ऑनलाइन सट्टेबाजी का बढ़ता जाल, देश में कमजोर कानून ?
आनलाइन सट्टेबाजी की लत जिस प्रकार बड़ी संख्या में लोगों को जकड़ रही है वह सरकार और समाज के लिए गहरी चिंता का विषय बनना चाहिए। इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है ? सबसे पहले हमें जुए को नियंत्रित करने वाले कानून को आज के आनलाइन परिदृश्य के अनुरूप ढालना होगा और ऐसे उपाय करने होंगे कि जिससे आनलाइन सट्टेबाजी वाली कंपनियां मनमानी न करने पाएं।
हाल में मैं एक दंपत्ति से मिला, जो तलाक की कठिन प्रक्रिया से गुजर रहा है। पति और पत्नी दोनों ही आइआइएम से शिक्षित हैं और अपने कारपोरेट करियर में काफी सफल हैं। जब मैंने उनसे अलग होने का कारण पूछा तो जवाब सुनकर मैं चौंक गया। पति को आनलाइन जुए की लत थी। उसने अपने 20 लाख से ज़्यादा रुपये आनलाइन सट्टेबाजी में खपा दिए थे और फिर पिछले दो सालों में पत्नी के खाते से भी लाखों चुरा लिए थे। सब कुछ तीन-पत्ती के एक आनलाइन सट्टेबाजी के खेल में खो गया। यह कोई अकेला मामला नहीं है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब मध्यम वर्ग युवा आनलाइन सट्टेबाजी और आनलाइन गेमिंग में लाखों रुपये हार चुके हैं। कई मामलों में अपने भविष्य के लिए कोई उम्मीद न देखकर, उन्होंने आत्महत्या तक कर ली। यह समस्या, गांव और शहर, दोनों ही जगह अपनी जड़ें जमा चुकी है। भारत में अब आनलाइन सट्टेबाजी का बाजार 25,000 करोड़ सालाना का हो चुका है। आनलाइन गेमिंग उद्योग का बाजार भी लगभग इतना ही बड़ा है। तुलनात्मक रूप से देखें तो आनलाइन सट्टेबाजी और आनलाइन गेमिंग पर हर साल हम लगभग 50,000 करोड़ खर्च करते हैं और हैरत की बात यह है कि यह आंकड़ा संपूर्ण भारत के उच्च शिक्षा बजट से भी अधिक है।
आनलाइन सट्टेबाजी को हम तीन प्रकार से देख सकते हैं। पहला आनलाइन कैसिनो। यहां पर कैसीनो की भांति ताश और अन्य प्रकार से घर बैठे मोबाइल या कंप्यूटर से जुआ खेला जा सकता है। दूसरा प्रकार है, फैंटेसी लीग गेम्स जहां पर क्रिकेट, फुटबाल और अन्य चर्चित खेल के नतीजों पर लोग सट्टा लगा सकते हैं। तीसरा प्रकार है वे साधारण आनलाइन गेम्स, जिन पर यूजर आपस में पैसा लगा सकते हैं। इस श्रेणी में लूडो, सांपसीढ़ी, बिलियर्ड, तीन पत्ती जैसे सरल खेलों को जुए के रंग में रंग दिया जाता है। भारत में आनलाइन सट्टेबाजी और जुए के इतने बड़े पैमाने पर बढ़ने का कारण क्या है?
पहला, यह कि आनलाइन जुआ खेलते समय व्यक्ति पर्दे के पीछे एक अनजान शख्स बनकर जुआ खेलता है। उसे अपनी पहचान सार्वजनिक होने का कोई अंदेशा नहीं रहता। हमारे समाज में जुआ खेलना अच्छा नहीं माना जाता और इसीलिए लोग खुलेआम जुआ खेलने में संकोच करते हैं, लेकिन जब कोई अपने मोबाइल फोन से सट्टा खेलता है तो आसपास किसी को भनक तक नहीं लगती। दूसरा कारण यह है कि आनलाइन सट्टे को संचालित करने वाली कंपनियां बेहद संगठित और निपुण तरीके से अपने मायाजाल से लोगों को रिझाती हैं। आलम यह है कि ये कंपनियां गृहणियों और कालेज जाने वाले युवाओं को सट्टा खेलकर परिवार में एक कमाऊ सदस्य बनने का झांसा देती हैं। चूंकि ये कंपनियां अब काफी बड़ी हो चुकी हैं, इसलिए मोटी रकम देकर सिनेमा और क्रिकेट जगत से बड़े-बड़े सितारों को विज्ञापन में दिखाकर और अधिक से अधिक लोगों को इस लत में घसीटती जा रही हैं। विडंबना यह है कि इस पर कोई रोक-टोक नहीं लग पा रही है। कंपनियां केवल यह बताकर कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं कि इस खेल में आर्थिक जोखिम है और इसकी लत लग सकती है। तीसरा कारण सबसे विकराल है। आनलाइन सट्टेबाजी को रोकने का कानून न सिर्फ कमजोर है, बल्कि अस्पष्ट भी।
