बांग्लादेश में हिंसा.. भारत को क्यों अलर्ट रहने की जरूरत !
बांग्लादेश में बगावत के पीछे है भारत को घेरने वाला ‘चक्रव्यूह’, शकुनि कौन?
आज से एक महीने पहले शेख हसीना चीन दौरे पर गई थीं लेकिन उनकी वहां से वापसी तय समय से पहले ही हो गया था. बांग्लादेश की अस्थिरता और तख्तापलट को शेख हसीना के इसी चीन दौरे से जोड़ा जा रहा है.
इस पूरी घटना के बाद जो हो रहा है वह भारत को चिंता में डालने वाला है. माना जा रहा है कि भले ही शेख हसीना ने इस्तीफा दो दिन पहले दिया हो. लेकिन इस पूरी कहानी की पटकथा एक महीने पहले से लिखी जा चुकी थी. कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ इस पटकथा के पीछे चीन का हाथ बताते हैं तो कुछ अमेरिका है.
दरअसल बांग्लादेश की अस्थिरता और तख्तापलट को शेख हसीना का चीन दौरे से जोड़ा जा रहा है. शेख हसीने के इस्तीफा से एक महीने पहले वह चीन दौरे पर गई थीं लेकिन उनकी वहां से वापसी तय समय से पहले ही हो गई. चीनी दौरे को बीच में छोड़ वापस ढाका पहुंचीं शेख हसीना गुस्से से इतना तमतमायी हुई थी कि उन्होंने बीजिंग को खरी खोटी सुना दी. दौरे के बाद दिए एक बयान में शेख हसीना ने यहां तक कह दिया था कि तीस्ता परियोजना में भले भारत और चीन दोनों देश दिलचस्पी रखते हो, लेकिन वह चाहती हैं कि इस परियोजना को भारत ही पूरा करें.
शेख हसीना का चीन दौरे पर जाना और उसे अधूरा छोड़कर वापस आ जाना इस बात का संकेत था कि बांग्लादेश में आने वाले समय में कुछ बड़ा हो सकता है. ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि चीन के दौरे के एक महीने के भीतर ही बांग्लादेश की आयरन लेडी कही जाने वाली हसीना को देश छोड़कर जाने तक की नौबत कैसे आ गई. क्या ये पूरा घटनाक्रम सिर्फ आरक्षण को लेकर प्रदर्शन पर टिका था या इसके पीछे कई और कारण शामिल हैं. इस रिपोर्ट में जानते हैं.
चीन दौरे पर ऐसा क्या हुआ
10 जुलाई 2024 बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना चार दिनों के लिए चीन दौरे पर गईं थीं. वहां उनकी मुलाकात उनके चीनी समकक्ष ली किया से हुई. चीन और बांग्लादेश के बीच 21 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. इस दौरे में रोहिंग्या मुद्दे से लेकर निवेश और वाणिज्य जैसे तमाम मुद्दों पर भी चर्चा हुई, दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय रिश्तों को सुधारने के लिए भी वकालत की.
शेख हसीना के चीन दौरे के दौरान सब अच्छा चल रहा था लेकिन अचानक 13 जुलाई को वह वापस अपने वतन लौट आईं. शेख हसीना का ये दौरा 14 जुलाई को खत्म होने वाला था. लेकिन, एक दिन पहले आने के बाद दुनियाभर में तमाम तरह की खबरें सुर्खियों में रहीं. इस पूरे दौरे के बारे में शेख हसीना ने स्पष्ट तौर पर तो कुछ नहीं बताया लेकिन बांग्लादेशी मीडिया के मुताबिक चीन ने हसीना को 5 बिलियन डॉलर मदद का वादा किया था, लेकिन केवल 1 बिलियन डॉलर ही मदद करने का ऐलान किया गया. शेख को चीन के दौरे में नागवार गुजरा और लौट आईं.
इसे बांग्लादेश के प्रदर्शन से क्यों जोड़ा जा रहा?
13 जुलाई तक इस देश में आरक्षण को लेकर हल्के फुल्के विरोध प्रदर्शन हो रहे थे लेकिन शेख हसीना के चीन दौरे से वापसी के बाद इस प्रदर्शन में तेजी देखी गई. उनके वापस आने के तीन दिन बाद ही 16 जुलाई को बांग्लादेश का प्रदर्शन हिंसा में बदल गया. इस हिंसा में यूनिवर्सिटी के छात्रों और पुलिस के बीच झड़प में 6 लोगों की जान चली गई. घटना के बाद पीएम शेख हसीना ने लोगों से शांति की अपील की, लेकिन बावजूद इसके हिंसा बढ़ती चली गई.
अब यहां चीन के दखल को इस तरह से देखा जा रहा है कि बांग्लादेश उन देशों में शामिल है जहां की अर्थव्यवस्था पटरी पर थी. यही कारण है कि चीन भी इस देश में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में लगा था. हालांकि शेख हसीना के रिश्ते आज से नहीं बल्कि शुरुआत से ही भारत के साथ है. उनका झुकाव भी भारत की तरफ है.
इस पूरी कहानी का एक पक्ष ये भी है कि बांग्लादेश की कट्टरपंथी पार्टी मानी जाने वाली जमात-ए-इस्लामी, इस बार के लोकसभा चुनाव में भी हिस्सा नहीं ले पाई थी. इस राजनीतिक पार्टी को आईएसआई से मदद मिलती रही है. बांग्लादेश की हिंसा को भी चीन पाकिस्तान में खूब ट्रेंड किया गया.
