वन नेशन-वन इलेक्शन से किसे-कितना फायदा?
वन नेशन-वन इलेक्शन से किसे-कितना फायदा? जानें किन देशों में लागू है ये मॉडल, भारत में कितनी चुनौतियां
One Nation, One Election: चर्चा है कि सरकार संसद में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर विधेयक लाने की तैयारी कर रही है.वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि लोकसभा चुनाव के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जाएं. इसके साथ ही स्थानीय निकायों यानी नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी हों. आइए जान लेते हैं कि कितने देशों में वन नेशन वन इलेक्शन की व्यवस्था है, इससे कितना फायदा या नुकसान होगा? आखिर अब तक इस पर क्यों एक राय नहीं बन पा रही.
केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के सौ दिन पूरे कर लिए हैं. इसके साथ ही एक बार फिर से वन नेशन-वन इलेक्शन की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. सरकार के सूत्रों के हवाले से खबर आई है कि केंद्र सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में ही इसे लागू करेगी. इसके लिए सरकार संसद में विधेयक लाने की तैयारी कर रही है.
क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन का कॉन्सेप्ट?
भारत में वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि संसद के निचले सदन यानी लोकसभा चुनाव के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जाएं. इसके साथ ही स्थानीय निकायों यानी नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी हों. इसके पीछे विचार है कि ये चुनाव एक ही दिन या फिर एक निश्चित समय सीमा में कराए जा सकते हैं. कई सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के साथ ही राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव कराने पर जोर देते रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस समारोह के दौरान लाल किले से अपने भाषण में भी एक देश एक चुनाव की वकालत की थी. उनका कहना था कि देश में बार-बार चुनाव से विकास में बाधा आती है. उन्होंने कहा था कि वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए देश को आगे आना होगा. उन्होंने देश के सभी राजनीतिक दलों से आग्रह किया था कि देश की प्रगति के लिए इस दिशा में आगे बढ़े. यहां तक कि इसी साल हुए लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने इसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी प्रमुखता से शामिल किया था.
आजादी के बाद एक साथ हो चुके हैं चुनाव
आजादी के बाद साल 1950 में देश गणतंत्र हुआ तो साल 1951 से 1967 के बीच के चुनाव पांच साल में होते रहे. तब लोकसभा के साथ ही राज्य विधानसभाओं के भी चुनाव होते थे. साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ ही चुनाव कराए गए. इसके बाद कुछ राज्यों का पुनर्गठन हुआ और कुछ नए राज्य बनाए गए. इसके कारण अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे.
इसलिए राजनीतिक दलों में नहीं बन रही एक राय
वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए सभी राजनीतिक दलों के अलग-अलग विचार हैं. इसीलिए इस पर एक राय नहीं बन पा रही है. राजनीतिक दलों का मानना है कि ऐसे चुनाव से राष्ट्रीय दलों को तो फायदा होगा, लेकिन क्षेत्रीय दलों को इससे नुकसान होगा. इसीलिए खासकर क्षेत्रीय दल इस तरह के चुनाव के लिए तैयार नहीं होते. इनका यह भी मानना है कि अगर वन नेशन-वन इलेक्शन की व्यवस्था की गई तो राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य स्तर के मुद्दे दब जाएंगे. इससे राज्यों का विकास प्रभावित होगा.
अमेरिका में एक साथ होता है चुनाव
जहां तक दूसरे देशों में वन नेशन-वन इलेक्शन की व्यवस्था की बात है, तो इस सूची में अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, कनाडा आदि शामिल हैं. अमेरिका में हर चार साल में एक निश्चित तारीख को ही राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के चुनाव कराए जाते हैं. यहां एकीकृत चुनावी प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए देश के सभी सर्वोच्च कार्यालयों के चुनाव एक साथ होते हैं. इसके लिए संघीय कानून का सहारा लिया जाता है.
