D-कंपनी से लेकर साइबर माफिया का एक और रूप अब तेजी से फल-फूल रहा है  ?

 D-कंपनी से लेकर साइबर माफिया तक: संगठित अपराध की एक लंबी कहानी
एक समय था जब मुंबई में दाऊद इब्राहिम की D-कंपनी का खौफ था. ये गैंग फिल्म स्टार्स से रंगदारी वसूलने और लोगों को गोलियों से भूनने के लिए बदनाम था. मगर अब चीजें बदल चुकी हैं.

भारत में संगठित अपराध का लंबा इतिहास रहा है और ये एक गंभीर समस्या भी है. 19वीं शताब्दी की शुरुआत में डकैत सबसे शक्तिशाली संगठित अपराध समूहों में से एक हुआ करते थे. वे गांव-कस्बों पर अपना कब्जा करके व्यापारियों से लूटपाट करते थे और आम लोगों में अपना डर बनाए रखा करते थे.

90 के दशक की शुरुआत में माफिया राज भारत के शहरों में उभरने लगा. उन्होंने वेश्यावृत्ति, जुआ, फिरोती मांगना और तस्करी जैसे अवैध व्यवसायों पर अपना नियंत्रित किया. 21वीं शताब्दी में धीरे-धीरे माफिया राज तो कम होने लगा और साइबर अपराध उभरने लगा.  

संगठित अपराध आज भी होता है बस इसका तरीका बदल गया है. आज अपराधी ऑनलाइन लोगों से धोखाधड़ी करके समूह में लूटपाट करते हैं. इस स्पेशल स्टोरी में आप शुरुआत से लेकर अबतक की संगठित अपराध की पूरी कहानी समझेंगे.

पहले समझिए क्या होता है संगठित अपराध
संगठित अपराध समाज का एक ऐसा जख्म है, जो बहुत ही सोच-समझकर किया जाता है. ये अकेले किए जाने वाले अपराधों से अलग है. चोर-उचक्के या गुंडागर्दी जैसे मामलों को संगठित अपराध नहीं गिना जाता है.

संगठित अपराध वो होता है जहां अपराधियों का एक पूरा गिरोह मिलकर किसी साजिश को अंजाम देता है. ये लोग मिलकर कोई भी ऐसा काम कर सकते हैं, जिससे उन्हें फायदा हो. संगठित अपराध करने वाले गिरोहों के बारे में पूरी जानकारी जुटा पाना मुश्किल होता है. क्योंकि ये लोग अपना काम बहुत ही चालाकी से छिपकर करते हैं. ये गिरोह कई तरह के अपराध करते हैं. जैसे ड्रग्स बेचना, हथियारों की तस्करी, लोगों को धमकाना और उनसे पैसा वसूलना.

कैसे शुरू हुआ भारत में संगठित अपराध
1970 के दशक में भारत में शाहीर इब्राहिम कस्कर और दाऊद इब्राहिम ने मिलकर एक बड़ा आपराधिक गिरोह खड़ा किया. इनके साथ छोटा शकील, टाइगर मेमन, याकूब मेमन, अबू सलेम और फजलुर रहमान जैसे गुंडे भी शामिल थे. ये गिरोह कई तरह के गैरकानूनी धंधों में लिप्त था, जिनमें खूनी खेल, जबरन वसूली, तस्करी, नशे का कारोबार और आतंकवाद भी शामिल था.

दाऊद इब्राहिम उस वक्त बशू दाडा नाम के एक बड़े तस्कर के लिए काम करता था. ये बशू दाडा दाऊद के पिता का अच्छा दोस्त था, जो खुद एक पुलिस वाले थे. लेकिन कुछ समय बाद बशू दाडा और दाऊद की आपस में लड़ाई हो गई. हुआ ये कि बशू दाडा ने दाऊद के पिता के बारे में कुछ गलत बोल दिया. 1976 में दाऊद ने अपने सात साथियों और अपने बड़े भाई शाहीर इब्राहिम कस्कर के साथ मिलकर बशू दाडा पर खाली सोडा की बोतलें फेंकीं. ये बॉम्बे (अब मुंबई) के गैंगवार के इतिहास में पहली बार हुआ था.

