एटम बम दागने की सलाह हो या तीनों सेनाओं का साझा इस्तेमाल, जानिए कौन से अहम फैसले लेते हैं CDS

देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की 8 दिसंबर 2021 को तमिलनाडु के कुन्नूर में हुए हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई। इस घटना में रावत की पत्नी समेत हेलिकॉप्टर में सवार 14 में से 13 लोगों की मौत हो गई। इस दुर्घटना में केवल केवल ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह जीवित बचे हैं, जिनका इलाज चल रहा है।

आइए जानते हैं कि क्या होता है चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS), क्यों पड़ी इस पद की जरूरत? सेना और सरकार के बीच क्या है इसकी भूमिका?

क्या होता है चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ या CDS?

  • देश का चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, इंडियन आर्म्ड फोर्सेज का मिलिट्री प्रमुख और इंडियन आर्म्ड फोर्सेज की चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी का चेयरमैन होता है।
  • चीफ ऑफ डिफेंस एक चार-स्टार जनरल होता है। CDS रक्षा मंत्रालय द्वारा बनाए गए नए विभाग डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स का प्रमुख होता है।
  • रक्षा मंत्रालय में पहले से ही चार विभाग थे- डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस, डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन, डिपार्टमेंट ऑफ एक्स सर्विसमेन वेलफेयर और डीआरडीओ, अब पांचवें नए विभाग, डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स का प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ को बनाया गया है।
  • सीडीएस की नियुक्ति आर्म्ड फोर्सेज के बीच आवश्यक तालमेल लाने के लिए हुई है। इसका उद्देश्य सेना में जॉइंटमैनशिप को बढ़ाना है, जिससे संसाधनों की बर्बादी और निर्णय लेने में होने वाली देरी को रोका जा सके।
  • दिसंबर 2019 में जनरल बिपिन रावत देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त हुए थे।

क्या होती है चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की भूमिका?

  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ तीनों सेनाओं से जुड़े मामलों में प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में काम करता है। CDS भले ही तीनों सेनाओं से जुड़े मामलों में रक्षा मंत्रालय को सलाह देता है, लेकिन अब भी तीनों सेनाओं-आर्मी, नेवी और एयरफोर्स-के प्रमुख ही उनकी संबंधित सेवाओं से जुड़े मामलों में सलाह देते हैं।
  • मतलब, CDS, तीनों सेनाओं से जुड़े मामलों में रक्षा मंत्रालय के सलाहकार के तौर पर काम करता है, लेकिन वह तीनों में से किसी सेना का प्रमुख नहीं होता है, बल्कि इसके लिए इन तीनों सेनाओं के प्रमुख ही अपनी-अपनी सेना की कमान संभालते हैं।
  • भारत एक न्यूक्लियर वेपन से संपन्न देश है, ऐसे में CDS न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी के लिए सैन्य सलाहकार के तौर पर भी काम करता है, इस कमांड का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।
  • भारत ने 2008 में सेना, अंतरिक्ष विभाग और अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के बीच बेहतर तालमेल के लिए अपने एयरोस्पेस कमांड (द इंटीग्रेटेड स्पेस सेल) का गठन किया था। CDS के पास इस साइबर वारफेयर डिविजन का भी चार्ज है।
  • CDS का काम अनुमानित बजट के आधार पर तीनों सेवाओं की लॉजिस्टिक्स के साथ-साथ कैपिटल एक्विजिशन की जरूरतों को सुव्यवस्थित करने में मदद करना है।
  • पहले के चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी (COSC), (जोकि तीनों सेना प्रमुखों में से सबसे सीनियर बनता था) के उलट CDS के पास शासनात्मक शक्तियां हैं।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और तीनों सेना प्रमुखों की भूमिकाओं में अंतर?

