कमलनाथ का मन बदलने की वजह ?
कमलनाथ का मन बदलने की 5 वजह
सोनिया-राहुल की नाराजगी से कांग्रेस में हाशिए पर, सिख दंगों की रिपोर्ट, बेटे-भांजे की भी चिंता
मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ के भाजपा में शामिल होने की अटकलें हैं। कमलनाथ अपने सांसद बेटे नकुलनाथ के साथ दिल्ली भी पहुंच गए हैं। उधर, कांग्रेस के नेता खुद पत्रकारों से सवाल पूछ रहे हैं कि इंदिरा के तीसरे बेटे कांग्रेस क्यों छोड़ेंगे?
इस सबके बीच भी कुछ मजबूत वजह है, जो कमलनाथ और नकुलनाथ के बीजेपी में शामिल होने की अटकलों को ताकत देती है। 17 फरवरी की दोपहर जब कमलनाथ दिल्ली पहुंचे तो यहां भी उन्होंने भाजपा में शामिल होने के सवाल को खारिज नहीं किया। सिर्फ यही कहा कि आप क्यों उत्साहित हो रहे हैं।
जाना कि आखिर वो कौन सी वजह है, जिसके चलते 77 साल के कमलनाथ कांग्रेस के 44 साल के साथ को छोड़ने पर विचार कर रहे हैं।
- सिख दंगों में कमलनाथ के रोल पर 23 अप्रैल को आएगी एसआईटी की रिपोर्ट
1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में कमलनाथ के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली याचिका पर कोर्ट ने एसआईटी से स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। 23 अप्रैल को अगली सुनवाई होनी है।
दिल्ली में बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कमलनाथ के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए याचिका लगाई थी। जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच में इस मामले की सुनवाई चल रही है।
कमलनाथ पर भीड़ को उकसाने का आरोप है। इस हमले में दो लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि इससे पहले अलग-अलग जांच कमीशन की रिपोर्ट में कमलनाथ की कोई भूमिका नहीं मिली थी।
कमलनाथ पहले कह चुके हैं कि मैं इसमें किसी भी तरह की जांच का सामना करने के लिए तैयार हूं, लेकिन 6 फरवरी 2024 को इस मामले लगी एक याचिका को कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है।
- 354 करोड़ के बैंक फ्रॉड में भांजे रतुल पर ईडी का केस
कमलनाथ के भांजे रतुल पुरी और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 2020 में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज किया है। इस मामले में ईडी ने रतुल को गिरफ्तार भी किया था।
आरोप है कि रतुल जिस कंपनी मोजरवेयर के निदेशक थे, उस कंपनी ने गलत दस्तावेजों के आधार पर 354 करोड़ रुपए का लोन लिया था। अगस्त 2019 में सबसे पहले सीबीआई ने इस मामले में एफआईआर की थी। इसके बाद ईडी ने भी केस दर्ज किया। इस मामले में रतुल गिरफ्तार हुए और अब जमानत पर हैं।
4 साल बाद अगस्त 2023 में इसी केस में ईडी ने रतुल के सहयोगी नितिन भटनागर को गिरफ्तार किया था। हालांकि रतुल ने जांच एजेंसी को ये बताया है कि वे इस कंपनी के डायरेक्टर पद से 2012 में ही अलग हो चुके थे। इस मामले में रतुल की मां नीता और पिता दीपक पुरी को भी ईडी ने आरोपी बनाया है।
- बेटे नकुल का राजनीतिक भविष्य और कारोबार की चिंता
जानकारों का कहना है कि एमपी में चुनाव हारने के बाद कमलनाथ की प्रदेश की राजनीति में ज्यादा अहमियत नहीं बची थी। मध्य प्रदेश आने से पहले वे 40 साल तक केंद्र की राजनीति में ही सक्रिय रहे।
खुद मुख्यमंत्री बनकर कमलनाथ ने बेटे को छिंदवाड़ा के सांसद का चुनाव लड़वाया और जितवाया। नकुल को वे राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। अब कांग्रेस की कमान छूटने के बाद कमलनाथ को सबसे ज्यादा चिंता नकुल की है।
नकुल ये साफ कर चुके हैं कि छिंदवाड़ा से वही सांसद के उम्मीदवार होंगे। कमलनाथ चुनाव नहीं लड़ेंगे। कमलनाथ के बिना नकुल के लिए कांग्रेस के ईकोसिस्टम में बहुत गुंजाइश नहीं है। बेटे के पॉलिटिकल करियर और कारोबार के लिए कमलनाथ को सुरक्षित पॉलिटिकल प्लेटफॉर्म की जरूरत है।
- एमपी की हार का ठीकरा सोनिया-राहुल ने कमलनाथ पर फोड़ा
गांधी परिवार और कमलनाथ को नजदीक से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही कमलनाथ कांग्रेस में हाशिए पर चले गए। कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में एमपी की हार का ठीकरा कमलनाथ पर फोड़ा गया।
