विकास के हर पहलू के लिए युद्ध-स्तर पर हो तैयारी !

विकास के हर पहलू के लिए युद्ध-स्तर पर हो तैयारी

टेक्नोलॉजी और डिजिटलाइज़ेशन से बेशक समाज को फायदा हुआ, लेकिन इसने कई असुरक्षाएं भी पैदा की हैं। वर्ना बीते शुक्रवार, एक सामान्य सॉफ्टवेयर अपडेट की वजह से आए वैश्विक संकट को आप कैसे समझेंगे? ‘फाल्कन सेंसर’ नाम के सॉफ्टवेयर को माइक्रोसॉफ़्ट के सभी ग्राहकों को अपने-आप भेज दिया गया। इसकी कोडिंग में एक गलती थी।

गुरुवार की देर रात, करोड़ों माइक्रोसॉफ्ट डिवाइसों पर पहुंचे इस एरर वाले अपडेट ने बता दिया कि हमारा आधुनिक समाज कितना असुरक्षित है। एयरलाइन, हॉस्पिटल, स्टॉक मार्केट, मीडिया, पेमेंट ऐप, सुपरमार्केट जैसे कई बिज़नेस बुरी तरह प्रभावित हुए।

दिलचस्प यह है कि, इस सॉफ्टवेयर अपडेट को अमेरिका की साइबर सिक्योरिटी कंपनी ‘क्राउडस्ट्राइक’ ने भेजा था। इससे लाखों कंप्यूटर क्रैश हुए और माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम इस्तेमाल करने वाले बिजनेस को नुकसान हुआ।

ये सोचकर हैरान मत होइएगा कि एक कंपनी, दुनिया में इतनी उथल-पुथल कैसे मचा सकती है। क्राउडस्ट्राइक के महज 29 हजार ग्राहक हैं, लेकिन इन ग्राहकों के पास लाखों कंप्यूटर स्क्रीन हैं। जैसे, भारत की सबसे बड़ी एयर ट्रांसपोर्टर इंडिगो एयरलाइंस इसकी एक ग्राहक है, जिसके देश-विदेश में सैकड़ों स्टेशन है।

पूरे घटनाक्रम का इसपर बड़ा असर हुआ और उसके यात्रियों की बिजनेस योजनाएं प्रभावित हुईं। ‘वर्क फ्रॉम होम’ कर रहे लाखों कर्मचारियों पर भी असर हुआ। वहीं, चीनी फैक्ट्री के कर्मचारियों ने लंबे वीकेंड का आनंद लिया क्योंकि उनकी मशीनें नहीं चल रही थीं और उन्हें घर जाने कहा गया।

पर ऐसी कंपनियां भी थीं, जो बड़े समूह के तौर पर खुद के ऑपरेटिंग सिस्टम इस्तेमाल करती हैं। इसलिए उन पर असर नहीं हुआ। जैसे एयर इंडिया ‘लाइनेक्स’ सिस्टम इस्तेमाल करती है, जबकि उसकी अन्य कंपनी एयर इंडिया एक्सप्रेस, एज्यूर का इस्तेमाल करती है, जो माइक्रोसॉफ्ट का हिस्सा है और जिसकी सिक्योरिटी क्राउडस्ट्राइक अपडेट करती है।

आईटी की भाषा में, यह इतिहास का सबसे बड़ा आईटी संकट था। इसे ‘बीएसओडी’ यानी ब्लू स्क्रीन ऑफ डेथ कहते हैं क्योंकि इससे विंडोज़ वाले कंप्यूटरों की स्क्रीन नीली हो जाती है और वे चालू ही नहीं होते।

बड़ी परेशानी यह है कि प्रभावित कंप्यूटरों को मैनुअली ठीक करना पड़ेगा। इससे चीज़ें पटरी पर आने में और ज़्यादा देर लगेगी। दुनिया की सारी सरकारों ने राहत की सांस ली होगी क्योंकि घटना के पीछे नुकसान पहुंचाने वाला कोई पक्ष नहीं था और ये साइबर अटैक नहीं, बल्कि क्रियान्वयन में गलती से हुआ था।

पर ये राहत, हाथ पर हाथ रखकर बैठने का बहाना नहीं हो सकती। यह सिस्टम इस्तेमाल करने वाले एयरलाइन जैसे बिजनेस याद रखें कि संकट के 30 घंटे बाद भी वे बैकलॉग दूर करने में उलझे हैं। मुझे ही इंदौर से मुंबई जाने में सात घंटे लगे और मैं शनिवार देर रात निकल पाया।

वीकेंड की इस डिजिटल त्रासदी ने बताया कि ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भरता के क्या नतीजे हो सकते हैं और आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं कितनी नाजुक हैं। माइक्रोसॉफ्ट व क्राउडस्ट्राइक, अब तक अपने स्तर पर जो भी करते रहे हैं, उसमें उन्होंने ऐसी घटना का नहीं सोचा होगा।

समय आ गया है कि ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर सरकारें व कंपनियां ज्यादा गहराई से मिलजुलकर काम करें, इंफ्रा मजबूत करें। हर परिस्थिति से बचने की तैयारी रखें, ताकि ई-ग्लोबलाइजेशन का जोखिम कम किया जा सके।

फंडा यह है कि डिजिटल इंफ्रा को नुकसान पहुंचाने की फिराक में बैठे हैकरों से बचने के लिए साइबर सुरक्षा मजबूत बनाएं। क्योंकि विकास के अच्छे और बुरे, दोनों पहलू हैं। अच्छे पहलू का लुत्फ उठाने की तुलना में, बुरे पहलू के खतरों से बचने के लिए युद्ध-स्तर की तैयारी ज्यादा जरूरी है।

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