संसद राजनीतिक कलह का मंच नहीं है, लेकिन काफी समय से संसदीय मर्यादा का जबरदस्त ह्रास हुआ है। अध्यक्ष का आसन सर्वोपरि होता है। संविधान की दुहाई सब देते हैं, लेकिन पीठासीन अधिकारी के निर्देशों की प्रायः धज्जियां उड़ाई जाती हैं। 18वीं लोकसभा के शपथ ग्रहण के दौरान कुछ सदस्यों ने संवैधानिक शपथ के साथ अपने वाक्य भी जोड़े।