Gwalior development and politics news …. केंद्र सरकार में अंचल के दो मंत्री विकास को लगेंगे पंख

अंचल के दो मंत्री केंद्र सरकार में है। इससे अंचल के विकास को पंख लगेंगे। …

 नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से अंचल को हैं उम्मीदें

Gwalior development and politics news: जोगेंद्र सेन. ग्वालियर। चंबल अंचल का भोपाल से लेकर दिल्ली तक की राजनीति में दबदबा रहा है। आजादी के बाद के एक दशक को छोड़ दें तो अंचल का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं को भोपाल क्या दिल्ली के तख्त पर बैठे नेता नजरअंदाज नहीं कर सकते थे। आजादी से पहले विकास की दौड़ में ग्वालियर से इंदौर भी काफी पीछे था। यहां की धुएं के साथ समृद्घि उगलते कारखाने, मेडिकल कालेज, इंजीनियरिंग कालेज समूचे देश में विख्यात थे। जब देश में मेट्रो की कल्पना भी नहीं थी, उस समय ग्वालियर में गोला का मंदिर से हजीरा के बीच छोटी ट्रेन दौड़ती थी। किंतु दिल्ली से बिगड़े हुए रिश्तों ने प्रदेश के अन्य जिलों से शहर को विकास की दौड़ में कई दशक पीछे धकेल दिया। हालांकि वर्तमान केंद्र सरकार में अंचल से दो मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर हैं, जिससे अंचलवासियों को क्षेत्र के विकास की ओर रफ्तार पकड़ने की उम्मीद है।

सिंधिया का नाम फिर चर्चा में

2024 विधानसभा चुनाव में भले ही अभी वक्त है, लेकिन भाजपा से मुख्यमंत्री की दौड़ में ज्योतिरादित्य सिंधिया व नरेंद्र सिंह तोमर के नाम की चर्चा है। अंचल के लोगों को उम्मीद है कि अगले चुनाव में दुर्योग समाप्त होगा। अंचल का कोई सपूत प्रदेश सरकार की बागडोर संभालेगा और विकास के पथ पर अंचल दौड़ेगा।

1984 से अंचल की राजनीतिक किस्मत जागी

वर्ष 1984 में अंचल की राजनीतिक रूप से किस्मत जागी। वाजपेयी व माधवराव सिंधिया के बीच सीधा मुकाबला होने से ग्वालियर को एक नई राजनीतिक पहचान मिली। माधवराव जीतने के बाद राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में रेल राज्य मंत्री बने तो अंचल ने विकास ने रफ्तार पकड़ ली। ग्वालियर स्टेशन के साथ मालनपुर व बानमोर औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित हुए। इसके बाद अटल जी देश के प्रधानमंत्री बने, उन्होंने वर्ष 2004 तक देश का प्रतिनिधित्व किया।

दो साल पहले कांग्रेस में प्रतिद्वंदियों का चक्रव्यूह तोड़कर बाहर आ गए ज्योतिरादित्य

कांग्रेस में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के चक्रव्यूह को तोड़कर ज्योतिरादित्य सिंधिया दो साल पहले बाहर आए। कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा में शामिल हुए। भाजपा ने उन्हें राज्यसभा के लिए निर्वाचित कराया और मोदी सरकार में उन्हें उस मंत्रालय का दायित्व सौंपा, जिसे उनके पिता भी संभाल चुके थे। नागरिक उड्डयन मंत्रालय सौंपकर प्रधानमंत्री मोदी ने पूरा विश्वास जताया।

पिता के निधन के बाद ज्योतिरादित्य के कंधों पर आया जिम्मा

माधवराव सिंधिया के असमय निधन के बाद अंचल के विकास का भार ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधों पर आ गया, क्योंकि सरकार में नहीं होने के बाद कें“ सरकार का रिमोट गांधी परिवार के हाथ में था और सिंधिया परिवार के गांधी परिवार से मधुर रिश्ते थे। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को मनमोहन सरकार में ऊर्जा मंत्री का दायित्व मिला। माधवराव सिंधिया के समय में खामोश रहने वाले राजनीतिक प्रतिद्वंदियों ने ज्योतिरादित्य को घेरना चाहा। वे उनके चक्रव्यूह में फंसे तो नहीं पर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में उलझकर रह गए।

