आयुष्मान के नाम पर अस्पताल ही फर्जी वाड़ा नहीं कर रहे। बल्की इस काम में मरीज भी पीछे नहीं है। इलाज का बोझ कम करने के लिए आयुष्मान कार्ड बनवाने में खूब फर्जीवाड़ा हो रहा है। इसके लिए जेएएच से लेकर निजी अस्पताल तक दलाल सक्रिय हैं। यह लोग 5 हजार रुपये में किसी का भी फर्जी आयुष्मान कार्ड बना देते हैं। जिन लोगों का आयुष्मान कार्ड नहीं बनता वह इन दलालों से कार्ड बनवाकर धड़ल्ले से निशुल्क उपचार ले रहे हैं। ऐसा निजी अस्पताल से लेकर सरकारी अस्पतालों में खेल चल रहा है। नईदुनिया की पड़ताल में सामने आया कि किस तरह से फर्जी आयुष्मान कार्ड बनाया जा रहा है ।जिनका उपयोग कर लोग सरकार को लाखों रुपये का चूना लगा रहे हैं। हालांकि उपचार ले रहे मरीज से लेकर फर्जीकार्ड बनाने वालों ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर फर्जी कार्ड बनाने का पूरा गणित समझाया।

इस तरह से तैयार होता फर्जी आयुष्मान कार्ड

जयारोग्य अस्पताल में आयुष्मान कार्ड बनाने के लिए एक खिड़की बनाई गई है। जहां पर मरीज का आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए टीम पहुंची तो समग्र आईडी मांगी गई। विंडो पर कर्मचारी ने समग्र आइडी की कंप्युटर पर जांच की तो बताया कि आयुष्मान कार्ड नहीं बनाया जा सकता। तभी वहां पर एक परिचित मरीज के अटेंडेंट मिला। जो फर्जी कार्ड पर अपने मरीज का निजी अस्पताल में उपचार करा रहा है। उसने अपना और दलाल का नाम न छापने की शर्त पर आयुष्मान कार्ड के फर्जीवाड़े का पूरा गणित दलाल के माध्यम से सुनवाया। दलाल ने बताया कि जिन लोगों की समग्र आइडी पोर्टल में दर्ज नहीं है उनका कार्ड नहीं बन पाता। ऐसे में हम लोगा यह देखते हैं कि मरीज के उपनाम की कोई ऐसी समग्र आइडी है जो आयुष्मान योजना के तहत आती है। ऐसी ही समग्र आइडी को आनलाइन खोजते हैं। जब यह समग्र आइडी मिल जाती है तो उस परिवार आइडी में मरीज का नाम दाखिल कराते हैं। जब मरीज का नाम दाखिल हो जाता है तब उसका आयुष्मान कार्ड बना दिया जाता है। इस पूरे मैकेनिजम में नगर निगम के कर्मचारी भी शामिल रहते हैं। इस पूरे मैकेनिजम को अपनाकर आयुष्मान कार्ड बना दिया जाता है। 5000 रुपये में फर्जीवाड़ाकर आयुष्मान कार्ड बना दिया जाता है जो पूरी तरह से मरीज को उपचार दिलाने में सक्षम होता है।

निजी अस्पतालों में बैठे एजेंट

निजी अस्पताल में तैनात स्टाफ के संपर्क में एजेंट रहते हैं। निजी अस्पताल में तैनात स्टाफ यह देखता है कि अस्पताल में मरीज कितने लंबे समय से भर्ती है और उसके उपचार पर कितना खर्चा आ रहा है। यदि उस मरीज के पास आयुष्मान की सुविधा नहीं है तो अस्पताल का स्टाफ ही उन्हें आयुष्मान कार्ड बनवाने का सुझाव देता है। वही स्टाफ मरीज के अटेंडेंट से सौदाबाजी कर आयुष्मान कार्ड बनवाकर देता है। जब मरीज के अटेंडेंट और स्टाफ के बीच सौदा तय हो जाता है तब कार्ड बनाने वाला दलाल सामने आता और मरीज के फिंगर प्रिंट आदि लेकर कार्ड बनाकर दे देता है। इस तरह से कुछ मरीजों ने कार्ड बनवाए हैं और अभी निजी अस्पताल में उपचार भी ले रहे हैं।