साइज, प्रस्पेक्टिव, एंगल अलग, मगर स्तंभों के भाव एक:

BHU के प्रोफेसर बोले- सारनाथ और संसद के शेरों को एक ऊंचाई से देखें, तो पता चलेगी सच्चाई
नई दिल्ली स्थित नए संसद भवन में लगा अशाेक स्तंभ। ब्रॉन्ज से बना यह स्तंभ 6.5 मीटर लंबा है। 9500 किलो वजनी, 6500 किलो का बेस सपोर्टिंग स्ट्रक्चर

नए संसद भवन पर बने भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ के बारे में कहा जा रहा है कि स्तंभ के शेरों की मुद्रा आक्रामक है। दांत निकले हैं। ऐसा लगता है कि हमला करने की फिराक में है। वहीं, वाराणसी के सारनाथ स्थित भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक के शेर शांत और उदार दिखते में हैं। विपक्षियों ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाते हुए इसे संवैधानिक भावना के साथ अपमान बताया है।

सारनाथ में स्थित म्यूजियम में रखा करीब 2400 साल प्राचीन अशोक स्तंभ।
सारनाथ में स्थित म्यूजियम में रखा करीब 2400 साल प्राचीन अशोक स्तंभ।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विजुअल आर्ट्स फैकल्टी के डीन प्रोफेसर हीरालाल प्रजापति ने कहा कि राष्ट्रीय स्तंभ को सद्भावना से देखना चाहिए। देखने वालों का नजरिया है, इसलिए फर्क आ रहा है। लोगों का यह संदेह गलत है कि दोनों स्तंभों के भाव में डिफरेंस है। दोनों स्तंभों में एक साम्यता दिखाई गई है। यानी कि चेहरे का भाव एकसमान है। केवल, सिंहों के साइज, एंगल और प्रस्पेक्टिव में बदलाव आया है। इसलिए दोनों की मुद्रा अलग-अलग लग रही है। जबकि ऐसा सच नहीं है। सारनाथ स्थित सिंह का एक जबड़ा तो टूटा हुआ है। सारनाथ में रखे अशोक स्तंभ को पॉलिश किया गया है। हम म्यूजियम में देखते हैं, इसलिए मुद्रा सौम्य दिखती है। वहीं संसद भवन में लगा स्तंभ ऊंचा है। इसलिए उसे देखने का एंगल बदल जाता है। दोनों को एक समान ऊंचाई और साइज में देखें तो ही असलियत सामने आ जाएगी।

सारनाथ स्थित म्यूजियम का वह हॉल जहां पर अशोक स्तंभ विराजमान है।
सारनाथ स्थित म्यूजियम का वह हॉल जहां पर अशोक स्तंभ विराजमान है।

देखने का आयाम भी अलग होते हैं
प्रो. हीरालाल बताते हैं कि उन्होंने बताया कि किसी चीज को देखने के कई आयाम होते हैं। इनमें एरियल, बॉटम, दोनों साइड और तिरछी आदि शामिल हैं। सारनाथ स्थित स्तंभ में भी सिंह के दांत निकले हुए हैं। आजकल माेबाइल से एंगल बदल-बदलकर सेल्फी लेते हैं तो उसमें भी चेहरे की आकृति बदल जाती है। उन्होंने कहा कि या तो संसद भवन में लगे स्तंभ को छोटा करके देखा जाए या फिर सारनाथ के स्तंभ को बड़े आकार में देखा जाए। चीजें स्पष्ट हो जाएंगी। आज से 2400 साल पहले मूर्तिकला की विशेषताएं अलग थीं। उसके बनाने में अलग-अलग मटेरियल का इस्तेमाल हुआ है। जबकि, आज स्तंभ बनाई जाए, तो कुछ न कुछ बदलाव तो देखने को मिलेंगे ही।

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