राजनीति में ‘गद्दार ‘ गाली है या उपाधि ?

राजनीति में ‘गद्दार ‘ गाली है या उपाधि ?

इन दिनों देश में विकास का रथ थमा हुआ है ,चौतरफा केवल और केवल राजनीति हो रही है। लगता है कि ये देश राजनीति के बिना प्रगति कर ही नहीं सकता। पक्ष -विपक्ष में मुद्दों की बात नहीं हो रही बल्कि दोषारोपण हो रहे है। सब -मतदाताओं को भयभीत करने में लगे हैं। एक-दूसरे को हौवा बताने में लगे हैं। इस बीएच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने ‘ गद्दार ‘ शब्द पर आपत्ति की है । और आज का विमर्श यहीं से शुरू होता है कि क्या राजनीति में ‘ गद्दार ‘ शब्द गाली है या उपाधि ?
‘ गद्दार’ एक अरबी शब्द है लेकिन हम हिन्दुस्तानियों की जुबान पर ऐसा चढ़ा है की हिंदी के द्रोही शब्द को भी खा गया। ‘मुझे लगता है कि देश में ‘ गद्दार ‘ शब्द का इस्तेमाल मुगलों के भारत में आने के बाद शुरू हुआ होगा । ‘ गद्दार ‘ संज्ञा है ,विशेषण है या और कुछ ये तो ‘ शब्दों का सफरनामा लिखने वाले हमारे दोस्त बता सकते हैं या दूसरे विद्वान। मुझे तो केवल इतना लगता है कि ‘ गद्दार ‘ कलिकाल में एक गाली है उन लोगों के लिए जिन्होंने लोगों के विश्वास को तोड़ा यानी विश्वासघात किया । तमाम सिद्धांतों,विचारों और नैतिकताओं का परित्याग कर अपनी सियासी बल्दियत बदली और वो भी बेशर्मी के साथ।
महाराष्ट्र के चुनावी माहौल में गद्दार शब्द को चर्चित किया है सूबे के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने । आप जानते हैं कि एकनाथ शिंदे ने बाला साहब ठाकरे की शिवसेना को भाजपा के सहयोग से दो टुकड़ों में बाँट दिया,इसलिए उन्हें मूल शिवसेना के कार्यकर्ता गद्दार कहते हैं और मानते भी हैं। मुंबई में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का काफिला चांदीवली विधानसभा क्षेत्र में जब कांग्रेस के नेता नसीम अहमद खान के दफ्तर से बाहर से निकला तो कुछ कार्यकर्ताओं ने गद्दार-गद्दार कहकर नारेबाजी है। शिंदे को इस नारेबाजी से गुस्सा आया। वह काफिले को रोककर नीचे उतरे और सीधे कुछ ही दूरी पर स्थित कांग्रेस नेता के दफ्तर में पहुंच गए। एकनाथ शिंदे ने नसीम खान के दफ्तर में मौजूद पदाधिकारियों से कहा कि आप कार्यकर्ताओं को यही सिखाते हैं ?
‘ गद्दार ‘ शब्द को लेकर शिंदे का गुस्सा जायज है या नाजायज इसका फैसला महारष्ट्र की जनता हम और आप से ज्यादा बेहतर कर सकती है और शायद करेगी भी। लेकिन हमने ये शब्द अपने छात्र जीवन में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की कहानी पढ़ते हुए पहली बार सुना था। इतिहास कहता है कि प्रथम स्वतांत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाने वाले झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ तत्कालीन ग्वालियर रियासत के शासकों ने ‘ गद्दारी ‘ की थी। रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए जब झांसी से ग्वालियर पहुंचीं तो वहां के शासक सिंधिया अपनी राजधानी छोड़कर चले गए थे।
‘ गद्दारी ‘ की इस कथित लेकिन ऐतिहासिक घटना को सुभद्रा कुमारी चौहान ने आजादी के बाद एक कविता लिखकर जन-जन में चर्चित कर दिया। उनकी कविता की कुछपंक्तियाँ एक तरह से कहावत में तब्दील हो गयी। कालांतर में मैंने भी ‘गद्दार ‘ शीर्षक से एक उपन्यास लिख डाला। उपन्यास ‘ हॉटकेक ‘ की तरह खूब बिका भी। राजनीति में ताजा घटनाक्रम ने ‘ गद्दार ‘ शब्द को एक बार फिर से पुनर्जीवित कर दिय। महाराष्ट्र से पहले मध्यप्रदेश में ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के ही मौजूदा प्रतिनिधि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने कटक के साथ 2020 में कांग्रेस से विद्रोह कर अपने ऊपर गद्दार का तमगा खुद चस्पा कर लिया।ज्योतिरादित्य सिंधिया को शायद गद्दारी की प्रेरणा अपनी दादी श्रीमंत विजयाराजे सिंधिया से मिली । राजमाता ने 1967 में मप्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार कि साथ’ गद्दारी ‘ की थी।हालाँकि सिंधिया परिवार आजतक अपने ऊपर लगे आरोपों को स्वीकार नहीं करत। बाद में तो जहां भी दल-बदल हुआ ,पार्टियां टूटी या तोड़ी गयीं ‘ गद्दार ‘ शब्द गरिमा हासिल करता गया।
