इंदौर के उद्योगों को डेढ़ हजार करोड़ रुपये राजस्व चुकाकर मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलती

इंदौर के उद्योगों को डेढ़ हजार करोड़ रुपये राजस्व चुकाकर मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलती …

Indore News: बहुत नाइंसाफी है, सड़क, पानी और सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए भी तरस रहे औद्योगिक क्षेत्र। दुर्भाग्य की बात है कि 50 साल बाद भी ये औद्योगिक क्षेत्र बदहाल हैं। उद्योग कह रहे हैं हम रोजगार दे रहे हैं, जिम्मेदार कम से कम सुविधाएं तो दें।

 इंदौर। प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर की उद्यमिता का पराक्रम तीन प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में नुमाया होता है। ये हैं सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र, पालदा औद्योगिक क्षेत्र और पोलोग्राउंड औद्योगिक क्षेत्र। इन क्षेत्रों के लगभग चार हजार उद्योगों से राज्य सरकार हर साल डेढ़ हजार करोड़ रुपये की कमाई करती है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि 50 साल बाद भी ये औद्योगिक क्षेत्र बदहाल हैं। पानी, सड़क और सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए यहां के उद्योग वर्षों से तरस रहे हैं। यहां के उद्योग शहर के हजारों हाथों को काम दे रहे हैं, लेकिन सरकार के नुमाइंदे उद्यमियों की समस्याएं अकसर अनसुनी करते रहे हैं।

…….ने इन सभी औद्योगिक क्षेत्रों की समस्याओं की पड़ताल शुरू की है। दरअसल, संगठित औद्योगिक क्षेत्रों को बसाकर शहर के आर्थिक विकास की कहानी शुरू हुए आधी सदी से ज्यादा समय बीत चुका है। इन तीन प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों की बदौलत शासन के खजाने में टैक्स, ड्यूटी और शुल्क के तौर पर ही करीब डेढ़ हजार करोड़ सालाना जमा होता है, लेकिन इंदौर की उद्यमिता का चेहरा बने औद्योगिक क्षेत्र मूलभूत सुविधाओं के भी मोहताज बने हुए हैं। उद्योग कह रहे हैं हम रोजगार दे रहे हैं, टैक्स भी चुका रहे हैं, जिम्मेदार कम से कम सुविधाएं तो दें।

पचास साल बाद भी बदहाल

सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र को बसाए करीब 50 वर्ष हो चुके हैं। फैलाव से लेकर एफतक पहचाने जाने वाले छह सेक्टरों में हो चुका है। क्षेत्र में कम से कम 3000 उद्योग संंचालित हो रहे हैं। इनमें बड़ी इकाइयों से लेकर छोटे और मध्यम उद्योग शामिल हैं। एसोसिएशन आफ इंडस्ट्रीज मप्र के आंकड़ों के अनुसार, क्षेत्र के उद्योग कम से कम 900 करोड़ का राजस्व विभिन्न् मदों में चुका रहे हैं। बावजूद मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल सकी हैं। न पीने का पानी है, न जल-मल निकासी की व्यवस्था। दस वर्ष से ज्यादा हो गए, नगर निगम इस पूरे क्षेत्र को अपने अधीन ले चुका है। अंधेरी सड़कों के कारण कर्मचारियों में भय पैदा हुआ तो उद्योगपतियों ने ही क्षेत्र में स्ट्रीट लाइट लगाने का काम शुरू कर दिया।

कागजों पर औद्योगिक क्षेत्र का दर्जा नहीं

पुराने औद्योगिक क्षेत्रों में जगह कम पड़ी तो शहर के उद्यमियों ने अपने बूते पर पालदा क्षेत्र को उद्योग बसाए। करीब 40 साल पहले इस क्षेत्र के बसने की शुरुआत हुई थी। यहां 450 औद्योगिक इकाइयां हैं। ज्यादातर उद्योग छोटे और मध्यम श्रेणी के हैं। पहले यह क्षेत्र शहरी सीमा से बाहर था, लेकिन अब नगर निगम सीमा में आता है। सस्ता श्रम इस औद्योगिक क्षेत्र की खासियत था। लिहाजा श्रमिकों की बसाहट भी क्षेत्र के पास ही हुई। यातायात जाम के लिए बदनाम यह क्षेत्र खराब सड़कों से परेशान हैं। जलापूर्ति और ड्रेनेज सिस्टम जैसी समस्याएं आम हैं। अवैध वसूली भी क्षेत्र की अहम समस्या रही तो उद्योगों ने खुद इसकी लड़ाई लड़ी। खास बात ये है कि सैकड़ों करोड़ का टैक्स और हजारों को रोजगार देने वाले औद्योगिक क्षेत्र को आज तक सरकारी कागजों में औद्योगिक क्षेत्र ही नहीं माना गया है। साल-दर-साल आश्वासन ही मिल रहा है।

