क्या कांग्रेस को छोड़ अब BJP का दामन थामेंगे कमलनाथ?

इंदिरा ने बेटा माना, संजय के लिए जेल गए… क्या कांग्रेस को छोड़ अब BJP का दामन थामेंगे कमलनाथ?
कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की चर्चा जोरशोर से चल रही है. कमलनाथ ने अपना राजनीति का करियर कांग्रेस के साथ शुरू किया था. कमलनाथ को गांधी परिवार का नजदीकी माना जाता है. इंदिरा गांधी तो उन्हें अपना तीसरा बेटा मानती थीं.
इंदिरा ने बेटा माना, संजय के लिए जेल गए... क्या कांग्रेस को छोड़ अब BJP का दामन थामेंगे कमलनाथ? पढ़ें सफरनामा

इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब राजीव गांधी राजनीति में आए तो कमलनाथ उनके भी करीबी रहे.Image Credit source:

आज जिन कमलनाथ के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की चर्चा जोरशोर से चल रही है, उन दिग्गज कांग्रेसी कमलनाथ को इंदिरा गांधी अपना तीसरा बेटा मानती थीं. साल 1980 में मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से पहली बार सांसद बने कमलनाथ फिर वहीं के होकर रह गए. इस चुनाव के बाद उन्हें छिंदवाड़ा से हराना टेढ़ी खीर हो गया तो कांग्रेस में भी उनका कद लगातार बढ़ता गया. वह कमलनाथ ही हैं, जिन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा से सत्ता छीन ली थी. यह और बात है कि बाद में भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता वापस ले ली थी. अब अगर कमलनाथ पार्टी बदलते हैं तो यह भाजपा के लिए फायदा कम, कांग्रेस के लिए नुकसान ज्यादा होगा.

संजय गांधी के लिए चले गए थे जेल

कमलनाथ राजनीति में आए तो नेहरू-गांधी परिवार के करीबी के रूप में, जिसकी नींव दून स्कूल में ही रखी जा चुकी थी. दरअसल, कमलनाथ दून स्कूल में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के दोस्त थे. इसी दोस्ती के कारण कमलनाथ ने युवा कांग्रेस की राजनीति में कदम रखा. यह दोस्ती इतनी गहरी थी कि इमरजेंसी के बाद बनी नई सरकार ने जब संजय गांधी को गिरफ्तार किया, तो जेल में उनका साथ देने के लिए कमलनाथ ने जज से अभद्रता की और खुद भी तिहाड़ चले गए थे. इसके बाद ही वह इंदिरा गांधी की नजरों में आए और राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते चले गए. फिर जब देश की पहली सस्ती कार मारुति के निर्माण की कल्पना की गई तो उसमें भी कमलनाथ संजय गांधी के साथ खड़े थे.

Kamalnath Gandhi Family

स्कूल में कमलनाथ और इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी दोस्त थे.

इंदिरा से राहुल गांधी तक को भरोसा

कांग्रेस ने साल 1980 में पहली बार कमलनाथ को मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से टिकट दिया. तब उनके लिए प्रचार करने खुद इंदिरा गांधी पहुंची थीं. उन्होंने अपने चुनावी भाषण में यह तक कहा था कि आप लोग कांग्रेस के नेता कमलनाथ को नहीं, मेरे तीसरे बेटे कमलनाथ को वोट दीजिए. उस दौर में तो लोग यहां तक कहने लगे थे कि इंदिरा गांधी के दो हाथ संजय गांधी और कमलनाथ. इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी राजनीति में आए तो कमलनाथ उनके भी करीबी रहे. फिर राहुल गांधी भी उन पर इतना भरोसा करते हैं कि अपने करीबी ज्योतिरादित्य की जगह पर उन्होंने कमलनाथ को मध्य प्रदेश का सीएम बनाया था.

छिंदवाड़ा से लगातार जीतते रहे चुनाव

सातवीं लोकसभा के लिए पहली बार छिंदवाड़ा से सांसद बनने के बाद कमलनाथ ने मुड़कर नहीं देखा. 1984, 1989, 1991 में भी उन्होंने जीत हासिल की. जून 1991 में उन्हें केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया. 1995-96 में टेक्सटाइल मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का कामकाज देखा. 1998 और 1999 के चुनाव में भी उन्होंने बाजी मारी. 2004 के आम चुनाव में जीतने के बाद उन्हें केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री बनाया गया. 2009 के चुनाव के बाद उन्हें केंद्र में फिर मंत्री बनाया गया. इस बार उन्हें रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाईवे की जिम्मेदारी दी गई. 2011 में शहरी विकास मंत्री बनाए गए, जिसके साथ अक्तूबर 2012 में संसदीय कार्यमंत्रालय का कामकाज भी उन्हें सौंप दिया गया. साथ ही कई और अहम मंत्रालय संभाले. 2001 से 2004 तक कमलनाथ कांग्रेस के महासचिव भी रहे.

