फ्री स्कीम्स पर : जस्टिस रमना बोले- सरकार में आने के लिए अवैध को वैध कर देती हैं राजनीतिक पार्टियां
फ्री स्कीम्स पर CJI ने सुनाई ससुर की कहानी …?
चुनाव में फ्री स्कीम्स के वादों पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस एनवी रमना ने एक वाकया सुनाया। उन्होंने कहा कि मेरे ससुर किसान हैं और जहां वे रहते हैं, वहां सरकार ने बिजली कनेक्शन देने पर रोक लगा दी थी। इस पर उन्होंने मुझसे पूछा भी कि क्या इसके खिलाफ याचिका दाखिल की जा सकती है?
लेकिन कुछ महीने बाद सरकार ने ऐलान किया कि जिनके पास बिजली का अवैध कनेक्शन है, उन सबका कनेक्शन अब से वैध हो जाएगा। बताइए, ये किस तरह का वेलफेयर स्कीम है? जो लोग कनेक्शन के लिए इंतजार कर रहे थे, उनलोगों को छोड़ दिया गया। हम क्या संदेश दे रहे हैं? अवैध काम करने वालों को फायदा हो रहा है। मैं अपने ससुर को कोई जवाब नहीं दे सका।
कोर्ट ने चुनाव आयोग को लगाई फटकार
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग को कड़ी फटकार लगाई। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने आयोग से पूछा कि आपने हलफनामा कब दाखिल किया? रात में हमें तो मिला ही नहीं, सुबह अखबार देखकर पता चला।
चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने मामले की सुनवाई की। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल कोर्ट सलाहकार और अभिषेक मनु सिंघवी आप की ओर से पेश हुए। कोर्ट ने आम बादमी पार्टी को भी पक्षकार बना लिया है। मामले पर अगली सुनवाई अब 17 अगस्त को होगी।
सुनवाई के दौरान किसने क्या कहा…
चीफ जस्टिस- भारत जैसे गरीब देश में इस तरह का रवैया सही नहीं है। चुनाव में घोषणा के वक्त पॉलिटिकल पार्टी ये नहीं सोचतीं कि पैसा कहां से आएगा? मुफ्त चुनावी वादे और सोशल वेलयफेयर स्कीम में फर्क है।
कपिल सिब्बल– यह एक जटिल मुद्दा है, जिसे सुनने के लिए डेटा चाहिए। मेरा यहां एक महिला कर्मचारी काम करती हैं। कल उनके पास मेट्रो से जाने के लिए पैसे नहीं थे तो मैंने दिए। उन्होंने बताया कि दिल्ली में बस सेवा फ्री है और ट्रैवलिंग के लिए उसी का ज्यादा उपयोग कर रही हूं। क्या ये फ्री स्कीम्स है?
तुषार मेहता- ये एक तरह से आर्थिक आपदा है। सुप्रीम कोर्ट फ्री स्कीम्स पर कोई दिशा-निर्देश बना दें। पैनल का सुझाव भी बढ़िया है।
अभिषेक मनु सिंघवी- पैनल का गठन गैर-जरूरी है। चुनाव के वक्त मतदाताओं और उम्मीदवारों के बीच कल्याणकारी योजना एक सेतु की तरह काम करता है, जिससे वोटर्स अपना वोट तय करने की दिशा में बढ़ता है। कोर्ट का हस्तक्षेप राजनीतिक हो जाएगा।
पैनल में हमें ना करें शामिल, दबाव बनेगा
इससे पहले चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा है कि फ्री का सामान या फिर अवैध रूप से फ्री का सामान की कोई तय परिभाषा या पहचान नहीं है। आयोग ने 12 पन्नों के अपने हलफनामे में कहा है कि देश में समय और स्थिति के अनुसार फ्री सामानों की परिभाषा बदल जाती है। ऐसे में विशेषज्ञ पैनल से हमें बाहर रखा जाए। हम एक संवैधानिक संस्था हैं और पैनल में हमारे रहने से फैसले को लेकर दबाव बनेगा।
SC ने की थी टिप्पणी- आयोग गंभीर नहीं
4 अगस्त को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- आयोग ने इस मसले पर पहले कदम उठाए होते तो आज ऐसी नौबत नहीं आती। कोर्ट ने आगे कहा- शायद ही कोई पार्टी मुफ्त की योजनाओं के चुनावी हथकंडे छोड़ना चाहती है। इस मुद्दे को हल करने के लिए विशेषज्ञ कमेटी बनाने की जरूरत है, क्योंकि कोई भी दल इस पर बहस नहीं करना चाहेगा।
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर की है। इसमें मांग की है कि चुनाव में उपहार और सुविधाएं मुफ्त बांटने का वादा करने वाले दलों की मान्यता रद्द की जाए।
चुनावों में राजनीतिक दल ऐसे कर रहे मुफ्त के वादे
1. पंजाब विधानसभा चुनाव में आप ने 18 साल से अधिक उम्र की सभी महिलाओं को 1,000 रुपए महीना देने का वादा किया।
2. शिअद ने हर महिला को 2,000 रुपए देने का वादा किया।
3. कांग्रेस ने घरेलू महिलाओं को 2000 रु. माह देने का वादा किया।
4. UP में कांग्रेस का 12वीं की छात्रा को स्मार्टफोन देने का वादा।
5. UP में भाजपा ने 2 करोड़ टैबलेट देने का वादा किया था।
6. गुजरात में आप ने बेरोजगारों को 3000 रु. महीना भत्ता देने का वादा किया। हर परिवार को 300 यूनिट फ्री बिजली का भी वादा।
7. बिहार में भाजपा ने मुफ्त कोरोना वैक्सीन देने का वादा किया।