भोपाल : दो सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों की हकीकत ?

दो सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों की हकीकत …
हमीदिया में कार्डियक यूनिट 11वें फ्लोर पर; एम्स में भूलभुलैया, पता नहीं चलता कहां जाएं

हमीदिया और एम्स। शहर के दो सबसे बड़े सरकारी अस्पताल। रोजाना यहां ओपीडी में ही 8000 से ज्यादा मरीज आते हैं। भोपाल और आसपास ही नहीं पूरे प्रदेश से मरीज यहां बेहतर इलाज व सुविधा की आस लिए पहुंचते हैं। लेकिन, इन अस्पतालों में छोटी-छोटी लापरवाहियों के चलते उन्हें परेशानी उठानी पड़ रही है।

हर ब्लॉक में 13 लिफ्ट, इनमें से 3-4 ही चालू हालत में

राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल हमीदिया की एनाटॉमी ही गड़बड़ है। करीब 482 करोड़ की बिल्डिंग तो बना दी गई लेकिन मरीजों की जरूरत के हिसाब से ये ध्यान नहीं रखा गया कि कौन सा विभाग या सुविधा कहां होनी चाहिए। इसकी बानगी है अस्पताल का काडियोलॉजी विभाग। इमरजेंसी में तत्काल इलाज की जरूरत के लिहाज से होना इसे चाहिए ग्राउंड फ्लोर पर, लेकिन हमीदिया में ये है 11वें फ्लोर पर।

अब ये कहा जा सकता है कि ​मरीज लिफ्ट से जा सकते हैं, लेकिन इसकी अपनी कहानी है। यहां कहने को तो हर ब्लॉक में 13 लिफ्ट हैं, लेकिन चलने लायक स्थिति में हर ब्लॉक में सिर्फ 3-4 ही हैं। यह स्थिति आए दिन रहती है। ऐसे में मरीजों और परिजनों को रैंप के सहारे ऊपरी मंजिलों तक पहुंचना पड़ता है।जीएमसी डीन डॉ. कविता सिंह का कहना है कि चुनाव बाद विभाग प्रमुखों के साथ प्लान बनाएंगे। जरूरत पड़ने पर शिफ्टिंग भी करेंगे।

एक्सरे कराने आधा किमी दूर जाना पड़ रहा: हमीदिया में ओपीडी नए भवन में शिफ्ट होने के बाद अब एक्सरे की पर्ची कटवाने के लिए नए ब्लॉक में और एक्सरे कराने के लिए दूसरे ब्लॉक में जाना पड़ रहा है। मरीजों को तपती धूप में परेशान होना पड़ता है।

एक्सपर्ट व्यू – लिफ्ट खराब होने जैसी स्थिति तो न बने
सुविधा की दृष्टि से यह ठीक है कि कार्डियोलॉजी विभाग ग्राउंड फ्लोर पर हो। लेकिन यदि ऊपरी मंजिल पर भी है तो फास्ट मूविंग लिफ्ट की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही 24 घंटे 100 फीसदी पॉवर बैकअप भी हो। लिफ्ट खराब होने जैसी स्थिति तो बननी ही नहीं चाहिए। –विनय प्रकाश श्रीवास्तव, हॉस्पिटल प्लानर

35 डिपार्टमेंट, डॉक्टर तक पहुंचने में ही कड़ी मशक्कत

एम्स भोपाल में नेविगेशन की कमी सबसे बड़ी परेशानी है। 137 एकड़ में फैले अस्पताल में 35 से अधिक डिपार्टमेंट में मरीजों का इलाज किया जाता है। लेकिन डिस्प्ले बोर्ड और नेविगेशन साइन न होने से मरीज और परिजन भूलभुलैया में ही घूमते रह जाते हैं। उन्हें इलाज के लिए विभाग और डॉक्टर तक पहुंचने में ही काफी मशक्कत करनी पड़ जाती है।

यदि किसी को ट्राॅमा यूनिट में जाना होता है, तो वह या तो ओपीडी वाले रास्ते में चला जाता है या फिर जनऔषधि केंद्र वाले गेट से अंदर चला जाता है और भटकता रहता है। हैरत की बात तो यह है कि एम्स जैसे बड़े संस्थान में भी मरीजों के परिजनों को खुद ही स्ट्रेचर और व्हीलचेयर खींचनी पड़ रही हैं।

नेविगेशन की दिक्कत दूर करने हम एंट्री गेट की तरफ होर्डिंग लगवाएंगे, ताकि मरीजों को भटकना ना पड़े। साथ ही साइनेज सिस्टम को और बेहतर करेंगे।-एम्स

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