भारत की अर्थव्यवस्था के लिए क्या होगा अगला कदम?
भारत की अर्थव्यवस्था के लिए क्या होगा अगला कदम?
चुनाव परिणामों ने व्यापक राहत दी है। मतदाताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि वे राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने वाली किसी भी अनुचित शैली का समर्थन नहीं करेंगे। कई विकासशील देश तानाशाही और पक्षपाती अथवा क्रोनी पूंजीवाद में फिसल गए हैं, जहां कुछ बड़े व्यापारिक घराने अर्थव्यवस्था के सभी उपकरणों को नियंत्रित करते हैं और राष्ट्र को दीर्घकालीन नुकसान पहुंचाते हैं।
भारत को भी एक बड़े जोखिम का सामना करना पड़ा है। लेकिन चुनाव परिणाम बतलाते हैं कि औसत मतदाता परिपक्व है, जोखिम को पहचानता है, और वह देश को इस रास्ते पर ले जाने की अनुमति नहीं देगा।
चुनाव के बाद सबके मन में बड़ा सवाल है कि अर्थव्यवस्था का क्या होगा? समग्र जीडीपी के संदर्भ में, पिछले दो वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था ने अच्छा प्रदर्शन किया है। 2023-24 में 8.2% की वृद्धि अच्छा प्रदर्शन है। हालांकि, जब आप समग्र दृष्टिकोण से हटकर जमीनी स्तर पर देखते हैं, तो तस्वीर अलग दिखाई देती है।
गरीब और यहां तक कि मध्य वर्ग के बड़े हिस्से ने आय में गिरावट देखी है, कॉलेज से नए निकले युवाओं को अभूतपूर्व बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है, और किसान और छोटे व्यवसाय जीविका कमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
हम जीडीपी वृद्धि के समाचार को आम लोगों के आर्थिक संघर्ष के बुरे समाचार के साथ कैसे संतुलित कर सकते हैं? विभिन्न प्रकार के डेटा से हम देख सकते हैं कि यह इसलिए हो रहा है क्योंकि लगभग सारी जीडीपी वृद्धि का लाभ अत्यधिक अमीरों की जेब में जा रहा है।
कृषि वर्ग को ही लें। यह हमेशा से ऐसा क्षेत्र रहा है, जहां भारत का अधिशेष श्रम एकत्रित होता है। कृषि वर्ग भारत के जीडीपी का लगभग 15% उत्पादन करता है। हालांकि, इस क्षेत्र में श्रमिक वर्ग का 40% से अधिक हिस्सा काम करता है, जिसका अर्थ है कि इन लोगों की कमाई अन्य क्षेत्रों के श्रमिकों की तुलना में बहुत कम है।
उनके पास कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग और सेवा जैसे क्षेत्रों में पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं। जो सत्य है लेकिन व्यापक रूप से ज्ञात नहीं है, वह यह है कि यह समस्या और बदतर हो गई है। 2018-19 में, भारत के श्रमिक वर्ग का 42.5% कृषि वर्ग में था। यह पहले ही चिंताजनक आंकड़ा इसके बाद और खराब हो गया। 2022-23 में, यह 45.8% हो गया। क्योंकि हमारा नीतिगत ध्यान बड़ी कंपनियों की मदद करने में लगा था।
अब महंगाई पर विचार करें। भारत की कुल महंगाई दर वर्तमान में 4.8% है। यह अधिक है लेकिन अत्यधिक नहीं है। हालांकि अगर हम इसे उप-घटकों में विभाजित करें, तो पता चलता है कि खाने-पीने की चीजों की महंगाई 8.7% पर बहुत अधिक है। और सब्जियों की कीमतों में महंगाई पिछले 4 महीनों से 27% है। यह चौंका देने वाली बात है।
अब देखें कि एक अमीर परिवार के कुल मासिक खर्च का कितना प्रतिशत खाना और सब्जियां खरीदने में जाता है। अमीरों के लिए यह 5% तक भी हो सकता है, जो कि काफी कम है, जबकि गरीब परिवारों के लिए यह 50% या इससे भी अधिक हो सकता है।
इसका मतलब है कि खाने-पीने की चीजों और सब्जियों की उच्च महंगाई का गरीब परिवारों पर अमीर परिवारों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रभाव पड़ता है। सिर्फ 4.8% की कुल महंगाई की बात करने से यह बात सामने नहीं आती।
यह संभव है कि इन समस्याओं का समाधान किया जाए और देश को एक बार फिर विकास की राह पर लाया जाए, जिसका लाभ सभी को मिले। बस अपनी गलतियों को स्वीकारने और उन्हें सुधारने का साहस चाहिए। भारत में अपार प्रतिभा और विशेषज्ञता है। हमें चाहिए कि हमारे राजनेता इसे पहचानें और विनम्रता से इस प्रतिभा का उपयोग करते हुए महत्वपूर्ण नीतियों पर निर्णय लेने के लिए विशेषज्ञों को मौका दें।
अब रोजगार सृजन की बड़ी चुनौती पर विचार करें। इसके लिए कई उपायों की आवश्यकता होगी। इनमें से एक है श्रम कानूनों का सुधार। अगर औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 को समझदारी से संशोधित किया जाए, तो हमारा मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र उड़ान भर सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर बन सकते हैं।
हालांकि, इसे तकनीकी तरीके से और विस्तार से ध्यान देकर किया जाना चाहिए। हमें वह गलती नहीं दोहरानी चाहिए, जो सरकार ने कृषि कानूनों के साथ की थी। इन कानूनों में सुधार के नाम पर ऐसे परिवर्तन किए गए थे, जो कृषि उत्पादों की बिक्री को कुछ बड़े व्यवसायों के हाथों में ही केंद्रित कर देते।
दूसरा क्षेत्र जिसे सुधारने की जरूरत है, वह है शिक्षा। भारत की उच्च शिक्षा, जब से 1951 में पहला आईआईटी स्थापित की गई थी, बहुत ही अच्छी रही है। इस क्षेत्र को पनपने के लिए हमें अपने विश्वविद्यालयों को रचनात्मकता, नए विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए जगह देनी होगी। अर्थव्यवस्था की सफलता की कुंजी यह है कि राष्ट्रीय हित को राजनीतिक हित से ऊपर रखा जाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)