़का-लड़की को दो-तीन गवाहों के साथ रजिस्ट्रार के सामने उपस्थिति होना होता है.
दूल्हा-दुल्हन और गवाहों को रजिस्ट्रार के सामने एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने होते हैं. घोषणा पत्र में लिखा होता है कि ये शादी बिना किसी दबाव के उनकी खुद की मर्जी से हो रही है.
उसी दिन सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है.इसके लिए किसी वकील की जरूरत नहीं होती है. गवाह के तौर पर लड़का या लड़की पक्ष से कोई भी उनके दोस्त या पारिवारिक सदस्य हो सकते हैं. मुस्लिम मैरिज एक्ट के अनुसार, गवाह सिर्फ पुरुष ही हो सकते हैं.
कोर्ट मैरिज के लिए कहां जाएं
कोर्ट मैरिज के लिए आपको आपके जिले के कोर्ट मैरिज कार्यालय जाना होता है. कुछ राज्यों में, विशेष कोर्ट मैरिज कार्यालय होते हैं. ये कार्यालय केवल कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन स्वीकार करते हैं.
क्या तत्काल कोर्ट मैरिज संभव है?
हां. अप्रैल 2014 में दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग ने एक तत्काल सर्विस शुरू की थी. तत्काल फीस का भुगतान करके मैरिज सर्टिफिकेट को प्राथमिकता दी जाती है और एक ही दिन में अनुमति दे दी जाती है. यह सर्विस 22 अप्रैल 2014 से जारी है.
राजधानी दिल्ली के अलावा कुछ अन्य राज्यों में भी तत्काल मैरिज सर्टिफिकेट सर्विस उपलब्ध है. हालांकि, इसकी प्रक्रिया और फीस अलग-अलग हो सकती है.
क्या माता-पिता की मंजूरी चाहिए?
कोर्ट मैरिज के लिए माता-पिता की मंजूरी जरूरी नहीं है. शर्त बस इतनी है कि कोर्ट मैरिज के लिए निर्धारित सभी नियमों का पालन किया गया हो.
कितनी फीस देनी पड़ती है
कोर्ट मैरिज फीस पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करती है कि लड़का और लड़की का धर्म (हिंदू, मुस्लिम, ईसाई आदि) क्या है. क्या कोई विदेशी नागरिक है या दोनों भारतीय नागरिक हैं. आप पहले से शादीशुदा हैं या नहीं. दोनों का धर्म एक है या अलग-अलग. किस कानून के तहत शादी कर रहे हैं. हिंदू विवाह अधिनियम, ईसाई विवाह अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम आदि. न्यूनतम फीस 1000 रुपये होती है.
अगर कोई एक विदेशी या NRI है तो?
लड़का-लड़की में से अगर कोई एक पक्ष विदेशी या एनआरआई है तो क्या भारत में कोर्ट मैरिज संभव है. इस सवाल का जवाब है हां बिल्कुल. विदेशी विवाह अधिनियम के अनुसार तत्काल फीस का भुगतान करके उसी दिन कोर्ट मैरिज के बाद सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकते हैं.
दूसरे धर्म में कोर्ट मैरिज करने का क्या है नियम
स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत किसी भी धर्म का लड़का या लड़की किसी दूसरे धर्म के शख्स से कोर्ट में मैरिज कर सकता है. अंतर केवल इतना है कि आवेदन के बाद कम से कम 30 दिन बाद शादी हो सकती है. अगर किसी को शादी से आपत्ति है तो शिकायत दर्ज करा सकता है.
अगर इतने दिनों में किसी ने कोई आपत्ति नहीं की तो फीस देकर शादी हो सकती है. कोर्ट मैरिज का घर तक नहीं पहुंचता है बल्कि रजिस्ट्रार ऑफिस में लगता है. दोनों पक्ष चाहें तो पुलिस सुरक्षा भी ले सकते हैं लेकिन सर्टिफिकेट मिलने के बाद.
क्या समलैंगिकों को कोर्ट मैरिज का अधिकार है?
समलैंगिकों को शादी करने का कानूनी अधिकार नहीं है. बीते साल ही सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों की शादी को मान्यता देने से इनकार किया था.
हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि किसी को भी लाइफ पार्टनर चुनने का पूरा अधिकार कोर है. यह उसका मौलिक अधिकार है. लेकिन स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव करना संसद का काम है. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव न किया जाए.
हालांकि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग अभी भी जारी है. कई सामाजिक कार्यकर्ता और LGBTQ+ समुदाय के सदस्य इस फैसले के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और समानता और न्याय की मांग कर रहे हैं.
उत्तराखंड में UCC के बाद कोर्ट मैरिज के नियम बदले हैं क्या?
उत्तराखंड की विधानसभा ने यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल पारित कर दिया है. यूसीसी मतलब समान नागरिक संहिता. उत्तराखंड में अब सभी धर्मों और समुदाओं के लिए कानून एक समान होगा. यूसीसी लागू होने से कोर्ट मैरिज के नियमों में कुछ खास बदलाव नहीं होगा. क्योंकि कोर्ट मैरिज के नियम पहले से सभी धर्मों के लोगों के लिए समान है