कमलनाथ छिंदवाड़ा से नौ बार सांसद बने तो इसका कारण केवल राजनीति में उनका ऊंचा कद नहीं है. उन्होंने इस इलाके में स्कूल-कॉलेज, आईटी पार्क खुलवाए जिससे वहां के लोगों को रोजगार मिला. वेस्टर्न कोलफील्ड्स और हिंदुस्तान यूनिलिवर जैसी कंपनियां, क्लॉथ मेकिंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और ड्राइवर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट अगर छिंदवाड़ा में हैं तो इसका श्रेय भी कमलनाथ को ही जाता है.

बंगले के लिए पत्नी से दिलवा दिया इस्तीफा

हालांकि, छिंदवाड़ा से एक चुनाव में भाजपा के दिग्गज सुंदरलाल पटवा ने हरा दिया था. इसकी बड़ी दिलचस्प कहानी है. 1996 में कमलनाथ पर हवाला कांड का आरोप लगा था. तब कांग्रेस ने उनकी पत्नी अलकानाथ को चुनाव मैदान में उतारा और वह जीत गईं. उधर, कमलनाथ सांसद नहीं रहे, इसलिए उन्हें तुगलक लेन पर मिला बंगला खाली करने का नोटिस दे दिया गया. कहा जाता है कि इस बंगले के दरवाजे छिंदवाड़ा से आने वाले लोगों के लिए हमेशा खुले रहते थे. इसलिए कमलनाथ नहीं चाहते थे कि बंगला उनके हाथ से जाए. उन्होंने प्रयास किया कि बंगला उनकी पत्नी को मिल जाए पर पहली बार सांसद बनीं अलकानाथ को वह बंगला नहीं दिया जा सकता था, क्योंकि वह वरिष्ठ सदस्यों के लिए आरक्षित था. ऐसे में कमलनाथ ने अपनी पत्नी से इस्तीफा दिला दिया और खुद चुनाव मैदान में कूद गए. यह और बात है कि इस चुनाव में उनको सुंदरलाल पटवा ने हरा दिया था.

सीएम बने पर नहीं मिला लंबा कार्यकाल

साल 1993 में कांग्रेस मध्य प्रदेश की सत्ता में आई तो कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा होने लगी थी पर तब अर्जुन सिंह के कहने पर दिग्विजय सिंह को सीएम बना दिया गया और कमलनाथ केंद्र की राजनीति में ही बने रहे. साल 2018 में शिवराज सिंह चौहान का लगातार एक और बार सीएम बनने का सपना तोड़कर कांग्रेस सत्ता में आई तो लंबी जद्दोजहद के बाद कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया था. बाद में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदला और राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस 22 विधायकों को लेकर पार्टी से अलग हो गए. इनमें छह तो मंत्री थे. इन सभी के इस्तीफे के बाद कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई और 97 दिनों बाद ही कमलनाथ को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. इसके बाद से ही वह खुद को नेपथ्य में महसूस कर रहे हैं.

विवादों से ज्यादातर दूर ही रहे

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप को छोड़ दें तो कमलनाथ को गांधी परिवार का नजदीकी माना जाता रहा पर विवादों से उनका ज्यादा नाता नहीं रहा. एक बार हवाला कांड में नाम आने के बाद कमलनाथ का नाम भ्रष्टाचार के किसी और बड़े मामले में सामने नहीं आया. इंदिरा गाधी की हत्या के बाद 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में जरूर उनका नाम आया था पर सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर की तरह उन पर सीधे आरोप सिद्ध नहीं हुए थे. कमलनाथ पर आरोप था कि वह एक नवंबर 1984 को नई दिल्ली में स्थित रकाबगंज गुरुद्वारा में मौजूद थे, तभी भीड़ ने दो सिखों को जला दिया था. कमलनाथ ने इससे कभी इनकार भी नहीं किया. उनका कहना है कि वह पार्टी के कहने पर वहां भीड़ को हिंसा से रोकने के लिए मौजूद थे, न कि लोगों को उकसाने के लिए.

कारोबारी कमलनाथ का जाना कांग्रेस को पड़ेगा भारीखुद का अरबों का कारोबारी साम्राज्य और 50 साल से ज्यादा का राजनीतिक अनुभव होने के बावजूद कई मायनों में कमलनाथ खुद को हमेशा लो प्रोफाइल ही रखते आए हैं. काम ज्यादा और चर्चा कम जैसी उपाधि उन्हें दी जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. कमलनाथ का कारोबार उनकी पत्नी और बेटे नकुल व बकुल संभालते हैं. रियल इस्टेट, एविशन, प्लांटेशन से लेकर हॉस्पिटैलिटी तक के क्षेत्र में उनका कारोबार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर फैला है. वह आईएमटी गाजियाबाद के निदेशक हैं तो लगभग 23 कंपनियों के बोर्ड में भी शामिल हैं. अब चर्चा है कि कमलनाथ भाजपा में जा रहे हैं तो इसका एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि राजनीति में वह अपने बेटे नकुलनाथ का भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं. अगर ऐसा होता है तो यह कांग्रेस के एक और किले के ढहने से कम नहीं होगा.

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