अक्सर लोगों को यह गलतफहमी हो जाती है कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ही तीनों सेनाओं का भी प्रमुख होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। इन दोनों की भूमिकाओं में अंतर है-

  • CDS किसी भी तरह का ऑपरेशनल या मिलिट्री कमांड नहीं दे सकता। यानी वह तीनों सेनाओं के प्रमुखों के ऊपर कोई भी सैन्य आदेश जारी नहीं कर सकता है।
  • CDS का काम सैन्य आदेश जारी करने के बजाय तीनों सेनाओं से जुड़े मामलों में सरकार को निष्पक्ष सलाह देना है।
  • आर्मी, नेवी या एयरफोर्स को सैन्य कमांड देने का काम कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की सलाह पर उनके प्रमुख ही करते हैं, न कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ।
  • डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स का नेतृत्व करने के अलावा, सीडीएस चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (CoSC) के स्थायी चेयरमैन का भी पद संभालता है। अब तक, CoSC की अध्यक्षता सबसे सीनियर सर्विस चीफ द्वारा छोटी अवधि के लिए रोटेशन में की जाती थी लेकिन यह व्यवस्था असंतोषजनक पाई गई थी।
  • तीनों सेनाओं के प्रमुखों की तरह ही चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ भी एक चार स्टार जनरल होता है।
  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद पर चार स्टार जनरलों में से सबसे सीनियर अधिकारी की नियुक्ति की जाती है।
  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की सैलरी, भत्ते और योग्यताएं भी तीनों सेना प्रमुखों के बराबर ही होते हैं।

क्यों पड़ी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की जरूरत?

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की कमी देश को सबसे पहले 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान खली थी। उस समय अगर आर्मी और एयरफोर्स ने समन्वित हमला किया होता तो इस युद्ध का फैसला कुछ और हो सकता था। उस समय चीनी सेनाओं के पास एयर सपोर्ट नहीं था।

सेना के तीनों अंगों के बीच कोऑर्डिनेशन की कमी 1987-89 के दौरान भारतीय शांति सेना (IPKF) द्वारा श्रीलंका में LTTE के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन के दौरान भी देखी गई। उस ऑपरेशन में नेवी और एयर फोर्स के कमांडर्स ओवरऑल फोर्स कमांडर (OFC) के अंडर में थे, लेकिन कहा जाता है कि OFC संपर्क अधिकारी से ज्यादा कुछ नहीं थे।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की सबसे अधिक जरूरत 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान महसूस की गई थी, जिसमें आर्मी के एयर सपोर्ट के निवेदन को शुरुआत में सुरक्षा मामलों की समिति (CCS) ने अस्वीकार कर दिया था, जिससे आर्मी को एयर फोर्स के हवाई हमले की मदद मिलने में कई हफ्तों की देरी हो गई थी।

ये सभी घटनाएं 1947-48 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्धों के उदाहरणों से अलग हैं, जिनमें सेनाओं के जॉइंट ऑपरेशन ने भारत को जीत दिलाई थी।

कैसे हुआ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का गठन?

1999 में कारगिल युद्ध के तुरंत बाद इस बात की समीक्षा के लिए कृष्णास्वामी सुब्रह्मण्यम (Krishnaswami Subrahmanyam) के नेतृत्व में कारगिल रिव्यू कमिटी (KRC) का गठन किया गया था कि वे कौन सी कमियां थी जिनकी वजह से पाकिस्तानी सेना को रणनीतिक महत्व वाली जगहों पर कब्जा करने का मौका मिला।

कारगिल रिव्यू कमिटी की रिपोर्ट फरवरी 2020 में संसद में पेश की गई थी। इसमें कारगिल युद्ध के दौरान शुरुआत में सुस्त भारतीय प्रतिक्रिया, और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के उपायों का सुझाव दिया था।

इस कमिटी की सिफारिशों के बाद 2001 में गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में मंत्रियों के समूह (GoM) ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CSS) की नियुक्ति की सिफारिश की थी।

लेकिन चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति अगले दो दशक तक अलग-अलग वजहों से नहीं हो सकी। आखिरकार 15 अगस्त 2019 को स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद बनाए जाने की घोषणा की।

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