चुनावों में वुमन पावर …? 50% आरक्षण की हद से आगे निकली महिलाएं, पुरुषों की 10% सीटें भी जीतीं
मप्र में पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों में महिलाओं को 50 प्रतिशत तक आरक्षण हैं, लेकिन पहली बार एक साथ हुए इन चुनावों में 60% से अधिक महिलाएं निर्वाचित हो गई हैं। पुरुषों की दस फीसदी सीटों पर उनका कब्जा हो गया है जबकि इसके ठीक उलट विधानसभा की 230 सीटों में 2003 से लेकर अब तक 10% भी महिलाएं नहीं जीत पाईं।
पंच और सरपंच महिलाओं की संख्या 65 फीसदी तक है। साफ है कि गांवों की चौखट से बाहर निकलकर महिलाएं अब ग्राम पंचायतों को संभालेंगी। मप्र में ब्यूरोक्रेसी के शीर्ष पद मुख्य सचिव तक पहुंचकर रिटायर होने वाली निर्मला बुच का कहना है कि यह अच्छे संकेत हैं। अब जितना अच्छा काम करेंगी, लोग उन्हें उतना पसंद करेंगे। उनके सामने अब काम करने की बड़ी चुनौती है। महिलाओं को आगे आकर जिम्मेदारी उठानी होगी।
….लेकिन विधानसभा चुनाव में कभी भी 10% सीटें नहीं जीत पाईं
विधानसभा में महिला शक्ति
- 2003 में 19
- 2008 में 22
- 2013 में 18
- 2018 में 21
लेकिन ये चुनौती- पति-बेटे के काम में दखल के आरोपों से बचना होगा
- पंचायत एक्ट की समझ शुरुआत में नहीं होती। जटिलताओं से पार पाना होगा। पंचायत सचिव और ग्राम रोजगार सहायकों से समन्वय बनाना होगा।
- ग्राम पंचायतें इस समय सिर्फ निर्माण कार्यों में लगी हैं, इसके बीच आर्थिक और सामाजिक विकास की अवधारणा को भी लागू करना।
- तहसील-एसडीएम ऑफिस में पति और बेटे के साथ पहुंचने पर आरोप लगते हैं, उनसे बचना।
- महात्मा गांधी स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट संस्था जो पंच-सरपंच के साथ सभी को ट्रेनिंग देती है, उन्हें अनिवार्य रूप से अटेंड करना।
ये अच्छे संकेत... स्वास्थ्य, प्रायमरी एजुकेशन में होगा ज्यादा काम
भारत निर्वाचन आयोग के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत कहते हैं कि यह अच्छे संकेत हैं। लोकल बॉडीज में महिलाएं आती हैं तो काम की गुणवत्ता अच्छी हो जाती है। पुरुष रहते हैं तो उनका फोकस बिल्डिंग्स बनाने, रोड और इंफ्रास्ट्रक्चर की तरफ रहता है, जबकि महिलाएं स्वास्थ्य, पोषण, आंगनबाड़ी, प्रायमरी एजुकेशन और टायलेट बनाने को प्राथमिकता देती हैं। यहीं से सामाजिक बदलाव की शुरुआत होती है। देश-प्रदेश बेहतर होता है।