ईरान और अमेरिका के बीच अघोषित जंग छिड़ चुकी है !
ईरान और अमेरिका के बीच अघोषित जंग छिड़ चुकी है
ये अक्सर कहा जाता है कि दुनिया में सबसे खतरनाक हॉट स्पॉट ताइवान और चीनी मुख्य भूमि के बीच का जलमार्ग है, जहां चीनी नौसेना और वायुसेना ताइवान को धमकाने के लिए हर दिन अपनी ताकत दिखाती हैं- जबकि अमेरिकी नौसेना वहां पर पास ही में गश्त करती रहती है।
लेकिन जिस जगह का हाल ही में मैंने दौरा किया है, उसकी तुलना में आप ताइवान जलडमरूमध्य को परस्पर प्रतिरोध के संतुलन की एक ऐसी आरामदेह जगह मान सकते हैं, जहां कोई चाहे तो नौका-दौड़ का एक मैत्रीपूर्ण खेल भी खेल सकता है!
पिछले सप्ताह मैंने दो दिन सीएच-47 चिनूक हेलीकॉप्टर में पश्चिमी जॉर्डन और पूर्वी सीरिया में सात अमेरिकी सैन्य अड्डों के बीच अमेरिका के वरिष्ठ मध्य-पूर्व सेंटकॉम कमांडर जनरल माइकल कुरिला के साथ बिताए।
यहां कोई संतुलन नहीं स्थापित किया जा रहा है। इसके बजाय यहां एक और मध्य-पूर्व युद्ध जारी है, जो 7 अक्टूबर को शुरू हुए इजराइल-हमास युद्ध के तुरंत बाद शुरू हुआ था। इस दूसरे मध्य-पूर्व युद्ध में ईरान और उसके सहयोगी- हूती, हिजबुल्ला और इराक के शिया सैन्यवादी मिलकर सीरिया, जॉर्डन और इराक में स्थित अमेरिकी ठिकानों के छोटे नेटवर्क के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं।
इन नेटवर्कों को आईएसआईएस को नष्ट करने के लिए 2014 के बाद स्थापित किया गया था। साथ ही वे लाल सागर और अदन की खाड़ी में अमेरिकी नौसैनिक दखल के खिलाफ भी कमर कसे हुए हैं और वहां के महत्वपूर्ण शिपिंग-लेन पर डेरा डाले हुए हैं।
इराक में ये ईरानी-हथियारबंद शिया सैन्यवादी और यमन में हूती लड़ाके ऊपर से एक बड़ा खतरा भले न दिखाई देते हों, लेकिन किसी भुलावे में न रहें। उन्होंने दुनिया के सबसे आधुनिक हथियारों को बनाना और उनका इस्तेमाल करना सीखा है। उनके हथियार 500 मील दूर से भी मात्र तीन फीट चौड़े किसी लक्ष्य पर वार कर सकते हैं।
उनके खिलाफ तैनात युवा अमेरिकी सैनिकों और नाविकों ने वीडियो गेम तो बहुत खेले हैं, लेकिन अब उनका सामना असली चीज से है। वे सॉफ्टवेयर और कर्सर्स की मदद से दुनिया के सबसे परिष्कृत काउंटर-मेजर्स और इंटरसेप्टर्स को तैनात करके ईरान और उसके गुर्गों के द्वारा उन पर छोड़े जा रहे लगभग हर रॉकेट और ड्रोन को नष्ट कर रहे हैं।
अमेरिका में रहने वालों को भले नहीं पता होगा कि वे ईरान के साथ युद्ध में हैं, लेकिन ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स निश्चित रूप से जानते हैं कि वे अपने सहयोगियों के साथ अमेरिका से एक शैडो-वॉर छेड़े हुए हैं।
और अगर इनमें से कोई ईरानी सहयोगी ‘भाग्यशाली’ साबित होता है और किसी अमेरिकी युद्धपोत या जॉर्डन या सीरिया में मौजूद अमेरिकी ठिकानों में से किसी एक के बैरक पर हमला करके बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति कर बैठता है- जो कि 1983 में बेरूत में मरीन कॉर्प्स बैरक पर बमबारी के समान होगा- तो अमेरिका और ईरान के बीच का यह टकराव खुलकर सामने आ जाएगा। नतीजा, उस क्षेत्र में लड़ाई का मंजर नजर आने लगेगा, जिस पर दुनिया तेल के लिए सबसे अधिक निर्भर है।
यह दूसरा मध्य-पूर्व युद्ध 17 अक्टूबर को- यानी हमास द्वारा इजराइल पर हमले के महज दस दिन बाद- हरकत में आ गया था। गाजा युद्ध की आड़ में और उससे पैदा हुई अमेरिका-विरोधी भावना से प्रभावित होकर ईरान ने यह परखने की कोशिश की कि क्या वह इराक, पूर्वी सीरिया और उत्तरी जॉर्डन में अमेरिकी फैसिलिटीज़ के नेटवर्क को कमजोर कर सकता है, या अमेरिकी सेना को पूरी तरह से वहां से हटा सकता है।
लेकिन मुझे लगता है ईरान के दिमाग में एक और मकसद था : अमेरिका के अरब सहयोगियों को यह दिखाना कि वह उनके आका को कितना नुकसान पहुंचा सकता है। तीन कारणों से यह वर्तमान में चल रहे तमाम युद्धों में से सबसे खतरनाक है।
पहला, ईरान और उसके सहयोगियों के द्वारा यहां तैनात किए गए रॉकेट, मिसाइल और ड्रोन्स की भारी तादाद। दूसरा, उनकी चौंका देने वाली आक्रामकता। और तीसरा, इसमें हर दिन किसी घातक हमले का खतरा सिर पर मौजूद होना जिसमें एक बार में 20 या उससे अधिक अमेरिकी सैनिकों-नाविकों की जान जा सकती है। इनके कारण ईरान के द्वारा अमेरिका से जो शैडो-वॉर लड़ा जा रहा है, वह किसी भी दिन खुलकर सामने आ सकता है।
ईरान के द्वारा अमेरिका से जो शैडो-वॉर लड़ा जा रहा है, वह किसी भी दिन खुलकर सामने आ सकता है। यह वर्तमान में दुनिया में चल रहे तमाम संघर्षों में से सबसे खतरनाक है, जबकि अमेरिकियों को इसकी भनक तक नहीं है।
(द न्यूयॉर्क टाइम्स से)