शिप्रा मैली … 20 साल में 650 करोड़ खर्च फिर भी शिप्रा मैली …. खान डायवर्सन और शहर के नालों का पानी सदावल ट्रीटमेंट प्लांट भेजने के बावजूद नदी में प्रदूषण
शिप्रा को स्वच्छ और प्रवाहमान बनाने के लिए बीते 20 साल में करीब 650 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। लेकिन शिप्रा आज भी मैली है। प्रदूषण विभाग की स्टडी के अनुसार शिप्रा नदी का पानी अब आमचन तो दूर नहाने लायक भी नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक शिप्रा नदी का पानी डी ग्रेड का है। जनप्रतिनिधि इसका कारण इंदौर से आने वाले प्रदूषित पानी की रोकथाम के लिए सही उपाय नहीं होना बता कर पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं।
अधिकारियों का कहना है खान डायवर्सन योजना अब तक जल संसाधन विभाग को हैंडओवर ही नहीं हुई है, इसलिए इसके मेंटेनेंस का बजट में प्रावधान नहीं किया जाता। शिप्रा की स्वच्छता और प्रवाहमान बनाने की मांग को लेकर शिप्रा तट दत्त अखाड़ा घाट पर धरना दे रहे संतों को फिर प्रशासन आश्वासन थमा कर इस मुद्दे को ठंडा करने में जुटा है। भास्कर ने जब शिप्रा का टोटल स्कैन किया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
नालों व कान्ह का मिल रहा गंदा पानी
शिप्रा को इंदौर के गंदे पानी से बचाने के लिए सबसे पहले राघौ पिपलिया पर स्टापडेम बनाया गया था। शिप्रा को स्वच्छ रखने के लिए 2004 में 6 करोड़ की नदी संरक्षण योजना के तहत शहर के सभी बड़े नालों को पाइप लाइन और पंपिंग स्टेशनों से जोड़ कर गंदे पानी को सदावल ट्रीटमेंट प्लांट पर छोड़ा गया। यह योजना पंपिंग आधारित होने से नगर निगम पर सालाना 1 करोड़ रुपए बिजली खर्च आने से बार-बार पंपिंग बंद होने के कारण गंदा पानी शिप्रा में मिलता रहा।
इस बीच 4 करोड़ रुपए से हरसिद्धि से सीवरेज लाइन डाली गई जो रुद्रसागर में एकत्र गंदे पानी को रामघाट पर मिलने से रोक कर नदी में आगे लेकर छोड़ती है। सिंहस्थ 2016 में खान डायवर्सन योजना लागू की गई। इस पर करीब 80 करोड़ रुपए खर्च हुए लेकिन राघौ पिपलिया स्टापडेम से गंदा पानी ओवर फ्लो होकर शिप्रा में मिल रहा है। शिप्रा को प्रवाहमान बनाने के लिए करीब 500 करोड़ से ज्यादा की नर्मदा शिप्रा लिंक और उज्जैनी टू उज्जैन योजना लागू की गई है। इनसे समय-समय पर नर्मदा का पानी मिलता है।
शिप्रा में प्रदूषण रोकने की दोनों योजनाएं फेल
नदी संरक्षण- 2004 की इस योजना में शहर के 11 बड़े नालों को पाइप लाइन से डायवर्ट किया। पंपिंग कर गंदे पानी को ट्रीटमेंट प्लांट पर ले जाने में बिजली की खपत ज्यादा होती है। निगम यह भार वहन नहीं कर पा रहा। राज्य सरकार से इसके संचालन के लिए कोई मदद नहीं मिलती। इसलिए गंदे नालों का पानी जब तब शिप्रा में मिलता रहता है।
नदी संरक्षण- 2004 की इस योजना में शहर के 11 बड़े नालों को पाइप लाइन से डायवर्ट किया। पंपिंग कर गंदे पानी को ट्रीटमेंट प्लांट पर ले जाने में बिजली की खपत ज्यादा होती है। निगम यह भार वहन नहीं कर पा रहा। राज्य सरकार से इसके संचालन के लिए कोई मदद नहीं मिलती। इसलिए गंदे नालों का पानी जब तब शिप्रा में मिलता रहता है।
योजना बनी लेकिन मेंटेनेंस का बंदोबस्त नहीं