इस घटना के बाद बशू दाडा के खास गुर्गे खालिद पहलवान ने दाऊद को तस्करी का धंधा शुरू करने के लिए मना लिया. यही वो वक्त था जब D-कंपनी की शुरुआत हुई. खालिद पहलवान की मदद से दाऊद और उसका बड़ा भाई शाहीर तस्करी करने लगे. फिर इनका मुंबई के उस वक्त सबसे बड़े गिरोह पठान गैंग से टकराव हो गया. 1986 तक D कंपनी ने पठान गैंग के ज्यादातर बड़े नेताओं को खत्म कर दिया और खुद मुंबई का सबसे ताकतवर गिरोह बन गया.

मुंबई बम धमाकों और 2G स्पेक्ट्रम घोटाले से डी-कंपनी का कनेक्शन
ये डी-कंपनी का ही तो गिरोह है जिसने 1993 के मुंबई बम धमाकों में दहशत फैला दी थी. इतना बड़ा गुनाह, मगर सजा पाने वाले कुछ ही गिने-चुने लोग. 1997 में टी-सीरीज के फाउंडर और बॉलीवुड म्यूजिक प्रोड्यूसर गुलशन कुमार की हत्या के पीछे भी डी-कंपनी के ही पुराना साथी अबू सलेम और फजलुर रहमान का हाथ था. 

2011 में भारतीय खुफिया एजेंसियों को ये शक हुआ कि दाऊद की कंपनी 2G स्पेक्ट्रम घोटाले में भी शामिल है. शाहिद बलवा की DB रियल्टी और DB एतिसालात (पहले Swan Telecom) कंपनियों का कनेक्शन D-कंपनी से हो सकता है. उसी साल मार्च में दिल्ली में सीबीआई हेडक्वार्टर की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई थी, क्योंकि ये अंदेशा था कि D-कंपनी 2G स्पेक्ट्रम मामले से जुड़े दस्तावेजों को खत्म करने के लिए CBI दफ्तर पर हमला कर सकती है. 

डी-कंपनी की दशहत का साया आज भी कायम!
साल 2015 में अमेरिका की संसद की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि D-कंपनी करीब 5,000 गुंडों वाला एक बड़ा अपराध गिरोह है. ये गिरोह ज्यादातर पाकिस्तान, भारत और दुबई में एक्टिव है. रिपोर्ट के मुताबिक, D-कंपनी के पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के साथ ‘गहरे रिश्ते’ हैं. हालांकि ये रिपोर्ट सिर्फ अमेरिकी सांसदों को जानकारी देने के लिए बनाई गई थी और इसका कोई राजनीतिक मकसद नहीं था.

भारतीय जांच एजेंसियों ने भी दाऊद की फोन कॉल्स को रिकॉर्ड किया था. इन रिकॉर्डिंग्स से पता चला कि दाऊद के दुबई में किसी और के नाम पर कई जमीनें और संपत्तियां हैं. 2018 में अमेरिका की जॉर्ज मसॉन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ लुईस शेली ने बताया कि अब D-कंपनी ज्यादातर पाकिस्तान में ही एक्टिव है और उसने अपने धंधों को भी बढ़ा लिया है, कुछ उसी तरह जैसे मेक्सिको के ड्रग कार्टेल काम करते हैं.

बॉलीवुड से लेकर रियल एस्टेट तक दाऊद की पकड़
कहा जाता है कि डी-कंपनी का हाथ सिर्फ हथियारों और हिंसा तक ही सीमित नहीं है, बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री से भी उसका नाम जुड़ता रहा है. ये भी कहा जाता है कि वो रियल एस्टेट और सट्टेबाजी के धंधों में भी पैसा लगाते हैं और इनसे उनकी अच्छी खासी कमाई होती है.

