जानें कहां से आई गिन्नी, वजन और नाप-जोख को लेकर बड़ी बहस ?
टाइम मशीन: जानें कहां से आई गिन्नी, वजन और नाप-जोख को लेकर बड़ी बहस; ये कंपनी बनाना चाहती है ट्रेंडिंग करेंसी
सोना यानी गोल्ड आज भी वैश्विक समृद्धि का पवित्र और भौतिक आधार है। ब्रिटिश राज गुजर लिया, मगर गुलामी के दिनों की गिन्नी का राज जारी है। सोना इस दिवाली के पहले से ही तप रहा है, तो गिन्नी और चमक कर निखरी है। सोने के सिक्के आज भी ढाले जाते हैं, जिन पर भले ही ब्रिटिश पहचान चिह्न न हों, मगर बाजार इन्हें गिनी या गिन्नी ही कहता है। बुलियन मार्केट में इसी नाम से सौदे होते हैं।
‘याश्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्व लक्ष्मी…’ पंडित जी के मंत्र पाठ के बीच मुनीम जी ने लाल थैली सेठ जी को पकड़ाई। सेठ जी ने थैली को सिर से लगाया, गांठ को आहिस्ता से खोला और हाथ डालकर कुछ काले से सिक्के गणेश-लक्ष्मी के दीपकों में डाल दिए। पंडित जी बोले, ‘यही तो पूछ रहे थे कि पुरानी गिन्नी कहां गई पूजा वाली… अब ठीक है…।’ सेठ जी बोले, ‘दादा के जमाने से हो रही इनकी पूजा, अब तो पता नहीं कौन-सी गिन्नी किस सन की है।’ पूजा के बाद ये गिन्नियां फिर पोटली में सो जाएंगी।
सोना यानी गोल्ड आज भी वैश्विक समृद्धि का पवित्र और भौतिक आधार है। ब्रिटिश राज गुजर लिया, आज का यूनाइटेड किंगडम दुनिया की पहली पांच अर्थव्यवस्थाओं में भी नहीं है, मगर गुलामी के दिनों की गिन्नी का राज जारी है। सोना तो इस दिवाली के पहले से ही तप रहा है, तो गिन्नी (औसतन 8 से 8.4 ग्राम) और चमक कर निखरी है। पूजा, तोहफे और निवेश के लिए सोने के सिक्के आज भी ढाले जाते हैं, जिन पर भले ही ब्रिटिश पहचान चिह्न न बने हों, मगर बाजार इन्हें भी गिनी या गिन्नी ही कहता है। बुलियन मार्केट में इसी नाम से सौदे होते हैं।
गोल्ड स्टैंडर्ड खत्म होने के बाद गिनी नाम की यह स्वर्ण मुद्रा, जिसे गणेश-लक्ष्मी के साथ पूजा जाता है, किसी सम्राट, टकसाली या अर्थविद की सोच से नहीं निकली, बल्कि यह एक अभिशप्त भूगोल के नाम से दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित मुद्रा बन जाने की दास्तान है। तो चलिए, बैठते हैं टाइम मशीन में और निकलते हैं पुरानी गिन्नियों की तलाश में।
यह पंद्रहवीं सदी का आखिरी दशक है। टाइम मशीन पश्चिम अफ्रीका के तट पर बने एक किले पर मंडरा रही है। यह साओ जॉर्ज द मिना है, यानी कुख्यात एलमिना कैसल। सफेद रंग की भीमकाय इमारत में चर्च है, गवर्नर का घर है, बैरक हैं। किले के आसपास बड़ा शोर-गुल है। इस किले में बड़े-बड़े कैदखाने हैं, जिनमें 600 पुरुष और 400 महिलाएं कैद हैं। यह शोर-गुल इन्हीं गुलामों का है, जिनका कारोबार इस किले से होता है। यह हिस्सा 21वीं सदी के घाना में होगा और तब यह किला अपनी दंतकथाओं के साथ एक बड़ा स्मारक बन चुका होगा।
फिलहाल किले के भीतर-बाहर पुर्तगाली हैं-सैनिक, कारोबारी और कारिंदे। एलमिना को बने ज्यादा वक्त नहीं बीता है। किले के इर्द-गिर्द आपको पुर्तगाली नाम सुनाई देंगे-जैसे जिल एंस और हेनरी द नेविगेटर। कुछ लोग बड़े फख्र और बहुत से लोग बड़ी हिकारत से ये नाम ले रहे हैं। पिरंस हेनरी द नेविगेटर पुर्तगाल के शाही परिवार से आते हैं। उन्हें समुद्री खोजों का राजकुमार कहा जा रहा है। बाद में उन्हें अफ्रीका का सबसे बड़ा लुटेरा भी कहा जाएगा। इस वक्त हेनरी द नेविगेटर के साहस का प्रमाण बनकर खड़ा है एलमिना का किला। हेनरी द नेविगेटर ने जिल एंस को पश्चिम अफ्रीका की तरफ भेजा। पश्चिम अफ्रीका के तट पर यह किस्सा अभी ताजा है, जब (1434) जिल एंस ने पहली बार केप बोजाडार पार किया था। अफ्रीका के पश्चिम में अटलांटिक तट पर इन इलाकों को अरब के लोग अबू खत्तर यों ही नहीं कहते थे। समुद्री चट्टानों से भरे इलाके से वापसी नामुमकिन थी, मगर जिल एंस ने अबू खत्तर यानी केप बोजाडार को पार किया और पुर्तगाली अफ्रीका पहुंच गए। जिल एंस ने पुर्तगाली तख्त का सबसे बड़ा सपना पूरा कर दिया है। पुर्तगाली अफ्रीका के गोल्ड कोस्ट यानी सुनहले