ज्यादा एंटीबायोटिक लेने वाले ध्यान दें!:ऐसी दवाओं से मर रहे हैं शरीर के अच्छे बैक्टीरिया, खराब हो रहे किडनी-लीवर; जबलपुर के 3 निजी अस्पतालों के साथ भोपाल एम्स करेगा रिसर्च

बीमारी में अक्सर दी जाने वाली कई एंटीबायोटिक दवाओं का असर घटने लगा है। एंटीबायोटिक दवाओं के घटते असर का अध्ययन करने के लिए भोपाल एम्स ने जबलपुर के 3 निजी अस्पतालों से अनुबंध किया है। अगले एक साल तक इन अस्पतालों में भर्ती एक-एक मरीज को दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के प्रकार और उनके प्रभाव का डाटा शेयर किया जाएगा। इसके बाद तय किया जाएगा कि मौजूदा समय में मरीज को किस स्तर की एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरी है। इसी अनुसार सरकार भी सरकारी दवाओं की खरीदी में अपनी पाॅलिसी तय करेगी।

भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) ने एंटीबायोटिक पर अध्ययन के लिए जबलपुर शहर के तीन निजी हॉस्पिटल बड़ेरिया मेट्रो प्राइम, अनंत और जबलपुर हॉस्पिटल के साथ अनुबंध किया है। यहां भर्ती मरीजों की बीमारी, इलाज में दिए जा रहे एंटीबायोटिक दवा के प्रभाव पर एम्स के विशेषज्ञ डॉक्टरों का समूह प्राप्त डाटा के आधार पर रिसर्च करने में जुटा है। एम्स इन दवा के कॉम्बीनेशन, प्रभाव, नुकसान सहित तमाम पहलुओं का विश्लेषण कर रिपोर्ट तैयार करेगा।

सुरक्षित एंटीबायोटिक दवाओं की डोज तय करने में मिलेगी मदद

क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवाएं डॉ. संजय मिश्रा के मुताबिक भोपाल एम्स से आए अधिकारियों ने एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस को कम करने के लेकर तीन निजी अस्पतालों से अनुबंध किया है। इस रिसर्च से बेहतर प्रभाव वाली सुरक्षित एंटीबायोटिक दवा के चयन में मदद मिलेगी। इसके आधार पर हर प्रकार की बीमारी में मरीजों के लिए प्रभावी एवं सुरक्षित एंटीबायोटिक दवा और उसकी डोज तय की जाएगी। सरकारी अस्पतालों द्वारा खरीदी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के लिए भी एक मानक तय हो पाएगा।

एक साल तक चलेगा रिसर्च, इस कारण चुने गए तीनों अस्पताल

  • एम्स तीनों अस्पतालों में आए मरीज का डाटा लेगा।
  • मरीजों को किस संक्रमण के लिए क्या एंटीबायोटिक दवा दी जा रही है?
  • संक्रमण पर दवा कितनी असरदार है?
  • एक साल तक प्रतिदिन का डाटा एम्स लेगा।
  • तीन अस्पतालों में सभी तरह की बीमारी का इलाज होता है।
  • तीनों अस्पतालों में बेहतर लैब, विशेषज्ञ डॉक्टर सहित अन्य आधुनिक इलाज के संसाधन हैं।
अस्पताल में भर्ती मरीजों पर एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभाव को लेकर रिसर्च किया जा रहा है।
अस्पताल में भर्ती मरीजों पर एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभाव को लेकर रिसर्च किया जा रहा है।

एंटीबॉडी पर पॉलिसी बनाने वाला एमपी दूसरा राज्य

एम्स, दिल्ली और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने कुछ समय पहले एंटीबायोटिक पर एक शोध किया था। शोध में मिला कि एंटीबायोटिक के अधिक उपयोग से मरीजों पर इसका असर कम हो रहा है। कई मरीजों पर तो प्रभाव ही खत्म हो चुका है। वहीं प्रचलन में कम उपयोग वाले कुछ पुराने एंटीबायोटिक प्रभावी मिलें।

इसके बाद एमपी में एनएचएम डायरेक्टर डॉ. पंकज शुक्ला और भोपाल एम्स के डॉ. सागर के निर्देशन पर एंटीमाक्रोबॉयल रजिस्टेंस पर कार्य शुरू किया गया। एंटीबायोटिक के सीमित उपयोग, जिससे रजिस्टेंस उत्पन्न ना हो, पर रिसर्च का निर्णय हुआ। साथ ही एंटीबायोटिक पॉलिसी बनाई गई। मध्यप्रदेश, एंटीबायोटिक दवा पर अपनी पॉलिसी बनाने वाला देश का दूसरा राज्य है।

दिल्ली एम्स के शोध में ये चौंकाने वाले तथ्य आ चुके हैं

  • एंटीबायोटिक की बिना जरूरत डोज मरीज को दिए जाने पर उसका बैक्टीरिया पर प्रभाव घट रहा है।
  • ज्यादा एंटीबायोटिक खाने वाले मरीजों को स्वस्थ्य होने में तुलनात्मक रूप से अधिक समय लग रहा है।
  • वायरल बुखार सहित कई बीमारियों में एंटीबायोटिक दवा की जरूरत कम होने के बावजूद कई डॉक्टर धड़ल्ले से लिख रहे हैं।
  • बेवजह एंटीबायोटिक दवाओं के खाने से कई मरीजों में साइड इफेक्ट भी देखने मिल रहा है।
  • कई वर्ष पूर्व प्रचलन में रही क्लोरेम्फेनिकल कोलिस्टिन सहित कई दवा अब मरीजों पर ज्यादा प्रभावी साबित हो रही है।
  • मरीजों को सबसे ज्यादा प्रिस्क्राइब की जा रही एंटीबायोटिक जैसे एंपिसिलीन, एमॉक्सीसिलीन, सिफजोलिन, सिफेप्राइम, सिफ्रि एक्सोन का असर आधे से भी कम रह गई।
  • उल्टी-दस्त और बुखार होने पर दी जा रही एंटीबायोटिक दवा का साइडइफेक्ट हो रहा है। इन एंटीबायोटिक से शरीर के अच्छे बैक्टीरिया भी मर रहे है।
  • टायफायड की बीमारी पर लिखी जा रही कुछ एंटीबायोटिक के दुष्प्रभाव से शरीर में रक्त की कमी और कुछ एंटीबायोटिक से किडनी एवं लीवर खराब होने का खतरा बढ़ा है।

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