दाऊद की D-कंपनी का नाम बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री, जमीन के धंधों और सट्टेबाजी से भी जुड़ता है. ऐसा माना जाता है कि कंपनी को इन धंधों से मोटा पैसा मिलता है. कई फिल्में डी-कंपनी की कहानी से प्रेरित मानी जाती हैं. जैसे- 2002 में आई फिल्म ‘कंपनी’ कुछ हद तक डी-कंपनी की कहानी पर आधारित मानी जाती है. इसी तरह 2005 में आई फिल्म ‘डी’, 2007 की ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ और 2010 की ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ भी कुछ-कुछ डी-कंपनी की कहानी बताती है.  

1980 के दशक में जब मुंबई आर्थिक परेशानियों से जूझ रहा था, डी-कंपनी ने इसका फायदा उठाकर सोने और चांदी की तस्करी कर मोटा पैसा कमाया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, उस वक्त भारत में जितना सोना और चांदी बाहर से आता था, उसका करीब 25-30% डी-कंपनी ही तस्करी करके लाती थी. इस तरह उन्होंने बाजार पर कब्जा कर लिया और दाऊद इब्राहिम पूरे भारत में सोने और चांदी की कीमत खुद तय करने लगा.

भारत में कैसे कमजोर पड़ी D-कंपनी
आज मुंबई में D-कंपनी की दखल बहुत कम हो गया है. ये गिरोह अब सिमट कर जमीन और प्रॉपर्टी के धंधों में ही रह गया है. डी-कंपनी के मुंबई में कमजोर होने की एक बड़ी वजह ये है कि दाऊद की बहन हसीना पारकर की मौत हो गई. ये गैंग की सबसे ताकतवर नेताओं में से एक थी. साथ ही नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (NIA) और मुंबई पुलिस ने भी इनकी पहुंच और दबाव को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई है.

पहले NIA और फिर मुंबई क्राइम ब्रांच ने छोटा शकील के साले सलीम कुरैशी (उर्फ फ्रूट) और आरिफ शेख (उर्फ आरिफ भाईजान) को पकड़ा. साल 2014 में हसीना पारकर की मौत के बाद ये दोनों ही डी-कंपनी का नेटवर्क चला रहे थे.

भारत में साइबर माफिया 
एक और अपराध अब तेजी से फल-फूल रहा है, जिन्हें साइबर माफिया कहा जाता है. ये लोग बंदूकें और चाकू नहीं, बल्कि कंप्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल करके अपना काला धंधा चलाते हैं. डी-कंपनी के पतन के बाद साइबर माफिया भारत में सबसे बड़ा खतरा बन गया है. 

साइबर क्राइम का मतलब उन सारे अवैध कामों से है जो डिजिटल डिवाइस या इंटरनेट के जरिए किए जाते हैं. ये गुनाह करने के लिए अपराधी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं. ये ऑनलाइन फ्रॉड करते हैं, लोगों की पहचान चुरा लेते हैं, जरूरी जानकारी चुरा लेते हैं, कंप्यूटर में घुसकर वायरस डाल देते हैं और तरह-तरह के जालसाजी करके लोगों को ठग लेते हैं. ये नुकसान सिर्फ पैसों का ही नहीं करते, बल्कि लोगों की इज्जत को भी ठेस पहुंचाते हैं और उन्हें मानसिक परेशानी भी देते हैं.

अगले 10 सालों में सबसे बड़े 10 खतरों में से एक
ये साइबर माफिया सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहा है. वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की 2023 की रिपोर्ट में भी बताया गया है कि साइबर अपराध दुनिया के सामने अगले 10 सालों के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है. अगर साइबर अपराध को किसी देश की अर्थव्यवस्था माना जाए, तो ये दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाती है.

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2024 में दुनियाभर में साइबर अपराधों की वजह से 9 हजार करोड़ डॉलर से भी ज्यादा का नुकसान हो सकता है. ये भी डरावनी बात है कि ज्यादातर मामलों में इन साइबर अपराधियों को पकड़ना या सजा दिलवाना बहुत मुश्किल होता है. कई बार तो ये गुप्त जानकारी चुरा लेते हैं या फिर उसे सार्वजनिक कर देते हैं, जिससे लोगों की प्राइवेसी भी खतरे में पड़ जाती है. 

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