तकनीकी: बैंकिंग में एआई की सीमाएं हैं, इसके विश्लेषण पर अविश्वसनीयता की आशंका
तकनीकी: बैंकिंग में एआई की सीमाएं हैं, इसके विश्लेषण पर अविश्वसनीयता की आशंका
इस मुद्दे पर एकाएक ध्यान तब गया, जब बीते दिनों भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भारतीय बैंकिंग व्यवस्था को चेताया कि एआई पर अधिक निर्भरता कुछ नए जोखिमों को पैदा कर सकती है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की तरक्की में रुकावट भी बन सकते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस वर्ष अब तक तकरीबन 58 प्रतिशत बैंकों में एआई को विभिन्न निर्णयों में शामिल किया जा चुका है और यह संख्या आगे बढ़कर 77 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है। यानी लगभग पूरी बैंकिंग व्यवस्था आने वाले एक या दो वर्षों में एआई विश्लेषण व मूल्यांकन पर निर्भर हो सकती है। एआई पर बैंकों की बढ़ती निर्भरता के पीछे उनके कुछ व्यावसायिक उद्देश्य भी हैं। एआई के माध्यम से बैंकिंग और अन्य वित्तीय संस्थान यह जान सकते हैं कि समाज में अब भी कौन-कौन बैंकिंग व्यवस्था के वास्तविक उपयोग से दूर हैं। बैंकिंग व्यवस्था एआई की मदद से विभिन्न पिछड़े परिवारों की घरेल महिलाओं, छोटे किसानों और असंगठित क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों के लिए अलग-अलग वित्तीय योजनाएं बनाकर उन्हें खुद से जोड़ सकती है। इससे बैंकिंग व्यवस्था का लाभ समाज के वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुंचेगा। यह देश में गरीबी उन्मूलन के लिए एक सहारा भी बन सकता है। दूसरा पक्ष यह भी है कि इससे बैंकिंग व्यवस्था की लाभदायकता में भी बढ़ोतरी होगी।
एआई का बैंकिंग में एक अन्य अच्छा उपयोग व्यक्तियों की अप्रत्यक्ष तौर पर आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन है। इसके अंतर्गत पुरुष व महिलाओं के विभिन्न प्रकार के वित्तीय व्यवहारों का आकलन होता है। इससे किसी उत्पाद अथवा ब्रांड के प्रति व्यक्ति की सोच का मूल्यांकन किया जा सकता है। इसके बाद व्यक्ति की वित्तीय क्षमता का विश्लेषण करना बैंकों के लिए आगामी स्तर होता है। आखिर में उसे प्रत्यक्ष तौर पर विभिन्न वित्तीय योजनाओं के माध्यम से विभिन्न उत्पादों और सेवाओं को खरीदने व उपयोग में लाना है, ताकि लाभदायकता बढ़े। एक अन्य मुख्य उद्देश्य एआई के उपयोग से विभिन्न तरह के व्यावसायिक गबन और धोखे को रोकना है। इसकी चपेट में आज भारतीय समाज है और इससे बैंकिंग व्यवस्था भी चिंतित है। अमेरिका में वर्ष 2023 में तकरीबन 13 अरब डॉलर के वित्तीय गबन को इस तकनीक से रोका जा सका। इससे स्पष्ट है कि एआई के माध्यम से साइबर घोटालों को बहुत हद तक रोका जा सकता है। इन सबके बावजूद तथ्य है कि एआई एक तकनीक मात्र ही है और इसकी विश्वसनीयता इसके द्वारा उपयोग में लिए गए आंकड़ों की विश्वसनीयता पर ही निर्भर है। इस सीमा के चलते एआई से प्राप्त विश्लेषण अविश्वसनीय, अनुपयोगी और पक्षपाती भी हो सकते हैं।
कुछ वर्षों पूर्व विश्व की एक बड़ी ऑनलाइन कंपनी ने अपने यहां कर्मचारियों की भर्ती करते समय उपलब्ध आंकड़ों के माध्यम से जब एआई की रिपोर्ट का विश्लेषण किया, तो यह पाया गया कि उसमें किसी भी महिला आवेदक को जगह ही नहीं मिली। यह विश्लेषण अचंभित करने वाला था। गहन जांच में पता चला कि बीते कुछ वर्षों में कंपनी द्वारा चुने गए पुरुष श्रमिकों का ही आंकड़ा एआई को उपलब्ध करवाया गया था, जिसके कारण नए चयन के समय में सभी आवेदकों के विश्लेषण में एआई द्वारा केवल पुरुष श्रमिकों के आवेदनों को ही प्राथमिकता दी गई।
वित्तीय क्षेत्र में भी एआई की कुछ सीमाएं हैं, जैसे व्यक्तियों की वित्तीय साख या क्रेडिट स्कोर के निर्धारण में सभी संस्थाओं द्वारा एक ही तरह के विश्लेषण और मूल्यांकन किए जाते हैं। एआई के उपयोग की सीमाओं को इस तरह भी समझें कि त्योहारों के मौसम में अमूमन सब बढ़-चढ़कर खरीदारी करते हैं। अब अगर किसी दीपावली में खरीदारी कम हुई और बीते वर्षों में खूब खरीदारी हुई थी, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि एआई के विश्लेषण से इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी जाएगी कि देश मंदी की तरफ अग्रसर है, जबकि मंदी की वास्तविक परिभाषा लगातार तीन तिमाहियों में नकारात्मक जीडीपी के रहने पर आधारित होती है।