भारत में जुए को नियंत्रित करने वाला कानून पब्लिक गैंबलिंग एक्ट 1867 का बना हुआ है। इसके तहत जुआ खेलने और खिलाने वालों पर पुलिस और प्रशासन सख्त कार्रवाई कर सकता है। इस कानून में जुए की परिभाषा को लेकर भ्रम है, क्योंकि यह “गेम आफ स्किल” और “गेम आफ चांस” को अलग-अलग मानता है। गेम आफ स्किल में शतरंज जैसे खेल हैं, जिसमें कौशल का उपयोग होता है। इसके विपरीत वे खेल, जिनमें पांसे या लाटरी इस्तेमाल की जाती है और जो पूर्णतः भाग्य पर आधारित है, उसे “गेम आफ चांस” कहा जाता है। भाग्य और कौशल के बीच की यह लकीर धूमिल है और आनलाइन युग में यह और भी पेचीदा हो चुकी है। इसी अस्पष्टता का लाभ उठाते हुए भारत में देखते ही देखते आनलाइन सट्टेबाजी ने अपने पांव पसार लिए हैं। आनलाइन सट्टेबाज़ी की कंपनियों के पीछे कई बार चीन से बड़ी मात्रा में निवेश हुआ है। ऐसी अनके कंपनियां देश के बाहर सक्रिय हैं।
आनलाइन सट्टेबाजी की लत जिस प्रकार बड़ी संख्या में लोगों को जकड़ रही है, वह सरकार और समाज के लिए गहरी चिंता का विषय बनना चाहिए। इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है ? सबसे पहले हमें जुए को नियंत्रित करने वाले कानून को आज के आनलाइन परिदृश्य के अनुरूप ढालना होगा और ऐसे उपाय करने होंगे कि जिससे आनलाइन सट्टेबाजी वाली कंपनियां मनमानी न करने पाएं। फिलहाल उन पर कोई प्रभावी रोक-टोक नहीं। हमें बच्चों और युवाओं को किसी भी प्रकार के आनलाइन सट्टे से बिलकुल दूर रखना होगा।आनलाइन गेम्स या सट्टे में कितना पैसा लग सकता है, इस पर नियंत्रण आवश्यक है। आनलाइन गेम्स मनोरंजन का स्रोत हो सकते हैं, पर उन्हें आय का साधन नहीं बनाया जा सकता। यह समझा जाना चाहिए कि आनलाइन सट्टे में सदैव सट्टा खिलाने वाला ही जीतता है।
आनलाइन सट्टेबाजी के बढ़ते चलन को देखते हुए स्कूलों में उसके प्रति सजगता फैलाना अति आवशयक है। वे लोग जो अपने आपको या अपने परिवार के लोगों को सट्टा खेलने की आदत से ग्रस्त पा रहे हैं, उनके लिए एक्सपर्ट हेल्पलाइन जैसी सुविधाएं गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से मुहैया कराना आवश्यक हो गया है, ताकि उन्हें वक्त रहते बचाया जा सके। कई मामलों में यह देखने में आ रहा है कि बच्चे आनलाइन गेम्स खेलते-खेलते सट्टेबाजी तक पहुंच जाते हैं और अभिभावकों को जब तक पता चलता है, तब तक नुकसान हो चुका होता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जुए को नशे से भी बुरी लत बताई थी, क्योंकि जुए से होने वाला नुकसान स्थाई होता है और परिवार एवं समाज, दोनों को खोखला करता है। आज उसी सामाजिक बुराई को आनलाइन सट्टेबाजी के रूप में मोबाइल और कंप्यूटर के जरिये एक चमकीले आवरण में पेश किया जा रहा है। देश को इससे बचाने की जरूरत है।
(लेखक एपीजे अब्दुल कलाम सेंटर के सीईओ हैं)
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देश में धड़ल्ले से कैसे चल रही है ‘ऑनलाइन सट्टेबाजी’? करोड़पति बनाने के सपने का फलता-फूलता कारोबार
कुछ ही घंटों में करोड़पति बनने का सपना दिखाने वाले इन ऑनलाइन फेंटेसी गेम्स की इस मौसम में बहार है. मौसम की बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल शुरू चुका है, जो अगले करीब दो महीने तक चलेगा. जिसमें रोजाना करोड़ों लोग अलग-अलग ऐप पर अपनी टीम बनाते हैं और आसान तरीके से पैसा कमाने की कोशिश करते हैं.
