सरकारी कार्यालयों में मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान क्यों नहीं

आजादी के 75 वर्ष बाद भी मूल सुविधाओं के मामले में उच्च पदस्थ एवं अधीनस्थों के बीच जमीन आसमान का अंतर है
सरकारी कार्यालयों में मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान क्यों नहीं
संसाधनों का बेहतर प्रबंधन एवं इच्छाशक्ति सरकारी कार्यालयों का कायाकल्प कर सकती है। इसका कर्मचारियों की कार्यक्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
लोक कल्याणकारी राज्य में राज्य का मूल उद्देश्य कानून और व्यवस्था बनाए रखते हुए लोगों की भलाई के कार्य करना एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना होता है। हमारे देश में विधायिका और कार्यपालिका मिल कर इस उद्देश्य की पूर्ति करती हैं, विभिन्न लोकसेवक सरकार के कार्यपालिका रूपी अंग की सबसे महत्त्वपूर्ण भुजा है। लोक सेवा या सरकारी सेवा के कई स्तर सरकारी प्रारूप में देखे जा सकते हैं, जिसमें उच्चतम पदों पर कार्यरत लोक सेवकों से लेकर सहायक कर्मचारी तक शामिल हैं।

ब्रिटिश काल में सरकार के उच्चतम पदों पर ब्रिटिश लोग ही काबिज थे, जबकि समस्त अधीनस्थ पद भारतीयों के हिस्से में थे। भारतीयों के साथ भेदभाव की नीति एवं स्वयं को शासक समझने की मानसिकता के चलते उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों को आकर्षक उच्च वेतन के साथ ही सभी प्रकार की सुविधाएं यथा घर, गाड़ी, नौकर आदि बिना शुल्क उपलब्ध थीं, जबकि अधीनस्थ पदों पर कार्यरत भारतीयों के लिए न तो बैठने की उचित व्यवस्था थी और न ही अन्य कोई सुविधा प्राप्त थी, वेतन तो कम था ही। आजादी के 75 वर्ष बाद भी अगर सरकारी सेवकों के हाल देखा जाए, तो कमोबेश समान ही हैं। ब्रिटिश राज में हो रहे भेदभाव के मूल में शासक और शासित का संबंध था, जिसे भारतीयों ने अपनी नियति मान लिया था। ब्रिटिश शासकों के जाने के बाद आजादी के 75 वर्षो बाद भी मूल सुविधाओं के मामले में उच्च पदस्थ एवं अधीनस्थों के बीच जमीन आसमान का फर्क है। पद की गरिमा के अनुरूप सुविधाएं उपलब्ध होने का तर्क स्वीकार योग्य है, परन्तु मानव जीवन की गरिमा के अनुरूप मूल सुविधाओं का अभाव हमारी व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाता है। पद-सोपान अनुरूप पे-बैण्ड आधारित वेतनमान की व्यवस्था एक स्वीकार योग्य स्थिति है, परन्तु अन्य आधारभूत मानवीय गरिमा अनुरूप आवश्यक एवं मूलभूत सुविधाओं का अभाव शोचनीय है। सरकारी तंत्र में उच्चाधिकारियों एवं अधीनस्थों को प्राप्त सुविधाओं में तुलना का अर्थ न तो किसी को आक्षेपित करना है और न ही किसी के लिए कोई दुर्बल भाव पेश करना है। इस तुलनात्मक अध्ययन के पीछे मंशा बस इतनी सी है कि प्रत्येक कार्यालय में कम से कम मूलभूत सुविधाएं पर्याप्त रूप में उपलब्ध हों। यानी हवादार साफ कमरा, स्वच्छ पानी और साफ शौचालय हो, जिससे अपने जीवन के सक्रिय समय का सर्वाधिक समय बिताने वाले स्थान पर सरकारी सेवक अधिक मन लगाकर कार्य कर सकें और आम आदमी के टैक्स के पैसे से वेतन भत्ते पाने वाले लोकसेवक देश निर्माण में अपना और योगदान दे सकें।

सरकार इसके लिए श्रेणीबद्ध व्यवस्था कर सकती है। पूर्व से लागू कार्यालयी संहिताओं और ब्रिटिशकालीन व्यवस्थाओं का पुनरावलोकन किया जा सकता है। सरकार चाहे तो कोई कमेटी भी बना सकती है, जिसका कार्यकाल निश्चित हो तथा यह कमेटी व्यापक स्तर पर सुझाव आमंत्रित का सकती है एवं उसी अनुरूप रिपोर्ट पेश की जा सकती हैं।

सुझावों को आधार बना कर कार्यालयी व्यवस्थाओं एवं सुविधाओं में परिवर्तन कर सुधार किया जा सकता है, जिससे ये स्थान कार्य करने के लिए अधिक उपयुक्त बन सकें। प्रत्येक कार्यालय में पीने का पानी, स्वच्छ शौचालय, साफ कक्ष, पार्किंग आदि की व्यवस्था आवश्यक रूप से की जानी चाहिए। इसी क्रम में कार्यरत महिला कर्मचारियों की सुविधा के लिए कॉमन रूम, क्रैच आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त विशेष योग्यजनों के लिए आवश्यक व्यवस्थाओं जैसे रैम्प, रेलिंग, ब्रेल लिपि में संकेतक आदि तक पहुंच आसान होनी चाहिए। उपलब्ध संसाधनों का बेहतर प्रबंधन एवं इच्छाशक्ति सरकारी कार्यालयों का कायाकल्प कर सकती है। इसका कर्मचारियों की क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

(ये लेखक के स्वयं के विचार हैं।)

कार्यालय में पीने का पानी, स्वच्छ शौचालय, साफ कक्ष, पार्किंग आदि की व्यवस्था आवश्यक रूप से की जानी चाहिए।

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