इस सवाल के जवाब में बीबीसी की एक रिपोर्ट में बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त वीना सीकरी कहती हैं कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस पूरे मामले में विदेशी ताकतें शामिल हैं. आरक्षण में सुधार पर शुरू हुए आंदोलन ने अचानक से जो पूरा स्वरूप बदल लिया है. ये बदलाव बहुत कुछ बताता है.
वहीं दूसरी तरफ बांग्लादेश में भारत के पूर्व उच्चायुक्त हर्ष ऋंगला ने न्यूज एजेंसी एएनआई को इसी सवाल के जवाब में बताया कि, ”आप उन विदेशी ताकतों के शामिल होने की बात से इनकार नहीं कर सकते हैं, जो बांग्लादेश के हितों से और साफ तौर से हमारी सुरक्षा हितों के भी ख़िलाफ़ हैं.” हर्ष ऋंगला ने इस पूरे घटनाक्रम के पीछे आर्थिक कारणों को भी ज़िम्मेदार ठहराया है.
उन्होंने एएनआई को दिए एक बयान में बताया कि पहले तो कोरोना महामारी के कारण बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचा था, उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भी कई ऐसी ज़रूरी चीज़ें हैं जिसके दाम में और इज़ाफ़ा हो गया. इससे ईंधन, भोजन, खाद और वो सभी चीज़ें जो बांग्लादेश आयात करता है उसकी कीमतें बढ़ गईं. ऋंगला का मानना है कि इन वजहों से भी ऐसी स्थिति पैदा हुई कि बांग्लादेश के लोग खासकर युवा सड़कों पर उतर गए.
अमेरिका-पाकिस्तान का हाथ होने की भी चर्चा
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बांग्लादेश में चल रहे उथल-पुथल में अमेरिका और पाकिस्तान का हाथ भी साफ नजर आ रहा है. माना जा रहा है इस छात्र आंदोलन के पीछे कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी शामिल है, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का करीबी है.
दरअसल अमेरिका काफी लंबे वक्त से चाह रहा था कि बांग्लादेश में एक ऐसी सरकार बने, जो इस देश के हितों के बजाय अमेरिकी हितों के लिए काम करे. वहीं शेख हसीना का भारत के साथ गहरे आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को बढ़ावा देना अमेरिका के उन्हीं योजनाओं में आड़े आ रही थीं, जिन्हें वह बंगाल की खाड़ी में लागू करना चाहता है. कई पूर्व भारतीय सैन्य और खुफिया अधिकारियों का दावा है कि अमेरिका लंबे समय से हसीना को सत्ता से हटाकर बांग्लादेश को अस्थिर करना चाह रहा था.
एक्सपर्ट की मानें तो जब बात अमेरिका के नीजी हितों की आती है तो वह किसी भी देश, रणनीतिक साझेदार या सहयोगी की परवाह नहीं करता. ऐसा पहले भी कई बार ऐसा देखा जा चुका है. मौजूदा परिस्थिति की बात की जाए तो अमेरिका को भले ही चीन के खिलाफ भारत के मजबूत कंधो की जरूरत है. लेकिन, अमेरिका ऐसा कभी नहीं चाहेगा कि भारत की भुजाएं इतनी ताकतवर हो जाए कि अमेरिका के लिए उसे मरोड़ना मुश्किल हो जाए.
इन सब का भारत पर कैसे होगा असर
इस्तीफे के बाद पूर्व पीएम शेख़ हसीना ने पड़ोसी देश भारत में शरण ली हैं. यही कारण है कि बांग्लादेश में आए इस सियासी भूकंप के झटके भारत में भी लग सकते हैं. बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त वीना सीकरी ने हाल ही में बीबीसी से बातचीत में बताया कि भारत हमेशा चाह रहा है कि उनके पड़ोसी देश बांग्लादेश में लोकतंत्र बना रहे. यह चाहत भारत की अब भी है…भारत की कोशिश स्थिरता लाने की होगी.”
वहीं भारत और बांग्लादेश के बीच कारोबारी रिश्ते भी काफी मजबूत हैं. दक्षिण एशिया में बांग्लादेश, भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है. भारत ने पिछले 10 सालों में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश को सड़क, रेलवे, बंदरगाहों के निर्माण के लिए हज़ारों करोड़ रुपये दिए हैं.
भारत को घेरने वाला ‘चक्रव्यूह’, शकुनी कौन?
पाकिस्तान के बाद बांग्लादेश में ही चीन का सबसे ज्यादा निवेश है. लेकिन बावजूद इसके इस पूरे मामले पर चीन चुपचाप बैठकर तमाशा देख रहा है. चीन की ये चुप्पी चौंकाने वाली है. यहां तक की चीन के सरकारी मीडिया- ग्लोबल टाइम्स पर भी इस पूरे मामले को लेकर किसी तरह की खबर नहीं छपी है. शेख हसीना का देश छोड़ना और भारत में जाना- यह एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय खबर थी लेकिन चीनी मीडिया ने इसे तवज्जो नहीं दिया.
चीन बांग्लादेश के ताजा हालात पर चुपचाप क्यों है?
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर चीन अब तक चुप क्यों है. डेक्कन हेराल्ड ने इस संबंध में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट प्रकाशित की है. इस रिपोर्ट में बांग्लादेश की मौजूदा हालत के लिए चीन और पाकिस्तान की आईएसआई की भूमिका संदेहास्पद है. रिपोर्ट के मुताबिक ज़मायत-ए-इस्लामी की जिस छात्र शाखा ने विरोध प्रदर्शन को बढ़ाया, उसे भारत विरोधी माना जाता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक आईएसआई इस छात्र इकाई को फंड भी करती है.