बॉलीवुड से लेकर क्रिकेट जगत के स्टार करते हैं विज्ञापन
फेंटेसी ऐप्स का बिजनेस कितना बड़ा है, ये इसी बात से साबित हो जाता है कि इन ऐप्स के विज्ञापन में बॉलीवुड से लेकर खेल जगत के वो सितारे शामिल हैं, जिनकी फीस करोड़ों में होती है. फेंटेसी ऐप्स में हर साल स्टार्स की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है. यानी कमाई भी दोगुनी हो रही है. सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं, पैसों का ये खेल तीन पत्ती, लूडो और ऐसे ही बाकी दूसरे ऑनलाइन गेम्स में भी चल रहा है.
एक मैच में अरबों का गेम
अब आपको ये बताते हैं कि कैसे सिर्फ एक ही मैच में करोड़ों-अरबों रुपये लगाए जाते हैं और इसका कितना फीसदी ऐप्स को मिलता है. एक बड़े फेंटेसी क्रिकेट ऐप में अलग-अलग कॉन्टेस्ट होते हैं. जिनमें सबसे बड़ा प्राइस 2 करोड़ रुपये का होता है, यानी अगर आपका पहला रैंक आता है तो दो करोड़ देने का दावा किया जाता है. इसे आप 49 रुपये में लगा सकते हैं. 49 रुपये के इस कॉन्टेस्ट में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग खेल सकते हैं. अब अगर इसका हिसाब लगाएं तो ये कुल करीब 74 करोड़ रुपये होते हैं. ये फेंटेसी ऐप दावा करता है कि इस कॉन्टेस्ट में 66 फीसदी लोगों को पैसा मिल जाएगा. यानी 56 करोड़ रुपये का प्राइज पूल है. विनिंग प्राइस पर सरकार को भी टैक्स जाता है.
एक ही ऐप में 30 से ज्यादा कॉन्टेस्ट
अब आपको बाकी कॉन्टेस्ट्स की जानकारी देते हैं. दो करोड़ रुपये के बाद 1 करोड़, 22 लाख, 15 लाख, 8 लाख, 4 लाख और 1 लाख से लेकर 10 हजार रुपये तक के कॉन्टेस्ट एक ही ऐप में होते हैं. जितना महंगा कॉन्टेस्ट होगा, उतने ही कम उसमें लोग होंगे. ऐसे भी कॉन्टेस्ट हैं, जिसमें सिर्फ दो लोग खेलते हैं. जिसकी टीम अच्छा खेलेगी, वो जीतेगा. ऐसे करीब 30 से ज्यादा कॉन्टेस्ट एक ही ऐप में होते हैं. अगर हिसाब लगाया जाए तो ये कई अरबों में पहुंचता है.
हालांकि आखिर में इन तमाम ऐप्स में तेजी से जो डिस्क्लेमर पढ़ा जाता है, उसी को लोगों को समझने की जरूरत है. इसमें कहा जाता है- “इस खेल में आदत लगना या आर्थिक जोखिम संभव है, जिम्मेदारी से खेलें.” पैसे गंवाने के खतरे की जानकारी देकर ये ऐप्स आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, ठीक उसी तरह जैसे सेहत के लिए खतरनाक सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है.
क्या कदम उठाने जा रही है सरकार
ऑनलाइन गेम्स और सट्टे का ये बाजार पिछले कई सालों से सज रहा है, लेकिन अब जाकर सरकार ने इस पर कुछ कदम उठाने की बात सोची है. सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग को लेकर हाल ही में एक एडवाइजरी जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि सेल्फ रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन (SRO) की तरफ से इन ऑनलाइन गेम्स की जांच की जाएगी. जांच के बाद जो भी ऑनलाइन गेम नियमों का पालन करेगा, उसी को जारी रखा जा सकता है. बाकी गेम्स पर गाज गिर सकती है. सरकार की तरफ से जारी एडवाइजरी कुछ ऐसी है-
- जुआ या सट्टेबाजी से जुड़े ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स पर लिया जाएगा एक्शन, पाबंदी लगाने की तैयारी.
- सभी तरह के मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पैसे गंवाने के रिस्क वाले और भ्रामक कंटेट और विज्ञापन हटाने होंगे, ऐसा नहीं करने पर कार्रवाई होगी.
- सिर्फ ऐसे ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को ही मंजूरी दी जाएगी, जिनमें किसी भी तरह का रिस्क या बाजी लगाने को नहीं कहा जाएगा.
- मंत्रालय के मुताबिक जुआ या सट्टेबाजी भारत में अवैध है, इसीलिए इनसे जुड़े विज्ञापन भी गैरकानूनी माने जाएंगे. इनका प्रमोशन करना कानून का उल्लंघन माना जाएगा.
- ऑफशोर बेटिंग प्लैटफॉर्म्स और सरोगेट विज्ञापनों पर रोक लगाने की बात भी सरकार की तरफ से जारी एडवाइजरी में की गई है.
