भारत में मुसलमानों को कैसे मिलता है आरक्षण ?
भारत में मुसलमानों को कैसे मिलता है आरक्षण, बीजेपी को किस बात पर है ऐतराज
भारत में कई मुस्लिम समुदायों को केंद्र के ओबीसी (OBC) और कुछ राज्यों की ओबीसी लिस्ट में आरक्षण मिलता है. एक सर्वे के मुताबिक मुसलमानों में लगभग 41% ओबीसी वर्ग में आते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कांग्रेस पार्टी पर एससी/एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को मिलने वाला आरक्षण कम करने का आरोप लगा रहे हैं. पीएम मोदी का दावा है कि कांग्रेस का मकसद इन लोगों के हिस्से का आरक्षण कम करके धर्म के आधार पर सभी मुस्लिमों को देना है, जो कि ये संविधान के खिलाफ है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारतीय संविधान के तहत मुसलमानों को आरक्षण मिल सकता है या नहीं, अगर हां तो कैसे मिलता है और अगर मुस्लिम को आरक्षण दिया जा सकता है तो बीजेपी को किस बात पर ऐतराज है.
पहले समझिए क्या मुसलमानों को मिल सकता है आरक्षण?
भारत में कई मुस्लिम समुदायों को केंद्र और राज्य स्तर पर ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण का फायदा मिलता है. ये सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 16(4) से जुड़ा है. ये अनुच्छेद कहता है कि राज्य की सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व न रखने वाले पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया जा सकता है.
जस्टिस ओ चिन्नप रेड्डी की अध्यक्षता वाले तीसरे पिछड़ा वर्ग आयोग (Backward Class Commission) ने अपनी रिपोर्ट में ये बताया है कि शिक्षा और सामाजिक रूप से कई मुस्लिम समुदाय पिछड़े हुए हैं. शिक्षा के मामले में कुछ मुसलमानों की आर्थिक स्थिति अनुसूचित जातियों (SC) जैसी है.
इसी आधार पर आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 15(4) के तहत मुसलमानों को सिर्फ शिक्षा में आरक्षण देने की सिफारिश की. 2006 में जस्टिस सच्चर कमेटी की रिपोर्ट भी इसी नतीजे पर पहुंची. तो कुल मिलाकरसंविधान के प्रावधानों और पिछड़े वर्ग आयोगों की रिपोर्टों के आधार पर कुछ मुस्लिम समुदायों को ओबीसी आरक्षण दिया जाता है.
हालांकि, ओबीसी आरक्षण में भी एक पेच है जिसे हम ‘क्रीमी लेयर’ कहते हैं. यानी सालाना 8 लाख रुपये या इससे ज्यादा कमाने वालों को आरक्षण का फायदा नहीं मिलता है. चाहे वो किसी भी पिछड़े वर्ग के हों, उन अमीर लोगों को ओबीसी आरक्षण नहीं मिलेगा. इसका मतलब ये हुआ कि जो मुस्लिम सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ गए हैं, उन्हें भी ये आरक्षण नहीं मिल सकता.
देश में अभी मुस्लिम आरक्षण की क्या है स्थिति?
केंद्र की पिछड़ा वर्ग सूची में कुछ मुस्लिम जातियों को उन राज्यों में आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है जहां मंडल आयोग लागू है. पीआईबी की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु में मुस्लिम समुदाय की कुछ जातियों, तेली मुसलमानों और उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल असम के मुस्लिम कायस्थों को ओबीसी आरक्षण दिया जा रहा है. हालांकि हर राज्य में मुस्लिम आरक्षण का कोटा अलग-अलग है.
- केरल में 30% ओबीसी कोटे में से मुस्लिमों को शिक्षा में 8% और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण मिलता है
- तमिलनाडु में लगभग 95% मुस्लिम समुदाय को आरक्षण का फायदा होता है
- बिहार में ओबीसी दो वर्गों में बंटे हैं- पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग. ज्यादातर मुस्लिम वहां ‘अति पिछड़ा वर्ग’ में आते हैं.