दोहरा टैक्स, सुविधाएं आधीं

पोलोग्राउंड औद्योगिक क्षेत्र के साथ ही कभी शहर में औद्योगिक क्षेत्र का विकास शुरू हुआ था। उद्योग विभाग ने क्षेत्र बसाया। बीते वर्षों में नगर निगम ने क्षेत्र को शामिल कर लिया। हाल ये हैं कि उद्योगपति उद्योग विभाग के शुल्क और करों के साथ नगर निगम का टैक्स भी चुका रहे हैं। दोहरा टैक्स देने के बावजूद न कचरा निस्तारण की सुविधा मिल पा रही है, न अपशिष्ट निकासी के प्रबंध हैं। साफ पानी से लेकर सामान्य नागरिक सुविधाओं के लिए परेशान होना पड़ रहा है। क्षेत्र के उद्योग सरकार की ओर से सब्सिडी जारी होने में हो रही देरी सेे भी परेशान दिख रहे हैं।

उद्योगपतियों की पीड़ा…

बाजार से खरीदते हैं पानी, कचरा उठना भी बंद

सांवेर रोड हो या अन्य औद्योगिक क्षेत्र, उद्योगों को निगम पानी की आपूर्ति तक नहीं कर रहा। उद्योग कर्मचारियों के पीने के पानी का प्रबंध बाजार से खरीद कर रहे हैं। कुछ व्यक्तियों वाले छोटे उद्योगों को हर माह 20-30 हजार तो पीने के पानी पर खर्च करने पड़ रहे हैं। बड़े उद्योग मजबूरी में भूजल का दोहन कर रहे हैं। निगम टैक्स पूरे ले रहा है। कचरा संग्रहण शुल्क वसूली करने नगर निगम के कर्मचारी नियमित आते हैं, लेकिन औद्योगिक क्षेत्रों में कचरा गाड़ी नहीं आती। औद्योगिक क्षेत्र का हर सेक्टर अतिक्रमण से परेशान है। सांवेर रोड ई-सेक्टर के अंतर्गत दो एकड़ में कन्वेंशन सेंटर का निर्माण दो साल से हो रहा है, लेकिन पौन एकड़ जमीन अतिक्रमण की गिरफ्त में होने से काम पूरा नहीं हो पा रहा है।

प्रमोद डफरिया, चेयरमैन, आरेल इंडस्ट्रीज और पूर्व अध्यक्ष एआइएमपी

नई नीति से पुराने क्षेत्रों के विकास की उम्मीद

उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव पी नरहरि से उद्योगों की समस्याओं पर विस्तृत बैठक हुई है। पालदा औद्योगिक क्षेत्र जैसे पुराने औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के लिए सरकार नई नीति बनाएगी। हम उद्योगों की ओर से इस नीति पर विभाग को सुझाव भेज रहे हैं। शासन की क्लस्टर नीति में आवश्यक सुधार करने की जरूरत भी हमने बताई है। कन्वेंशन सेंटर की जमीन पर अतिक्रमण से मुक्ति के लिए उद्योग विभाग को बाउंड्रीवाल के निर्माण के लिए फंड स्वीकृत करने की मांग की गई है। शहर के पुराने उद्योगों की उम्मीदें अब सरकार की नई नीति पर टिकी है। उम्मीद कर रहे हैं कि अब समस्याएं दूर हो सकेगी।

योगेश मेहता, अध्यक्ष, एसोसिएशन आफ इंडस्ट्री मप्र

आंकड़ों पर नजर

सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र

कुल उद्योग : 3000

रोजगार : 50 हजार से ज्यादा प्रत्यक्ष

प्रकार : लोहा उद्योग से लेकर मशीनरी, फुटवियर, फर्नीचर, वाहन, वायर निर्माण और पेंट से लेकर खाद्य प्रसंस्करण व निर्यात इकाइयां आदि।

कुल राजस्व: टैक्स और शुल्क आदि के रूप में 900 करोड़ रुपये

पालदा औद्योगिक क्षेत्र

कुल उद्योग: 450

रोजगार: 15 हजार से ज्यादा

प्रकार: फूड प्रोसेसिंग, दाल मिल, कन्फेक्शनरी, मसाला और फर्नीचर व फुटवियर उद्योग।

राजस्व: टैक्स व अन्य शुल्क के रूप में चुका रहे 400 करोड़ रुपये

पोलोग्राउंड औद्योगिक क्षेत्र

कुल उद्योग: 150

रोजगार: पांच हजार से ज्यादा

प्रकार: रेडीमेड गारमेंट, पैकेजिंग, प्रिंटिंग, कागज, दवा निर्माण और खिलौना निर्माण इकाइयां।

राजस्व: शुल्क व टैक्स के रूप में 100 करोड़ रुपये से ज्यादा

 

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