60 के दशक में अटलजी का नाम संसद में गूंजा

60 के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम संसद में गूंजने लगा था। ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी बलरामपुर लोकसभा सीट से जीतकर देश के सर्वोच्च सदन में पहुंचे। अटलजी बलरामपुर संसदीय क्षेत्र के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इसके बाद भी ग्वालियर का सपूत होने के कारण उनसे अंचल के लोगों की उम्मीद बंधने लगी थीं। 1977 में जनता पार्टी की सरकार में अटलजी विदेश मंत्री बने तो मानो अंचल के सारे सपने पूरे हो गए।

केंद्र में पहुंचे तोमर तो घूमा विकास का पहिया

महल के सितारे गर्दिश में आने के बाद प्रदेश सरकार व भाजपा संगठन में मजबूत पकड़ रखने वाले नरेंद्र सिंह तोमर अंचल से दिल्ली पहुंचे। नरेंद्र मोदी सरकार में उन्हें खनन व कोयला मंत्रालय का दायित्व मिला। नरेंद्र सिंह की गिनती मोदी मंत्रिमंडल के टाप पांच मंत्रियों में हुई। मोदी सरकार दूसरी बार बनने पर तोमर को कृषि मंत्री का दायित्व मिला, जिसके बाद अंचल के विकास का थमा पहिया कुछ आगे बढ़ा।

एक ही जिले से दिल्ली सरकार में दो मंत्री, यह दबदबा ही तो है

यह ग्वालियर-चंबल अंचल का राजनीतिक दबदबा ही है कि वर्तमान में एक ही जिले से कें“ सरकार में दो केंद्रीय मंत्री हैं। दोनों के पास वजनदार मंत्रालय हैं। नरें“ मोदी सरकार में दो वजनदार मंत्री होने के कारण लोगों की विकास की उम्मीदों को पंख लगे हैं। अटल प्रोग्रेस वे, विमानतल का विस्तार, नए स्टेशन का प्लान, ग्वालियर से आगरा तक सिक्स लेन, एलिवेटेड रोड, आधा दर्जन फ्लाई ओवर ब्रिज, थीम रोड पर स्मार्ट रोड के अलावा कई योजनाएं पाइप लाइन में हैं। इन योजनाअों से अंचल के लोगों को विकास की नई उम्मीद जागी हैं।

देश को प्रधानमंत्री दिया, दुर्योग यह कि ग्वालियर से नहीं बना प्रदेश का मुख्यमंत्री

ग्वालियर-अंचल ने देश को अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में प्रधानमंत्री दिया। अंचल के साथ एक दुर्योग जरूर जुड़ा है कि अंचल से प्रदेश का मुख्यमंत्री अब तक नहीं बन पाया है। हालांकि जिले से मुख्यमंत्री बनने का मौका तीन बार मिला, तीनों बार यह मौका महल के खाते में आया। राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस की डीपी मिश्रा की सरकार गिराई तो उन्हें मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव था, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। दूसरा मौका राजीव गांधी के समय माधवराव सिंधिया को मिला। उन्हें कांग्रेस हाईकमान प्रदेश की बागडोर सौंपने का पूरा मन बना चुका था। केवल घोषणा होनी थी, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और उनके शिष्य दिग्विजय सिंह आड़े आ गए। इसके कारण वे भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन पार्टी हाईकमान ने उनके पसंद के छत्तीसगढ़ के मोतीलाल बोरा को प्रदेश की कमान सौंप दी। तीसरा मौका ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिला। कांग्रेस ने 2018 का चुनाव सिंधिया के चेहरे पर लड़ा, अंचल से उन्हें भारी जनसमर्थन मिला। उम्मीद थी कि सिंधिया मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। इस बार कमल नाथ व दिग्विजय सिंह की जोड़ी आड़े आ गई और दिग्विजय सिंह की मदद से कमल नाथ ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी हथिया ली।

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