‘ गद्दार ‘ शब्द के पर्यायवाची के रूप में हिंदी में एक नहीं अनेक शब्द है। गद्दारी को कोई बिभीषण कहता है तो कोई बाग़ी । कोई विश्वसघाती कहता है तो कोई ‘ दोगला ‘।उर्दू वाले ‘ गद्दार ‘ को नमक हराम, ख़ियानत करने वाला मानते हैं। अंग्रेजी में ‘ गद्दार ‘ को BACK STABBER कहा जाता है। यानि ‘ गद्दार ‘ शब्द के अनेक रूप हैं। कहीं ये संज्ञा है तो कहीं सर्वनाम । कहीं क्रिया है तो कहीं क्रिया विशेषण। कलियुग कोई सियासत में गद्दारी एक स्थायी भाव हो गया है। आप यदि थोड़ी से मेहनत करें तो देश के आधुनिक गद्दारों की एक लम्बी फेहरिस्त बना सकता है। आप चाहें तो इस विषय पार शोध कर डाक्टर आफ फिलासफी की उपाधि भी हासिल कर सकते हैं।
मेरा स्वाध्याय बताता है कि देश और दुनिया में हर कालखंड में गद्दार मौजूद रहे है। उनके बिना सियासत में तब्दीली होती ही नहीं है । बात एकनाथ शिंदे साहब द्वारा गद्दारी पर किये गए उज्र से शुरू हुई थी इसीलिए मुझे लगा कि महाराष्ट्र के शिंदे और ग्वालियर के शिंदे के डीएनए में कुछ न कुछ तो समानता है । ग्वालियर में भी सिंधिया शाही की शिंदे शाही कहा जाता है। महाराष्ट्र में एकनाथ ने शिव सेना तोड़ी तो मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस तोड़ा । यही सद्कर्म चम्पाई सोरेन ने झारखण्ड में झामुमो को तोड़कर किया। समाजवादी पार्टी में तो इस लिहाज से गद्दारों की कोई कमी नहीं है। बिहारी राजनीति में जीतनराम माझिं नए-नए ‘ गद्दार ‘ हैं । कांग्रेस तोड़कर अपना अलग दल बनाने वाले शरद पंवार साहब हों या सुश्री ममता बनर्जी इसी बिरादरी के माने जा सकते हैं।
‘ गद्दारी ‘ एक स्वभाव है ,मानवीय स्वभाव इसलिए इसे गाली नहीं माना जाना चाहिए और यदि इसे गाली मान ही लिया गया है तो फिर इस गाली का सम्मान करना चाहिए। एकनाथ शिंदे की तरह गद्दार शब्द पर आपत्ति नहीं लेना चाहिए। गनीमत ये है कि अभी तक ‘ गद्दार ‘ शब्द को गाली मानने या कहने का मुद्दा अभी तक देश के सर्वोच्च न्यायालय तक नहीं पहुंचा है। यदि खुदा न खास्ता देश की बड़ी अदालत को इस शब्द को परिभाषित करने के लिए कह दिया जाए तो मुमकिन है कि बड़े-बड़े अभिभाषकों के साथ सीजेआई को भी पसीना आ जाए ! हमारे पुरखे कहते आये हैं कि दुनिया में जब तक सत्ता संघर्ष चलता रहेगा तब तक ‘ गद्दार ‘ पैदा होते रहेंगे। ‘ गद्दार ‘ अमरौती खाकर पैदा होते है। राहु -केतु की तरह अमर हैं देश और दुनिया के’ गद्दार ‘।
हम सभी को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्रीमंत एकनाथ शिंदे का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उनके बहाने हमें ‘ गद्दार ‘ शब्द पर विमर्श का मौक़ा मिला । मौक़ा मिला की हम अपने आसपास मौजूद ‘ गद्दारों ‘ को पहचाने,उनसे सावधान रहें ,लोगों को सावधान करें। आपके पास इस विषय में कोई और जानकारी हो तो जाहिर कीजिये। स्वागत है। वैसे मुझे याद आता है की 1973 में विनोद खन्ना और योगिताबाली की एक फिल्म ‘ गद्दार ‘ ही था । बाद में एक और ‘ गद्दार ‘सुनील शेट्टी और सोनाली बेंद्रे ने भी बनाई थी ।

 

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