जागो ! डॉ मोहन प्यारे ,जागो !!

जागो ! डॉ मोहन प्यारे ,जागो !!

मै अपने मध्य्प्रदेश और अपने प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से बहुत लगाव रखता हूँ। मेरा अपने सूबे और सूबे के मुख्यमंत्री से भगवान और भक्त का रिश्ता है। ये बात और है कि हमारा कभी सीधा साबका नहीं पड़ा। भक्तों को ये आजादी है ककी वो अपने भगवान से कुछ भी शिकायत कर सकता है। भक्त अपने भगवान से बेहद आत्मीय यानि ‘ तू-तड़ाक ‘ की भाषा भी बोले तो उसका बुरा नहीं माना जाता इसलिए मै हमेशा आपने भगवान को जगाता रहता हूँ ताकि वे सो न जाएँ। वे सोये तो समझिये की सूबे का बड़ा गर्क। वे भटके तो समझिये की सूबे में भाजपा का बड़ा गर्क।
हमारे सूबे के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव पिछले तीन महीने से आम चुनाव में एक यादव नेता के रूप में अपनी पार्टी के लिए काम कर रहे थे । थक गए है। उन्हें उबासियाँ भी खूब आतीं है। चूंकि वे चुनाव में व्यस्त थे इसलिए सूबे की नौकरशाही अपने आप में मस्त हो गए । सचिवालय ठप्प हो गया । कमलनाथ के जमाने में सचिवालय की जो दुर्दशा थी ,ठीक वैसा ही माहौल आजकल भोपाल में है। कोई किसी की सुनने वाला नही। कोई किसी को बूझने वाला नही। कभी-कभी लगता है कि मध्य्प्रदेश में डॉ मोहन यादव का राज नहीं बल्कि सचमुच का राम राज चल रहा है।
अख़बारों और गोदी मीडिया से पता चला है कि हमारे मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव सूबे में क़ानून और व्यवस्था की दशा सुधारने के लिए भारतीय दंड संहिता के बजाय ‘ यूपी की तर्ज पर ‘ बुलडोजर संहिता ‘ का न सिर्फ इस्तेमाल करने की गलती कर रहे हैं बल्कि उसे प्रोत्साहित भी कर रहे है। ये कोशिश उनसे पहले के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी की थी,लेकिन वे समय रहते नींद से जाग गए थे,किन्तु दुर्भाग्य ये है कि हमारे मोहन प्यारे जागने के बजाय और ज्यादा तेजी से झपकियां ले रहे हैं। उनकी सरकार क़ानून और व्यवस्था सम्हालने के लिए पहले से मौजूद 1248 कानूनों का सहारा लेने का बजाय बुलडोजर का सहारा ले रही है। डॉ साहब भूल जाते है कि बुलडोजर क़ानून से भी ज्यादा जन्मांध होता है । बुलडोजर आरोपियों को नहीं बल्कि उन निर्दोष लोगों का भविष्य जमींदोज करता है जिनका अपराध से कोई लेना देना नहीं होता। मोहन प्यारे भूल जाते हैं कि देश का कोई क़ानून किसी भी आरोपी को अदालत से दोष सिद्ध होने तक बुलडोजर से नहीं रौंद सकता ।
हमारे मुख्यमंत्री संयोग से पढ़े-लिखे है। उन्होंने पीएचडी की उपाधि हासिल कीहै लेकिन वे राज-काज चलाने में अनाड़ी साबित हो रहे है। वे भूल रहे हैं कि वे सूबे में जनमत के जिस खलिहान पर खड़े हैं उसकी फसल उन्होंने नहीं बल्कि उनके बड़े भाई शिवराज सिंह चौहान ने बोई और काटी थी । चौहान अब देश कि कृषि मंत्री हैं।
हमारे मोहन प्यारे ने छह महीने में क्या किया इसकी जानकारी सम्भवत :किसी को न होती जो उनकी सरकार की उपलब्धियों के बड़े-बड़े इश्तहार न छपते। इश्तहारों की बैशाखी से चलने वाली सरकारें ज्यादा लोकप्रिय नहीं होती । लोकप्रियता हासिल करने कि लिए जमीन पर काम करना पड़ता है। । हवाई यात्रा से हटकर रेल,बस के साथ ही पदयात्रा भी करना पड़ती है। अपने सूबे कि मतदाताओं से एक रिश्ता कायम करना पड़ता है। शिवराज ने इसी रिश्तेदारी की बिना पर प्रदेश में 18 साल से ज्यादा राज किया। पटखनी भी खाई ,लेकिन फिर से उठ खड़े हुए। मोहन जी, चौहान साहब से कुछ सीख सकते है। अब सीखें या न सीखें ये उनकी मर्जी। डम्पर घोटाले से लेकर सैकड़ों घोटालों के बाद भी शिवराज सिंह सूबे में कैसे लोकप्रिय बने रहे ? इसके बारे में डॉ मोहन यादव को एक बार फिर पीएचडी करना चाहिए।