- आंध्र प्रदेश में मुस्लिम समुदाय को 5% आरक्षण दिया गया. हालांकि, बाद में रद्द कर दिया गया क्योंकि ये आरक्षण पिछड़ा वर्ग आयोग से परामर्श किए बिना दिया गया था.
आरक्षण देने की क्या कोई शर्त भी है?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट और संविधान विशेषज्ञ जी मोहन गोपाल ने मीडिया से एक बयान में कहा, सबसे अहम बात ये है कि हर वो वर्ग जो आरक्षण लेना चाहता है, उसे कुछ खास शर्तें पूरी करनी होती है. पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए ‘नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज’ (राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग) कुछ बातों को ध्यान में रखता है.
जैसे क्या समाज में उन्हें नीची निगाह से देखा जाता है? उनके कितने बच्चे स्कूल नहीं जा पाते? या उनके परिवार की संपत्ति कितनी है? अगर ये सब डेटा मौजूद है और साबित होता है कि मुसलमान समाज इन शर्तों पर खरा उतरता है तो संविधान के मुताबिक उन्हें आरक्षण मिल सकता है.
कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि मुसलमान समाज सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है. मिसाल के तौर पर साल 2006 की सच्चर कमेटी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि मुसलमान समुदाय कुल मिलाकर हिंदू-ओबीसी से भी ज्यादा पिछड़ा हुआ है. इस रिपोर्ट में मुसलमानों के लिए अलग-अलग सहायता कार्यक्रमों की सलाह दी गई थी.
इसी रिपोर्ट के आधार पर केरल सरकार ने 2008 में एक कमेटी बनाई जिसने ये पाया कि केरल में मुसलमान दूसरे समुदायों से काफी पीछे हैं. खासकर सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में पिछड़े हैं. कमेटी ने मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की सिफारिश की थी.
कर्नाटक में कैसे रद्द हो गया मुस्लिम कोटा
कर्नाटक में पहले ओबीसी के लिए 32 फीसदी आरक्षण में से 4% वाली एक उप-श्रेणी मुसलमानों के लिए आरक्षित थी. मई 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले मार्च में भाजपा के नेतृत्व वाली बसवराज बोम्मई सरकार ने ये कोटा रद्द कर दिया था.
तत्कालीन बीजेपी सरकार ने उस 4% को वोक्कालिगा और लिंगायत जैसी प्रभावशाली हिंदू जातियों में बांट दिया था. बीजेपी का कहना था कि धर्म के आधार पर पूरे समुदाय को आरक्षण देना संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के मुसलमानों को कोटा से लाभ मिलता रहेगा.
मतलब तब की राज्य बीजेपी सरकार ने ये फैसला लिया कि मुसलमान अब पिछड़े नहीं हैं, इसलिए उन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिलना चाहिए. लेकिन जानकारों का कहना है कि ये फैसला गलत है क्योंकि मुसलमानों को उनकी पिछड़ी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण दिया गया था, न कि सिर्फ उनके धर्म के कारण.
अप्रैल 2023 में कुछ लोगों ने कर्नाटक सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार का ये फैसला पहली नजर में ही गलत और कमजोर आधार पर लिया गया लगता है.
तब बोम्मई सरकार ने कोर्ट को भरोसा दिया कि जब तक केस चल रहा है तब तक इस फैसले को लागू नहीं किया जाएगा. इसके बाद, विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में मुस्लिम समुदाय के लिए 4% आरक्षण को दोबारा बहाल करने का वादा किया. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली.
अब अप्रैल 2024 में लोकसभा चुनाव के पहले चरण से कुछ दिन पहले राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर ने दावा किया कि कांग्रेस सरकार सभी मुसलमानों को धर्म के आधार पर ओबीसी वर्ग में से आरक्षण दे रही है. एनसीबीसी ने राज्य सरकार से इसपर जवाब मांगा. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जवाब दिया कि सरकार ने ओबीसी आरक्षण व्यवस्था में कोई नया बदलाव नहीं किया है.
