दागी पटवारियों की शहर वापसी ने बढ़ाई मुश्किल …! घोटालेबाज पटवारी का तबादला
बैकफुट पर सतना प्रशासन
दागी पटवारियों की शहर वापसी ने बढ़ाई मुश्किल, रद्द किया जेल जा चुके घोटालेबाज पटवारी का तबादला
राजनैतिक दबाव में दागी और विवादित पटवारियों के शहरी क्षेत्र में तबादले कर मुश्किल में पड़े सतना जिला प्रशासन को बैकफुट पर आना पड़ा। जोर-जुगाड़ के दम पर विधानसभा के निर्देश के बावजूद शहर में आ गए दागियों में से एक जेल जा चुके घोटालेबाज पटवारी का ट्रांसफर प्रशासन को कैंसिल करना पड़ा है, हालांकि अभी कई अन्य विवादित चेहरों पर कोई निर्णय नहीं हुआ।
हाल ही में जिले के प्रभारी मंत्री से अनुमोदन प्राप्त कर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से सतना शहरी क्षेत्र की रघुराजनगर तहसील में स्थानांतरित किए गए कुछ विवादित पटवारियों में से एक पटवारी रामानंद सिंह का तबादला रद्द कर दिया। शुक्रवार को संयुक्त कलेक्टर ने रामानंद का ट्रांसफर रद्द किए जाने का आदेश जारी कर दिया।
स्थानांतरण नीति की कंडिका नंबर 25 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया कि जिसे भी शिकायत अथवा प्रशासनिक कारण से जिस क्षेत्र से हटाया गया होगा उसे वापस उस क्षेत्र में पदस्थ नहीं किया जा सकेगा। बावजूद इसके उचेहरा तहसील के पटवारी हलका बिहटा में रहे रामानंद सिंह पटेल को सतना शहर की रघुराजनगर तहसील के बरदाडीह हलके में स्थानांतरित कर दिया गया था।
रामानंद ने बिहटा का प्रभार नए पटवारी को सौंपे बिना रघुराजनगर में आमद में भी अगले ही दिन दे दी थी, लेकिन जॉइनिंग के बावजूद शुक्रवार को प्रशासन को आखिरकार ट्रांसफर कैंसिल करना पड़ा। हालांकि अभी कई अन्य विवादित चेहरों पर कोई निर्णय कलेक्टर भी नहीं ले पाए हैं।
सरकारी जमीन के सबसे बड़े फर्जीवाड़े में आरोपी
गौरतलब है कि रामानंद पटेल सतना के सरकारी जमीन के सबसे बड़े फर्जीवाड़े में आरोपी है। उसके खिलाफ सिटी कोतवाली में अपराध भी दर्ज है और उसे जेल भी भेजा गया था। इतना ही नहीं सतना के सोनौरा और कृपालपुर के जमीन घोटाले की गूंज प्रदेश विधानसभा में होने के बाद रामानंद पटेल समेत कई पटवारियों के संबंध में इन्हें दोबारा सतना शहरी क्षेत्र में पदस्थ न किए जाने के निर्देश भी दिए।
विधानसभा की कार्रवाई में सतना के पटवारियों को लेकर यह टिप्पणी दर्ज की गई थी कि सतना के पटवारी इतने पावरफुल है कि चीफ सेक्रेटरी का तबादला हो सकता है, लेकिन सतना के पटवारियों का नहीं।
शिकायत- गड़बड़ी पर हटने वाले भी वापस
विधानसभा की इस तल्ख टिप्पणी के बावजूद न केवल घोटालेबाजी के आरोपी रामानंद को वापस सतना बुलाया गया, बल्कि विधानसभा के निर्देश के दायरे में रहे पटवारी विजय बहादुर सिंह (बड़े) विजय बहादुर सिंह समेत स्नेहलता सिंह, इंद्रजीत सिंह, अखंड प्रताप सिंह, दिनेश सिंह जैसे विवादित चेहरे भी शहर वापस आ गए। शिकायतों और गड़बड़ियों के कारण हटाए गए पटवारी भी स्थानांतरण नीति को ठेंगा दिखाते हुए वापस लौट आए।
तीन की जॉइनिंग के लिए अलग से आदेश
जिन्हें विधानसभा ने शहर से दूर रखने को कहा था उन पटवारियों की जॉइनिंग में भी प्रशासन ने जल्दबाजी दिखाते हुए तीन पटवारियों विजय बहादुर सिंह, विजय बहादुर सिंह और स्नेहलता सिंह को प्रभार ग्रहण करने मे पृथक से आदेश भी 12 अक्टूबर को जारी कर दिया। सवाल इस पर भी उठे कि आखिर ऐसी भी क्या जल्दी थी और ये तीन पटवारी ऐसे क्या खास हैं कि इनके लिए अलग से जॉइनिंग आदेश जारी करना पड़ा जबकि तबादले तो रघुराजनगर तहसील के शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में 20 पटवारियों के हुए।
तबादलों में कंडिका 26 का भी उल्लंघन
सतना में पटवारियों के तबादले करने के लिए पड़े राजनैतिक दबाव के आगे प्रशासन के झुकने का आलम यह है कि यहां तबादला नीति की कंडिका 25 का उल्लंघन कर हटाये गए चेहरों की वापसी तो कराई ही गई। कंडिका 26 को भी दरकिनार कर दिया गया। कंडिका 26 के अनुसार 40 फीसदी से ज्यादा विकलांग पटवारियों के तबादले नहीं करने थे, फिर भी 55 फीसदी विकलांग महिला पटवारी शालिनी श्रीवास्तव को मटेहना से हटा कर कोठी भेज दिया।
राजनैतिक दबाव की चर्चा जोरों पर
सतना के पटवारियों के तबादले के मामला हमेशा से किसी आग के गोले जैसा रहा है। यहां पटवारियों के तबादले जनता की जरूरत और समस्या समाधान तथा प्रशासनिक व्यवस्था के लिहाज से नहीं बल्कि नेताओं की खुशामद के हिसाब से होने की चर्चा इस बार भी जोरों पर है। कलेक्ट्रेट ही नहीं राजनैतिक गलियारों में भी चर्चा गर्म है कि पटवारियों के तबादलों में सांसद की चली है।
जिन चेहरों को लेकर विवाद खड़ा हुआ है वे सांसद के करीबी हैं और उन्हें वापस शहर में लाने के लिए पिछले कई वर्षों से प्रयास चल रहे थे। पिछले वर्ष भी इस पर दबाव बनाया गया था, लेकिन तब के कलेक्टर अजय कटेसरिया ने न केवल प्रभारी मंत्री के सामने इंकार कर दिया था, बल्कि राजनैतिक दबाव में आने के बजाय पटवारियों के तबादलों की फ़ाइल सीएम क्वार्डिनेशन में भेज दी थी। लेकिन इस बार पटवारी विधानसभा पर भी भारी पड़ गए और प्रशासन राजनैतिक दबाव में ऐसा झुका कि अब तबादले प्रशासन के गले की फांस बन गए।