मै बात बुलडोजर संहिता की कर रहा था । मेरे ख्याल से ये संहिता न किसी संसद से पारित है और न किसी विधानसभा से। ये एक कुंठित और तालिबानी सोच की उपज है ,ये अवाम को भयभीत करने का तरीका है । उत्तर प्रदेश में सुशासन कि लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुलडोजर संहिता का जमकर इस्तेमाल किया और आज भी कर रहे हैं ,लेकिन उन्हने क्या हासिल हुआ ? आम चुनाव में जनता ने भाजपा का सूपड़ा साफ़ कर दिया । जाहिर है कि जनता भारतीय दंड संहिता कि अनुसार तो चल सकती है किन्तु बुलडोजर संहिता को बर्दाश्त नहीं कर सकती। योगी आदित्यनाथ की बुलडोजर संहिता पूरी भाजपा पर ही नहीं खुद प्रधानमंत्री जी पर भी भारी पड़ी। वे खुद काशी से राम-राम जपकर चुनाव जीते। उत्तर प्रदेश में भाजपा की जो दुर्दशा हुई उसका एक ही सन्देश है कि- भाई बुलडोजर संहिता को त्याग दीजिये। बुलडोजर का निशाना संयोग से या इरादतन पेशेवर आरोपियों कि साथ वे समुदाय बनते दिखाई दे रहे हैं जो भाजपा को शुरू से फूटी आँख नहीं सुहाते । हमारे सूबे में तो अब अल्पसंख्यक ही नहीं बल्कि अंग्रेजों कि जमाने में आपराधिक जातियों की फेहरिस्त में शुमार किये गए कंजर भी आ गए हैं।
मध्यप्रदेश को जलसंकट से उबारने, बेरोजगारी से मुक्त करने और विकास कि रास्ते पर तीव्र गति से दौड़ने के लिए जिस सम्यक दृष्ति की जरूरत है वो अभी डॉ मोहन यादव की सरकार में नजर नहीं आ रही। वे प्रधानमंत्री श्री वायुसेवाओं का उद्घाटन करते फिर रहे हैं लेकिन उन्हने नहीं मालूम कि आज भी प्रदेश के ग्वालियर जैसे बड़े शहर में नगर बस सेवा नहीं है। अभी तक ग्वालियर दुर्ग पर पहुँचने के लिए रूप-वे नहीं ह। अभी तक सूबे की सरकार की कोई छाप जनमानस पर पड़ी नहीं है। डॉ यादव यदि अकड़कर चलेंगे तो शायद बात नहीं बनेगी । उनका जन-प्रतिनिधियों और मीडिया से जब तक सीधा,सहज,सरल संवाद कायम नहीं होता तब तक न वे डॉ मोहन यादव ही बन पाएंगे और न ही शिवराज सिंह चौहान। उनके सामने शिवराज सिंह लोकप्रियता की इतनी बड़ी लकीर पहले ही खींच चुके हैं कि उसका मुकाबला करना आसान नहीं है। उन्हें अब चुनावी दौरों से अपने आपको अलग कर सूबे की समस्याओं के निदान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
मध्य्प्रदेश में जितने भी गैर कांग्रेसी और भाजपाई मुख्यमनत्री बने हैं ,मुझे उनमें से सबका काम देखने का अवसर मिला है। सर्वश्री वीरेंद्र सखलेचा,सुंदरलाल पटवा और कैलाश जोशी के अलावा सुश्री उमा भारती,बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान को मैंने कार्य करते देखा है। इनमें से अनेक के साथ मेरे मित्रवत रिश्ते भी रहे। मप्र में भाजपा को सत्ता में लाने वाली उमा जी 9 माह में ही सत्ताच्युत हो गयीं। उनके पंचज को उन्हीं की पार्टी की सरकारों ने भुला दिया । गौर साहब की योजनाओं का भी कोई अता -पता नहीं है । शिवराज सिंह चौहान की सरकार के समय बनी योजनाओं का भी नई सरकार में यही हाल हो रहा है, सिवाय लाड़ली बहना योजना को छोड़कर। डॉ मोहन यादव सरकार सात महीने में ऐसी कोई योजना शुरू नहीं कर पायी है जो लाड़ली लक्ष्मी या लाड़ली बहना योजना का मुकाबला कर उन्हें नयी पहचान दिला सके।
डॉ मोहन यादव के प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है क्योंकि वे किस्मत से मुख्यमत्री बने है। उन्होंने प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के लिए कोई पापड़ नहीं बेले । जिन लोगों ने मुख्यमंत्री बनने के लिए पापड़ बेले थे उनमें से अनेक या तो मार्गदर्शक मंडल में जा चुके हैं या चुपचप अपनी वरिष्ठता भुलाकर डॉ यादव के मंत्रिमंडल में रहकर काम कर रहे हैं । ऐसे में आवश्यक है कि डॉ मोहन यादव यानि हमारे मोहन प्यारे अपने आपको न वीरेंद्र सखलेचा की तरह शुष्क बनने दें, न सुंदरलाल पटवा की तरह अकड़ू बनने दे, न कैलाश जोशी की तरह सुस्त बनने दे। न उमा भारती की तरह अग्निमुखी और आत्म मुग्ध बनने दें ,न बाबूलाल गौर की तरह गिलगिला बनने दे। वे शिवराज सिंह चौहान भी न बनें, बल्कि सबसे अलग सबके मन को मोहने वाले मोहन यादव बने। सुझाव मैंने दे दिए है। बाकी वे खुद समझदार हैं। समझ से काम लेंगे तो हमेशा याद किये जायँगे अन्यथा उन्हें मोशा की जोड़ी कभी भी शंट कर सकती है। वजह साफ़ है कि अभी तक उनकी जड़ें जमीन में नहीं हवा में है। जिन्हें वायुमूल कहा जाता है।

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