झुग्गी मुक्त नहीं हो सका भोपाल शहर ?

दो हजार करोड़ खर्च, फिर भी झुग्गी मुक्त नहीं हो सका भोपाल शहर
पीएम आवास योजना के तहत दिए जा रहे मकान, फिर भी स्थिति ज्यों की त्यों। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में बसी झुग्गी बस्तियों में लगभग सात लाख से अधिक परिवार निवास करते हैं।
  1. सरकारी आवास 350 वर्गफीट का होता है, जबकि झुग्गी में 1000 से 1500 वर्गफीट की जमीन घेरी हुई होती है।
  2. स्थानीय जनप्रतिनिधि वोट बैंक की राजनीति के तहत झुग्गी विस्थापन का विरोध करते हैं।
  3. सामूहिक तौर पर झुग्गी क्षेत्र को खाली करवाकर शिफ्टिंग करना चाहिए।
 भोपाल। प्रदेश की राजधानी को झुग्गी मुक्त बनाने के लिए नगर निगम, जिला प्रशासन द्वारा बीते एक दशक से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पा रही है। दरअसल, झुग्गी बस्ती के रहवासियों को मकान तो मिल जाते हैं लेकिन वह अपना पुराना कब्जा नहीं छोड़ते हैं। इस वजह से झुग्गी बस्ती खत्म होने की बजाय तेजी से बढ़ती जा रही है।
बता दें कि एक दशक में शासन द्वारा झुग्गी बस्ती खत्म करने के लिए दो हजार करोड़ रुपये की राशि खर्च की जा चुकी है। इसके लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान देने का काम निरंतर किया जा रहा है। बता दें कि शहर के विभिन्न क्षेत्रों में बसी झुग्गी बस्तियों में लगभग सात लाख से अधिक परिवार निवास करते हैं।
डेढ़ हजार एकड़ जमीन पर 388 झुग्गी बस्ती
शहर के लगभग डेढ़ हजार एकड़ जमीन पर 388 झुग्गी बस्तियां बसी हैं। इनमें रोशनपुरा बस्ती, बाणगंगा, भीमनगर, विश्वकर्मा नगर, राहुल नगर, दुर्गा नगर, बाबा नगर, अर्जुन नगर, पंचशील, नया बसेरा, संजय नगर, गंगा नगर, बापू नगर, शबरी नगर, ओम नगर, दामखेड़ा, उड़िया बस्ती, नई बस्ती, मीरा नगर, ईदगाह हिल्स जैसी कुल 388 बस्तियां हैं। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी जीपी माली ने बताया कि निगम व जिला प्रशासन को सबसे पहले नई झुग्गियों पर रोक लगाना चाहिए। इनके बनते ही तुरंत हटाने की व्यवस्था हो। संबंधित क्षेत्र के अधिकारी-इंजीनियर की जिम्मेदारी तय कर देना चाहिए। झुग्गी विकसित होने पर कार्रवाई की जानी चाहिए। सामूहिक तौर पर झुग्गी क्षेत्र को खाली करवाकर शिफ्टिंग करना चाहिए।
इस वजह से खत्म नहीं हो रहीं झुग्गियां
– सरकारी आवास परिवार के प्रमुख सदस्य के नाम आवंटित कराने के बावजूद परिवार के कुछ सदस्य झुग्गी नहीं छोड़ते हैं। यदि निगम आवास आवंटन के बाद झुग्गी तोड़ भी देता है तो उसी क्षेत्र में अन्य किसी सरकारी जगह पर झुग्गी तान ली जाती है।
– सरकारी आवास 350 वर्गफीट का होता है, जबकि झुग्गी में 1000 से 1500 वर्गफीट की जमीन घेरी हुई होती है। बड़े मकान को छोड़कर पक्के आवास में जाना पसंद नहीं किया जाता।
– स्थानीय जनप्रतिनिधि वोट बैंक की राजनीति के तहत झुग्गी विस्थापन का विरोध करते हैं। ऐसे में पक्का आवंटित आवास किराए पर चलवा दिया जाता है और परिवार वहीं झुग्गी में रहता है।
सफल नहीं हुईं करोड़ों की योजनाएं
– राजीव आवास योजना के तहत ईडब्ल्यूएस आवास बनाने 700 करोड़ रुपये का बड़ा बजट खर्च किया गया। स्थिति ये है कि भानपुर में इन योजना के अधिकांश आवास खाली पड़े हैं।
– जेएनएनआरयूएम के तहत 800 करोड़ रुपये से शहरी गरीबों के लिए आवास बनाने का काम हुआ। शहरभर में 18 से अधिक जगहों पर आवास बनाने का दावा किया, लेकिन झुग्गी क्षेत्र खत्म नहीं हुए।
– प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अब डेढ़ हजार करोड़ रुपये से अधिक राशि से काम किया जा रहा है। यहां तय समय से दो वर्ष देरी से काम चल रहा है।
वर्ष 1984 में पहली बार चला था अभियान
– 1984 में अर्जुन सिंह सरकार ने पहली बार अभियान चलाया।
– 2004 में बाबूलाल गौर ने झुग्गियों के री-डेंसीफिकेशन की योजना बनाई।
– 2015 में शिवराज सिंह चौहान सरकार में पीएम आवास योजना की शुरुआत हुई और शहर में पक्के मकान व पट्टे देने का अभियान शुरू हुआ।
Bhopal News: दो हजार करोड़ खर्च, फिर भी झुग्गी मुक्त नहीं हो सका भोपाल शहरईदगाह हिल्स क्षेत्र में पहाड़ी पर स्थित झुग्गी बस्ती….
शहर में झुग्गी बस्तियों का जाल
-1500 एकड़ जमीन घेर रखी है 300 बस्तियों ने।
– 5000 रुपये प्रति स्क्वायर फीट औसतन कीमत।
– 20 करोड़ से अधिक एक एकड़ की कीमत।
शहर में पहले शासकीय भूमि पर बसी झुग्गियों को समय-समय पर विस्थापन की कार्रवाई की जाती है। हाल ही में भदभदा बस्ती के 386 परिवारों को विस्थापन का काम किया जा रहा है। इससे पहले भी परिवारों को विस्थापित कराया गया है। आगे भी शहर को झुग्गी मुक्त कर लोगों को पक्के आवास आवंटित करने का सिलसिला जारी रहेगा।
– कौशलेंद्र विक्रम सिंह, कलेक्टर, भोपाल

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