5 बातों से जानिए चाचा-भतीजे की दूरी … वोटिंग से पहले रिश्तों की खुली पोल….
अखिलेश-शिवपाल के गठबंधन की गांठ मजबूत नहीं….
वोटिंग से पहले शिवपाल यादव का दर्द बाहर आ ही गया। इटावा में करीबियों से बात करते हुए प्रसपा अध्यक्ष ने भरी आवाज में कहा, “आप तो देख ही रहे हैं, पार्टी का बलिदान दे दिया। नहीं तो पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ने की तैयारी थी। अब सारी सीटों की कसर इसी सीट पर जीत का रिकॉर्ड बनाकर पूरी करनी है।”
आंखों में आंसू और होठों पर मुस्काहट लिए शिवपाल ने फिर कहा, “हम तो 65 सीटें मांग रहे थे। लेकिन उनको यानी अखिलेश को यह ज्यादा लगा। फिर 45 और 35 सीटें मांगी। आपको तो पता ही है मिली कितनी? सिर्फ एक।”
हमने चाचा-भतीजे के बीच इन दूरियों की पड़ताल की और हमें 5 बातें नजर आईं…
1. 60 से ज्यादा सीट मांगने वाले शिवपाल को सिर्फ 1 सीट
बात 19 जनवरी 2022 की है। पांच साल बाद शिवपाल एक बार फिर सपा दफ्तर में थे। उन्होंने अखिलेश के साथ टिकट बंटवारे को लेकर 40 मिनट तक बैठक की। फिर चुपचाप वहां से चले गए। पूछने पर वो बोले, “टिकटों पर फैसला अखिलेश पर छोड़ दिया है।” वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गौरव अवस्थी ने बताया, “चुनाव से पहले 60 से ज्यादा सीटें मांगने वाले शिवपाल केवल एक सीट पर ही मान गए। ये बात हैरान करने वाली है।”
उन्होंने बताया, “गठबंधन से पहले ही प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) यानी प्रसपा ने कई लोगों के टिकट फाइनल कर दिए थे, लेकिन गठबंधन के बाद उन्हें सिर्फ जसवंत नगर सीट मिली। उस पर वो खुद लड़ रहे हैं। टिकट न मिलने से शिपवाल समर्थकों में नाराजगी दिखी।”
शिवपाल के करीबी पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे शिवकुमार बेरिया 31 जनवरी 2022 को भाजपा में चले गए। प्रसपा की महिला सभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष अर्चना राठौर भी 26 जनवरी 2022 को कांग्रेस से जुड़ गई हैं। ये सभी प्रसपा के बडे़ नेता थे, जो अब पार्टी से बिछड़ गए हैं।
2. अखिलेश के नामांकन पर भी दूर से ही बधाई
करहल से अखिलेश ने नामांकन दाखिल किया तो चाचा रामगोपाल यादव उनके साथ थे, लेकिन शिवपाल ने भतीजे को दूर से बधाई देना ठीक समझा। शिवपाल ने ट्वीट करते हुए लिखा, “करहल से नामांकन पर प्रिय अखिलेश को बधाई और रिकॉर्ड मतों से जीत की अग्रिम शुभकामनाएं। जनता का आशीर्वाद और दुआएं आपके साथ है। यशस्वी भव…”
अवस्थी बताते हैं,“अपने समर्थकों को टिकट न दिला पाने के बाद शिवपाल उदासीनता का चोला पहने हुए हैं। वह यह जताना चाहते हैं कि गठबंधन जरूर हुआ है, लेकिन वह अखिलेश से अभी भी नाराज हैं।”
3. शिवपाल ने योगी की तारीफ की
शिवपाल यादव ने 30 जुलाई 2021 को जसंवत नगर में ऑक्सीजन प्लांट का शिलान्यास किया। पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने सीएम योगी को ईमानदार नेता बताया। फिर 15 अगस्त 2021 की तारीख आई। लोहिया संदेश यात्रा की शुरुआत करते हुए उनके बयान से सभी कंफ्यूज हो गए।
उन्होंने कहा, “2022 चुनाव में सरकार किसी भी दल की बने लेकिन वह सरकार का हिस्सा हर हाल में होंगे।” इस बयान के बाद उनके भाजपा से जुड़ने की चर्चाएं तेज हो गईं। उनकी इस बात को अखिलेश पर कटाक्ष माना गया। अखिलेश से इस बयान के बारे में पूछा गया। लेकिन उन्होंने इस पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।
4. मंत्री बनने के सवाल पर ऐसा जवाब
28 जनवरी 2022 को शिवपाल जसवंत नगर से अपना नामांकन दाखिल करने पहुंचे थे। उनसे सवाल पूछा गया, सरकार बनने के बाद क्या आपको अखिलेश मंत्रिमंडल में बड़ा स्थान देंगे? शिवपाल थोड़ी देर शांत रहें… फिर बोले, “गठबंधन सरकार बनने पर मुख्यमंत्री का अधिकार होगा कि वे मुझे मंत्रिमंडल में जगह देंगे या नहीं। अन्यथा अब मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा बची नहीं है।”
राजनीतिक विश्लेषक अवस्थी ने बताया,“शिवपाल अब जान गए हैं कि पार्टी को वापस से खड़ा करना आसान नहीं होगा। उनका ये बयान दर्शाता है कि उन्होंने सरेंडर कर दिया है। उन्हें यह पता है कि अगर सपा सत्ता में आती है तो उन्हें मंत्री पद नहीं मिलेगा। शायद इसीलिए उन्होंने प्रसपा का विलय अभी तक सपा से नहीं किया है।”
5. दूरियां खुलकर सामने आ गईं
सपा के चुनावी प्रचार में हमेशा आगे दिखने वाले शिवपाल इस बार शांत हैं। सूबे में पहले चरण की वोटिंग 10 फरवरी को है, लेकिन शिवपाल न तो जमीन पर और न ही सोशल मीडिया पर एक्टिव दिख रहे हैं। मंच पर लंबे-लंबे भाषण देने वाले शिवपाल इस बार मुट्ठी भर शब्दों से ही काम चला रहे हैं।
उन्होंने सपा के प्रचार को लेकर आखिरी ट्वीट 03 फरवरी 2022 को किया था। इसमें उन्होंने केवल चार शब्द ही लिखे… लहराएगा समाजवाद का परचम। 30 जनवरी को उन्होंने अपने दूसरे ट्वीट में मात्र 3 शब्द लिखें… सब याद है। अखिलेश भी इस बार RLD के अध्यक्ष जयंत यादव के साथ एक दर्जन से ज्यादा बार मंच साझा कर चुके हैं, लेकिन चाचा शिवपाल के साथ वो कम ही नजर आए हैं।
इन पांचों बातों से ये लगता है कि एक नहीं कई ऐसी अड़चनें इस रिश्ते में आ चुकी हैं, जो इन्हें गठबंधन के बाद भी नहीं जोड़ पा रही हैं। इसका असर 10 मार्च को चुनावी नतीजे पर दिख सकता है।