जबकि राजस्थान की हार के लिए अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ की हार के लिए भूपेश बघेल के साथ गांधी परिवार का वैसा रवैया नहीं रहा।
कमलनाथ की जानकारी के बिना मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी में जीतू पटवारी को अध्यक्ष बनाया गया। कमलनाथ के अध्यक्ष रहते जीतू पटवारी कांग्रेस में साइड लाइन रहे। कमलनाथ ने सार्वजनिक तौर पर ऐसा कभी बयान नहीं दिया, लेकिन उन्हें जानने वाले कहते हैं कि पार्टी हाईकमान के रुख से वे नाराज है।
- दिल्ली से लेकर एमपी तक कमलनाथ का रुतबा घटा
कमलनाथ की पहचान कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में रही है, लेकिन एमपी की हार के बाद उनका रुतबा दिल्ली से लेकर एमपी तक में कमजोर हुआ है। गांधी परिवार भी अब कमलनाथ के बहुत नजदीक नहीं है।
एमपी चुनाव में मिली हार के लिए जब कमलनाथ की भूमिका पर हाईकमान ने सवाल उठाए तो उन्होंने चुनाव में हुए निजी खर्च का ब्यौरा तक रख दिया था। इसके बाद हाईकमान से कमलनाथ के रिश्ते पहले की तरह नहीं रह गए हैं। इन हालातों में वे खुद और बेटा नकुल अब सहज महसूस नहीं कर रहे हैं।
फिर, मध्यप्रदेश में नए अध्यक्ष के तौर पर जीतू पटवारी को मौका देकर हाईकमान ने कमलनाथ को इशारों-इशारों में कई संकेत दे दिए। सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी भी कह चुके हैं कि जिसे जाना है जाए, वे अब किसी को नहीं रोकेंगे।
अब समझिए भाजपा का फायदा कैसे
ये तो हुआ सिक्के का एक पहलू, दूसरा ये है कि एमपी में क्लीन स्वीप के लिए छिंदवाड़ा बीजेपी के लिए सबसे बड़ा रोड़ा है। मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में अभी छिंदवाड़ा छोड़कर बाकी 28 में भाजपा के सांसद हैं। छिंदवाड़ा में विधानसभा चुनाव के दौरान जिले की सभी 7 सीटों पर भाजपा हार गई। भाजपा जानती है कि कमलनाथ के रहते छिंदवाड़ा जीतना आसान नहीं है।
भाजपा ने अपनी विस्तारवादी रणनीति के तहत पहले ही ये साफ कर दिया था कि दूसरी पार्टी के दिग्गज नेताओं को भाजपा में शामिल करके वे अपनी ताकत में इजाफा करेंगे। महाराष्ट्र पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चौहान और मिलिंद देवड़ा को भाजपा में लाकर भाजपा ने अपने इरादे साफ कर दिए।
मध्यप्रदेश में कमलनाथ जिस तरह अपनों के बीच घिरे हैं, उसमें भाजपा ने एक मौका देखा है। भाजपा को भी पता है कि कमलनाथ को तोड़कर वे कांग्रेस को मनोवैज्ञानिक तौर पर तोड़ देंगे। भाजपा ने पूरी रणनीति के तहत कमलनाथ को भाजपा में शामिल करने की योजना बनाई है।
भाजपा को क्या देना होगा..
भाजपा छिंदवाड़ा से नकुल को उम्मीदवार बनाने का ऑफर दे सकती है। जाहिर है कि इससे भाजपा को भी फायदा होगा और नकुल को भी। भाजपा को छिंदवाड़ा मिल जाएगा और नकुल को सांसदी।
कमलनाथ के लिए क्या विकल्प…
केंद्र में सक्रिय होंगे, ऐसा नहीं हुआ तो राज्यपाल बन सकते हैं
कमलनाथ दिल्ली लौटकर केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो जाएंगे। यदि बात बनी तो वे किसी दूसरे राज्य से राज्यसभा सदस्य बनकर संसद पहुंच जाएंगे। यानी कमलनाथ 77 साल की उम्र में दिल्ली की राजनीति में दोबारा स्थापित हो जाएंगे और नकुल की राह भी आसान हो जाएगी।
इस बात की भी अटकलें लग रही हैं कि कमलनाथ कांग्रेस भी छोड़ दें और भाजपा भी जॉइन न करें। वे सिर्फ नकुलनाथ को भाजपा जॉइन कराएं। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और कमलनाथ के बीच उन्हें गवर्नर बनाने पर भी सहमति बन सकती है।
इंदिरा के तीसरे बेटे का टैग भी भाजपा के लिए फायदेमंद
भाजपा के लिए एक और बड़ा फायदा है। कमलनाथ को इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा कहा जाता है। खुद इंदिरा ने 1980 में छिंदवाड़ा की सभा में कमलनाथ के लिए यह कहकर वोट मांगे थे। भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की इमेज बिगाड़ने में इस नेरेटिव का भी इस्तेमाल कर सकती है। भाजपा प्रचारित करेगी कि इंदिरा का तीसरा बेटा भी कांग्रेस छोड़ गया।