एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर केंद्र सरकार ने देश में और सख्त कानून लागू करने का फैसला लिया है। इसके लिए तीन समितियों का गठन किया है जो ऊपरी श्वसन तंत्र, बिगड़ैल बुखार और आबादी में फैले निमोनिया से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर नियमों पर विचार करेंगी। समितियों में अलग अलग एम्स और देश के शीर्ष चिकित्सा संस्थानों के 19 डॉक्टरों को शामिल किया है।
नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने जानकारी दी है कि आगामी दिनों में एंटीबायोटिक दवाओं से जुड़े दिशानिर्देशों में संशोधन किया जा सकता है। यह तीनों समिति अलग अलग विषय पर वैज्ञानिक तथ्यों के साथ अपनी सिफारिश सौंपेंगी। ऊपरी श्वसन तंत्र को लेकर गठित समिति में कुल 11 डॉक्टर हैं जो दिल्ली, चैन्ने, पुणे, जयपुर, भोपाल, कल्याणी, गोरखपुर, राजकोट, चंडीगढ़ और गुवाहाटी के संस्थानों में कार्यरत हैं। वहीं बिगडैल बुखार को लेकर मणिपाल के कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज और देवघर एम्स के दो विशेषज्ञों को जिम्मेदारी सौंपी है। इसी तरह आबादी में फैले निमोनिया को लेकर समिति में कुल आठ सदस्य हैं जो चेन्नई, पांडिचेरी, दिल्ली, एम्स मंगलागिरी, कोयंबटूर और एम्स देवघर में कार्यरत हैं।
दवाओं का इस्तेमाल किया जाएगा सीमित
आईसीएमआर का कहना है कि देश के अधिकांश हिस्सों में एंटीबायोटिक दवाओं की प्रैक्टिस और स्वयं दवा लेने का रिवाज बना हुआ है। इसकी दूसरी तस्वीर यह है कि भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के मामले भी बढ़ रहे हैं। ऐसे में वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ-साथ नई तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए इन दवाओं के इस्तेमाल को सीमित मात्रा में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
बुखार के शुरुआत में एंटीबायोटिक लेना गलत
बिगड़ैल बुखार को लेकर आईसीएमआर का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में खासतौर पर कोरोना महामारी के बाद से कुछ मरीजों में लक्षण लंबे समय तक देखने को मिल रहे हैं। इनकी पहचान करना काफी मुश्किल होता है। कई बार शुरुआती दिन में ही एंटीबायोटिक दवाएं शुरू कर देते हैं, जिसके चलते आगे चलकर इनके लिए दवाओं के विकल्प काफी सीमित रह जाते हैं। साथ ही इन दवाओं के कारण रोगाणुरोधी प्रतिरोध की आशंका भी रहती है।
30 से 40 फीसदी तक मामले बढ़े
इन्फ्लुएंजा ए (एच1एन1) और (एच3एन2) के अलावा इन्फ्लूएंजा बी, पैराइन्फ्लूएंजा 3, रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (आरएसवी) और एडिनोवायरस आबादी में प्रसारित हैं। हाल ही में जीनोमिक्स-आधारित जांच करने वाले हेस्टैकएनालिटिक्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सितंबर से दिसंबर 2023 के बीच दिल्ली और एनसीआर में श्वसन संबंधी समस्याओं से जुड़े मामलों में 30 से 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है।