तट पर पहुंच गए हैं। पुर्तगालियों को यहां गुलाम भी मिले और सोना भी। अफ्रीका का यह हिस्सा सदियों से सोने के कारोबार के लिए मशहूर है। लिस्बन का राज इसी खजाने के लिए बेचैन है। किंग जॉर्ज (द्वितीय) अफ्रीकी सोना देखकर झूम उठे हैं। पुर्तगाल सोने की मुद्रा जारी करने वाला है। जिल एंस के कदम पड़ने के बाद लिस्बन के शाही गलियारों में इस इलाके को कोस्ट ऑफ गोल्ड माइंस कहा जा रहा है। पुर्तगाली तख्त ने इस किले को एलमिना नाम दिया है, जिसमें मिना शब्द का मतलब है माइन यानी खदान। एलमिना किला बनते ही पुर्तगालियों ने गिनी की खाड़ी पर एक समुद्री व्यापार चौकी बना दी है, जहां से सोना और गुलाम पुर्तगाल भेजे जा रहे हैं। तो लीजिए, गिन्नियों को तलाशते हुए हम आ गए असली गिनी के पास। टाइम मशीन अब आगे बढ़ती है, क्योंकि हमें तो गिन्नी का सफर तलाशना है।
यह 16वीं सदी है। टाइम मशीन पश्चिम अफ्रीका से यूरोप की तरफ बढ़ रही है। अफ्रीका के सोने ने पुर्तगाल को बहुत अमीर बना दिया है। लिस्बन अब यूरोप में सोना बेच रहा है। इस खजाने से उन्होंने और बड़े समुद्री अभियान शुरू किए हैं। उन्हें अब मसालों के कारोबार में आगे आना है। इन अभियानों में वास्को डि गामा भी है, जो पूर्वी अफ्रीका पार करते हुए भारत में कालीकट की तरफ बढ़ रहा है।
अब हम लंदन में हैं। 17वीं सदी के कुछ दशक गुजर चुके हैं। लंदन के कारोबारियों को पता चल गया है कि पुर्तगाल के हाथ एल डोराडो (सोने का काल्पनिक नगर) आ गया है। बर्तानवी व्यापारियों के सीने पर सोने के सांप लोट रहे हैं। वे ब्रिटिश पुर्तगालियों के अफ्रीकी ठिकानों पर हमला करें, इससे पहले ही डच एलमिना के किले पर चढ़ आए हैं।
यह 1637 है। लंदन में खबर आई कि एलमिना का किला अब डच कब्जे में है। 250 साल बाद पश्चिम अफ्रीका तट यानी गिनी की खाड़ी से सोने के कारोबार पर डच का कब्जा है। पुर्तगाली टूट रहे हैं, तो बर्तानवी भी सक्रिय हुए हैं। किंग चार्ल्स द्वितीय के अफ्रीकी अभियानों ने गिनी के सोने तक ब्रिटेन की बड़ी पहुंच बना दी है। यह खबर लंदन के बाजारों में किसी वरदान जैसी उतरी है। गिनी का सोना इतना चमकदार है कि उत्साहित किंग ने तत्काल नए सिक्के ढालने का आदेश दिया है। इससे पहले तक ब्रिटेन में फ्लोरिन, एंजल, नोबेल और क्राउन नाम से सोने के सिक्के प्रचलित थे, जिनकी शुरुआत 13वीं सदी से होती है। अलबत्ता नए सिक्के को सोने के स्रोत यानी गिनी का ही नाम दे दिया गया है। चर्चा है कि किंग चार्ल्स पुर्तगालियों और डच को बताना चाहते हैं कि सोने वाला अफ्रीकी हिस्सा अब ब्रिटेन का है। नए सिक्के यहीं के सोने से बन रहे हैं।
यह 1663 है। शाही टकसाल से पहली गिनी बाहर आई है, वजन करीब चौथाई औंस, कीमत करीब एक पाउंड या 20 शिलिंग। अलबत्ता बाजारों में गिनी के वजन और नाप-जोख को लेकर बड़ी बहस है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया अपना कारोबार फैलाने के लिए गिनी को ट्रेडिंग करेंसी बनाना चाहती है।
शाही तख्त ने आइजक न्यूटन, जॉन लॉक और लॉर्ड सोमर्स की अगुआई में एक रॉयल कमीशन (1700) बनाया है। वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ब्रिटिश टकसाल के मुखिया या मास्टर ऑफ मिंट हैं। उन्होंने गिनी की नाप-जोख और वजन तय कर दिया है। अगले 200 साल तक सोने और गिनी की कीमत का फॉर्मूला बन गया है। ईस्ट इंडिया कंपनी गिनी लेकर दुनिया के मुल्कों में निकल गई है। हमारी यात्रा गिनी के देश गिनी में खत्म होती है। हम गिनी की राजधानी कोनाकरी से करीब 600 किलोमीटर दूर कोरुरोसा गोल्ड माइन के पास हैं। यह गिनी की सबसे नई स्वर्ण खदान है। पश्चिम अफ्रीका में माली, गिनी, आइवरी कोस्ट और सेनेगल में खूब सोना निकल रहा है। अब इसे बहुराष्ट्रीय गोल्ड कंपनियां चलाती हैं। तो गिनी (देश) भी है, गिनी का सोना भी है, गिनी का नाम सिक्का भी है। और ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रांड अब भारतीय ब्रितानी उद्यमी के पास है, जो पुरानी ‘हॉनरेबल’ कंपनी के छाप वाले नए गिनी सिक्के बेचती है।