क्या कहते हैं लीगल एक्सपर्ट
‘लीगल सट्टे’ के इस पूरे गेम में कैसे करोड़ों-अरबों का खेल चल रहा है, इस पर हमने लीगल एक्सपर्ट से बात की और जाना कि कैसे आसानी से ये ऐप्स पैसा बना रही हैं. सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विराग गुप्ता ने इसे लेकर कहा, “ये जितने भी ऑनलाइन बेटिंग ऐप्स हैं, वो सभी गैरकानूनी हैं. ये किसी तरह पुराने कानून के लूपहोल्स का फायदा उठाकर करोड़ों-अरबों का बिजनेस कर रहे हैं. सरकार की तरफ से जरूरी शुरुआत की गई है, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. कई राज्यों ने इन ऑनलाइन ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए हैं. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का भी फैसला है. इस पूरे मसले पर राज्यों से परामर्श नहीं किया गया है. इन ऐप्स को एक तरह की इम्यूनिटी दे दी गई है, कि जो लोग राज्यों में रजिस्टर करेंगे उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी.”
सिर्फ एडवाइजरी जारी करने से नहीं होगा कुछ
लीगल एक्सपर्ट विराग गुप्ता ने आगे बताया कि ये तमाम ऐप्स धड़ल्ले से नियमों को ताक पर रखकर चल रहे हैं. इनमें आयु की भी कोई समयसीमा तय नहीं है, 18 साल से कम उम्र के बच्चे भी टीम बनाकर ये ऑनलाइट सट्टा लगा रहे हैं. इसके लिए सख्त नियम बनने जरूरी हैं. सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे, पिछले एक साल में सरकार की तरफ से ये तीसरी एडवाइजरी आई है. जब तक कोई एक्शन नहीं होगा तब तक ऐसी एडवाइजरी का कोई फायदा नहीं है.
सरकार की तरफ से बनाए जा रहे सेल्फ रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन (SRO) को लेकर एक्सपर्ट ने कहा कि इससे सीधे ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को ही फायदा होगा. क्योंकि उन्हें इसके जरिए राज्यों में खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी. ये ऐप किसी भी राज्य में एसआरओ से क्लियरेंस लेकर काम कर सकते हैं. इससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा मिलेगा या नहीं, बच्चों की सुरक्षा की गारंटी मिलेगी या नहीं, या फिर जो अवैध कारोबारी हैं उनसे देश को मुक्ति मिलेगी या नहीं ये अब तक हमें मालूम नहीं है.
ऑनलाइन बेटिंग को लेकर क्या है कानून
ये तो साफ है कि भारत में किसी भी तरह का सट्टा पूरी तरह से गैर कानूनी है. अब सवाल ये है कि ऑनलाइन सट्टे को लेकर देश में क्या कानून है. दरअसल मौजूदा जो कानून हैं, उनमें कई तरह के विरोधाभास नजर आते हैं. जिनका फायदा उठाकर ये ऑनलाइन गेमिंग और फेंटेसी ऐप्स फल-फूल रहे हैं. पब्लिक गैंबलिंग एक्ट 1867 के मुताबिक सट्टेबाजी एक अपराध है. इसके अलावा राज्यों ने भी इसे रोकने के लिए अलग-अलग कानून बनाए हैं. हालांकि ऑनलाइन गेमिंग को लेकर कोई भी स्पष्ट कानून नहीं है.
सरकार की तरफ से पिछले साल संसद में ऑनलाइन गेमिंग रेगुलेशन बिल पेश किया गया था, जिसमें फेंटेसी स्पोर्ट्स, ऑनलाइन गेम्स, आदि को रेगुलेट करने की बात कही गई थी. इसके अलावा हाल ही में सरकार की तरफ से ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के लिए नए नियम बनाए गए थे. जिनके मुताबिक कंपनियों के लिए सेल्फ रेगुलेटरी सिस्टम बनाना जरूरी होगा. इसके अलावा भारत में उनके परमानेंट एड्रेस का वेरिफिकेशन होना भी जरूरी है. साथ ही यूजर्स के सभी ट्रांजेक्शन की जानकारी भी देनी होगी. हालांकि जुर्माने या किसी तरह की सजा का कोई जिक्र नहीं है, जिससे नियम काफी लचर नजर आते हैं.
राज्यों ने बनाए कड़े कानून
हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने इन ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को लेकर सख्ती दिखाई है और इन्हें पूरी तरह से बैन करने का फैसला किया है. हाल ही में तमिलनाडु ने ऐसे तमाम ऑनलाइन गेम्स पर बैन लगा दिया है, इसके लिए एक कानून पास किया गया है. जिसके तहत 3 साल की जेल और 10 लाख जुर्माने का प्रावधान है. इसके अलावा तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को लेकर कड़े नियम बनाए गए हैं.