क्यों फांसी लगा रहे बच्चे:घर-घर में बिग बॉस जैसा हाल, सौ में से एक स्टूडेंट की आत्महत्या की वजह है फेल होना

  • यूके की स्टडी में पाया गया कि स्कूल बंद होने के बाद करीब 41% बच्चों ने स्कूल वर्क और एग्जाम को लेकर तनाव महसूस किया।
  • वहीं 28% ने माना कि वे दोस्तों से नहीं मिल पाने के कारण स्ट्रेस में हैं।

मप्र के इंदौर शहर की ग्यारहवीं की छात्रा मनस्वी वर्मा ने परीक्षा में पेपर खराब होने की वजह से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। परीक्षा के तनाव का स्टूडेंट्स की आत्महत्या से बहुत ही पुराना और खराब रिश्ता रहा है। यह क्यों है और कब तक चलता रहेगा ?

टियर 2, टियर 3 सिटीज में ऑनलाइन स्टडी के चैलेंज
मनस्वी वर्मा के मामले में यह पाया गया कि ऑनलाइन स्टडी के कारण वह ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाई थी। आखिर ऑनलाइन स्टडी के चैलेंज क्या हैं? स्किलिंग यू ऐप के फाउंडर और सीईओ प्रवीण कुमार राजभर के मुताबिक, “टियर 2 और टियर 3 शहरों में ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर ढेरों चुनौतियां रही हैं।

प्रवीण कुमार राजभर के मुताबिक, स्टूडेंट्स को मोटिवेट करना जरूरी है।
प्रवीण कुमार राजभर के मुताबिक, स्टूडेंट्स को मोटिवेट करना जरूरी है।

स्कूलों की तरफ से पूरी व्यवस्था होने के बावजूद छात्रों को दिक्कतें आईं हैं। इन दिक्कतों में वाईफाई कनेक्शन, मोबाइल फोन, लैपटाॅप और परिवार की आर्थिक क्षमता भी शामिल है।

प्रिया धरोद के मुताबिक, बच्चों में सेल्फ-स्टीम को बढ़ावा देने की जरूरत है।
प्रिया धरोद के मुताबिक, बच्चों में सेल्फ-स्टीम को बढ़ावा देने की जरूरत है।

एक्टिव पेरेंटिंग से परेशान हुए मासूम
कोश वेलनेस की को-फाउंडर और काउंसलर प्रिया धरोद के मुताबिक, “लंबे समय से बच्चों के मन में यह बात गहराई से बैठी हुई है कि अच्छे मार्क्स आने पर ही पेरेंट्स उन पर प्यार लुटाएंगे। लॉकडाउन के दिनों में घरों में ‘एक्टिव पेरेंटिंग’ की गई। एक्टिव पेरेंटिंग से मतलब है बच्चों की हर एक्टिविटी पर पेरेंट्स का कंट्रोल रहा। इससे भी बच्चों में स्ट्रेस लेवल बढ़ा खासकर टीनएजर्स में। बच्चों का ‘मी टाइम’ उनसे छिन गया।

आठवीं से बारहवीं तक के स्टूडेंट्स पर्सनल स्पेस चाहते हैं।
आठवीं से बारहवीं तक के स्टूडेंट्स पर्सनल स्पेस चाहते हैं।

दोस्तों से न मिल पाने का गम भी गहराया
प्रवीण कुमार राजभर भी स्वीकारते हैं कि आठवीं से बारहवीं तक के स्टूडेंट्स अपने तरीके से थोड़ा अकेलापन चाहते हैं, जिसे आज की भाषा में पर्सनल स्पेस कह सकते हैं। बच्चे दाेस्तों से मन के द्वन्द्व को और पढ़ाई से जुड़ी परेशानियों को बांटते हैं। बातें करके मन का बोझ हल्का करते हैं।

अपनी कमजोरियों को दोस्तों के आगे कबूलते हैं और अपने तरीके से एक-दूसरे की मदद करते हैं। पिछले दो सालों से इनकी जिंदगी से यह कम्युनिकेशन करीब गायब ही रहा। बच्चे, बिग बॉस के घर की तरह अपने ही घर में कैद होकर रह गए।

दुख देने वाले सुसाइड के आंकड़े
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के साल 2020 के आंकड़े के अनुसार, सौ में से एक के सुसाइड करने की वजह एग्जाम में फेल होना है। मनस्वी वर्मा के मामले में भी पाया गया है कि उसने मरने के पहले पेनलेस आत्महत्या के तरीकों को इंटरनेट पर सर्च किया।

करीब 41% बच्चों ने स्कूल वर्क और एग्जाम को लेकर तनाव महसूस किया।
करीब 41% बच्चों ने स्कूल वर्क और एग्जाम को लेकर तनाव महसूस किया।

मनस्वी ने फांसी लगा कर आत्महत्या की थी। आत्महत्या से जुड़े आंकड़ों में पाया गया कि सुसाइड से मरनेवालों में फांसी लगाने वालों की संख्या सबसे अधिक (57.8%) है। जहर खाकर (25%) और नदी में डूबकर मरने वालों की संख्या (5.4%) इसके बाद आती है। मरनेवालों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से ज्यादा पाई गई।

यूके के इस सर्वे में 8 से 17 साल के बच्चों को शामिल किया गया।
यूके के इस सर्वे में 8 से 17 साल के बच्चों को शामिल किया गया।

सुसाइड रोकने के लिए जरूरी है
यूके में हुए स्टडी में पाया गया कि स्कूल बंद होने के बाद से करीब 41% बच्चों ने स्कूल वर्क और एग्जाम को लेकर तनाव महसूस किया। वहीं 28% ने माना कि वे दोस्तों से नहीं मिल पाने के कारण स्ट्रेस में हैं। कमीश्नर ऑफिस की ओर से किए गए इस सर्वे में 8 से 17 साल के बच्चों को शामिल किया गया।

काउंसलर प्रिया धरोद के अनुसार, सुसाइड जैसी घटनाएं तभी टलेगी, जब पेरेंट्स बच्चों में सेल्फ स्टीम की भावना जगाएंगे। सेल्फ स्टीम की भावना उनको अपने ऊपर भरोसा करना सिखाएगी और तभी बच्चे अपनी नाकामी का डटकर सामना कर सकेंगे। पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों को उदाहरण देकर यह भरोसा दिलाए कि दुनिया में ढेरों ऐसे लोग हैं, जिन्होंने पढ़ाई में अच्छा न करने के बावजूद नाम कमाया है।

प्रवीण कुमार राजभर बताते हैं कि एग्जाम के प्रेशर की वजह से ही हमारे ऐप में सुबह 8:45 से 9 बजे का समय मोटिवेशनल स्पीच दी जाती है ताकि क्लास की शुरुआत से ही बच्चे पॉजिटिव मूड में रहे।

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