फ्रांस और स्वीडन में चुने जाते राष्ट्र और राज्य प्रमुख
भारत की ही तरह फ्रांस में संसद का निचला सदन यानी नेशनल असेंबली है. वहां नेशनल असेंबली के साथ ही संघीय सरकार के प्रमुख राष्ट्रपति के साथ ही राज्यों के प्रमुख और प्रतिनिधियों का चुनाव हर पांच साल में एक साथ कराया जाता है. स्वीडन की संसद और स्थानीय सरकार के चुनाव हर चार साल में एक साथ होते हैं. यहां तक कि नगरपालिका और काउंटी परिषद के चुनाव भी इन्हीं चुनावों के साथ होते हैं. वैसे तो कनाडा में हाउस ऑफ कॉमंस के चुनाव हर चार साल में कराए जाते हैं, जिसके साथ कुछ ही प्रांत स्थानीय चुनाव को संघीय चुनाव के साथ कराते हैं.
वन नेशन-वन इलेक्शन के फायदे
एक देश एक चुनाव का सबसे बड़ा फायदा यह है कि चुनाव का खर्च घट जाएगा. अलग-अलग चुनाव कराने पर हर बार भारी-भरकम राशि खर्च होती है. बार-बार चुनाव होने से प्रशासन और सुरक्षा बलों पर बोझ पड़ता है, क्योंकि उन्हें हर बार चुनाव ड्यूटी करनी पड़ती है. एक बार में चुनाव निपट जाने पर केंद्र और राज्य सरकारें कामकाज पर फोकस कर सकेंगी. बार-बार वह इलेक्शन मोड में नहीं जाएंगी और विकास के कामों पर ध्यान दे सकेंगी.
एक ही दिन चुनाव होने से वोटरों की संख्या भी बढ़ेगी, क्योंकि उनको यह नहीं लगेगा कि चुनाव तो आते ही रहते हैं. वे घरों से निकलकर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने में रुचि दिखाएंगे.
एक देश एक चुनाव के सामने चुनौतियां भी कम नहीं
वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती है संविधान और कानून में बदलाव. एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा. इसके बाद इसे राज्य विधानसभाओं से पास कराना होगा. वैसे तो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल का होता है पर इन्हें पहले भी भंग किया जा सकता है.
ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि अगर लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा भंग होती है तो एक देश, एक चुनाव का क्रम कैसे बनाए रखे.
अपने देश में ईवीएम और वीवीपैट से चुनाव होते हैं, जिनकी संख्या सीमित है. लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने से इनकी संख्या पूरी पड़ जाती है. एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होंगे तो अधिक मशीनों की जरूरत पड़ेगी. इनको पूरा करना भी चुनौती होगी. फिर एक साथ चुनाव के लिए ज्यादा प्रशासनिक अफसरों और सुरक्षाबलों की जरूरत को पूरा करना भी एक बड़ा सवाल बनकर सामने आएगा.
रामनाथ कोविंद कमेटी सौंप चुकी है रिपोर्ट
वैसे वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक कदम आगे बढ़ाते हुए दो सितंबर 2023 को ही इस पर विचार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी. यह कमेटी इसी साल 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है. 191 दिनों तक विशेषज्ञों और स्टेकहोल्डर्स से चर्चा के बाद कमेटी ने 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट दी है. इसमें सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाकर 2029 तक करने का सुझाव दिया गया है, जिससे लोकसभा चुनाव के साथ ही इनके चुनाव भी कराए जा सकें.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हंग असेंबली या नो कॉन्फिडेंस मोशन की स्थिति में पांच साल में से बचे समय के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं. पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं. दूसरे चरण में सौ दिनों के भीतर ही स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं. इसके लिए चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के लिए एक वोटर लिस्ट तैयार कर सकता है. साथ ही सुरक्षा बलों, प्रशासनिक अफसरों, कर्मचारियों और मशीन आदि के लिए एडवांस में प्लानिंग करने की सिफारिश की गई है.