NCBC पर राजनीति करने का आरोप
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के बयान पर पलटवार किया. उन्होंने कहा कि NCBC ऐसा करके राजनीति कर रही है. उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है जैसे कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने मुसलमानों के लिए कोई नया आरक्षण दे दिया है. यह पूरी तरह झूठ है. असल में, मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण काफी समय से चला आ रहा है. 3 मार्च 1977 से ही यह व्यवस्था है और यह कानूनी चुनौतियों से भी बचकर सही साबित हुआ है.”
आम तौर पर लोग मानते हैं कि मुसलमानों के लिए ये आरक्षण एचडी देवगौड़ा ने अपनी सरकार के समय में 1995 में शुरू किया था. उस वक्त OBC कोटे के तहत ही मुसलमानों के लिए ‘2बी’ नाम का एक अलग वर्ग बना दिया गया था. दिलचस्प बात ये है कि आज देवगौड़ा की पार्टी जेडी(एस) कर्नाटक में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में शामिल है.
बीजेपी को किस बात पर है ऐतराज
बीजेपी लगातार कांग्रेस पार्टी पर मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण देने के मुद्दे पर हमलावर है. चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि कर्नाटक में कांग्रेस ने सभी मुसलमानों को ओबीसी कोटा से आरक्षण देकर ओबीसी घोषित कर दिया.
कांग्रेस कर्नाटक की तरह ऐसे ही पूरे देश में आरक्षण व्यवस्था लागू करना चाहती है. कांग्रेस और उसके सहयोगी दल ओबीसी और एससी समुदाय के आरक्षण के अधिकार छीनकर एक विशेष समुदाय को देना चाहते हैं.
असल में बीजेपी को आपत्ति इस बात से है कि किसी भी धार्मिक समुदाय को सिर्फ धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. बीजेपी का कहना है कि वो सिर्फ पूरे समुदाय को एक साथ आरक्षण देने से इनकार कर रहे हैं, न कि मुसलमानों को आरक्षण देने से. क्योंकि संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण का प्रावधान ही नहीं है.
मुस्लिम आरक्षण पर अदालत का फैसला
कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मुसलमानों को मिलने वाले आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना अभी बाकी है. 2005 में आंध्र प्रदेश के हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस फैसले को खैरिज कर दिया था जिसमें उन्होंने मुसलमानों को 5% आरक्षण देने की बात कही थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकार ने मुसलमानों के पिछड़ेपन का सही से आंकलन नहीं किया है, उनके तरीके में कई कमियां हैं. कुछ समय बाद साल 2010 में राज्य सरकार ने कुछ खास मुस्लिम वर्गों के लिए 4% आरक्षण लागू किया. लेकिन, अदालत ने इसे भी ये कहते हुए रद्द कर दिया कि आरक्षण देने से पहले सही से सर्वे नहीं किया गया.
वहीं दूसरी तरफ, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने 2004 के एक मामले में ये फैसला सुनाया था कि मुस्लिम एक समूह के तौर पर सामाजिक तौर पर दिए जाने वाले विशेषाधिकार के हकदार हैं. हां, ये तभी हो सकता है जब वो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग में आते हों. कोर्ट ने ये भी कहा था कि मुस्लिम समुदाय या उनके किसी खास तबके को सामाजिक आरक्षण देना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है.
क्या धर्म के आधार पर दिया जा सकता है आरक्षण?
संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत धर्म, जाति, रंग, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा और सरकारी नौकरियों में सभी लोगों को बराबर मौके मिलेंगे. मतलब कि धर्म के आधार पर किसी भी समुदाय को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है.
संविधान में अल्पसंख्यकों और पिछड़े समुदायों के लिए अलग-अलग अधिकार हैं. अगर किसी भी धर्म का कोई भी व्यक्ति इन अधिकारों के तहत आता है तो उसे अल्पसंख्यक या पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण मिल सकता है. लेकिन केवल धर्म के आधार पर पूरे समुदाय को आरक्षण देने का अधिकार संविधान में नहीं है.