नदी संरक्षण के लिए राज्य शासन से बिजली खर्च की राशि मिलना थी लेकिन यह केवल एक बार मिली। इसके बाद राशि नहीं मिल रही। खान डायवर्सन योजना नगर निगम के लिए जल संसाधन ने बनाई थी। जल संसाधन के ईई कमल कुवाल के अनुसार यह अभी विभाग को हैंडओवर नहीं हुई है। इसलिए मेंटेनेंस का बजट में प्रावधान नहीं होता। सफाई और टूटफूट होने पर विभाग अपने स्तर पर टेंडर कर काम कराता है। मेंटेनेंस खर्च का बंदोबस्त नहीं होने से दोनों योजनाओं का फायदा नहीं मिल रहा।
जनता की आपत्ति : इंदौर का गंदा पानी इंदौर में ही रोकें
शिप्रा के लिए लगातार काम कर रहे समाजसेवी गोविंद खंडेलवाल का कहना है कि इंदौर अपनी गंदगी उज्जैन की ओर बहा रहा है। इंदौर के गंदे पानी को इंदौर में ही क्यों नहीं रोका जाता या वहीं से साफ कर नदी में क्यों नहीं छोड़ा जाता। सुरेंद्रसिंह अरोरा कहते हैं कि शिप्रा में खान का गंदा पानी आने से रोकने के लिए उज्जैन, इंदौर, सांवेर के जनप्रतिनिधि संयुक्त रूप से फैसला करें ताकि आगामी सिंहस्थ में यह समस्या न आए। गंदे पानी को साफ करना ही हल है। उज्जैन से आगे छोड़ेंगे तो महिदपुर में समस्या आएगी।
उपाय : ट्रीटमेंट प्लांट बनाएं
उज्जैन में जल संसाधन के ईई रहे मुकुल जैन कहते हैं कि राघौ पिपलिया पर ट्रीटमेंट प्लांट बनाना ही कारगर उपाय है। यहां पानी को साफ कर फिर से नदी में छोड़ा जा सकता है। इससे नदी में गंदा पानी मिलने की समस्या हल होगी। यह पानी सिंचाई के लिए भी काम में लिया जा सकता है।
रिपोर्ट में खुलासा: शिप्रा का पानी सबसे बुरी स्थिति में
प्रदूषण विभाग की स्टडी के अनुसार उज्जैन में मोक्षदायिनी शिप्रा नदी का पानी अब आमचन तो दूर नहाने लायक भी नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक नदी का पानी ए से ई ग्रेड में मापा जाता है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि शिप्रा नदी का पानी डी ग्रेड का है। यानी लगभग सबसे बुरी स्थिति में। प्रदूषण विभाग के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. एडी संत ने बताया कि शिप्रा नदी का जल डी ग्रेड का है। इसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण इंदौर से आ रही खान नदी के कारण हो रहा है। इस नदी के माध्यम से इंदौर के इंडस्ट्रियल एरिया का वेस्ट और गंदा पानी शिप्रा में मिलता है, जबकि देवास के इंडस्ट्रियल एरिया से गुजर रही नदी का पानी भी शिप्रा में मिल रहा है। इससे भी यह प्रदूषित हो रही है।
वहीं, शहर में घरेलू कचरे और सीवरेज का पानी प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। गौरतलब है कि शनिश्चरी अमावस्या पर त्रिवेणी पर बना कच्चा बांध बह जाने से कान्ह का गंदा पानी शिप्रा में मिल गया था। इसी गंदे पानी से श्रद्धालुओं को स्नान करना पड़ा था। अब प्रशासन के सामने 15 जनवरी को मकर संक्रांति के स्नान पर्व के लिए शिप्रा में साफ पानी का बंदोबस्त करने की है। इसके लिए खान का पानी रोकना आवश्यक है। अब फिर से मिट्टी के डेम को सुधारना होगा ताकि खान का पानी त्रिवेणी पर होने वाले नर्मदा के साफ पानी में नहीं मिले।
जनप्रतिनिधि बोले- सीएम से बात करेंगे
सांसद अनिल फिरोजिया कहते हैं खान डायवर्सन योजना बनाते वक्त ही हमने आपत्ति ली थी। हमने इसके लिए मना किया था। लेकिन अधिकारियों ने हमारी बात नहीं मानी। सीएम से चर्चा करेंगे कि स्थायी समाधान होना चाहिए।
विधायक पारस जैन का कहना है कि साधु-संतों की मांग वाजिब है। शिप्रा की स्वच्छता सबसे पहले जरूरी है। खान के पानी की रोकथाम जरूरी है। चाहे इसलिए स्टापडेम बनाना पड़े या कोई अन्य उपाय करना पड़े, हम कराएंगे।