एमडी ड्रग्स के सारे केमिकल हों तो लैब में ही बना सकते हैं ?
एमडी ड्रग्स के केमिकल बाजार-स्कूल में उपलब्ध ….
एमडी ड्रग्स के सारे केमिकल हों तो लैब में ही बना सकते हैं, पुलिस भी इन्हें नहीं पकड़ सकती
जानकारों का कहना है कि इन केमिकल के जरिये फैक्ट्री में कैटेलिस्ट (उत्प्रेरकों) के इस्तेमाल से पहले लिक्विड मेफेड्रोन और फिर क्रिस्टल और पाउडर फॉर्म में एमडी ड्रग्स बनाई जा रही थी। इसके लिए सिंथेसिस एप्रेटर का इस्तेमाल किया जाता था। यह कैप्सूलनुमा मशीन होती है, जिसके अंदर विभिन्न तापमान पर अलग-अलग रसायनों को मिलाकर फॉर्मूले तैयार किए जाते हैं।
एमडी ड्रग्स को लेकर दैनिक भास्कर टीम ने बुधवार को विभिन्न अनुसंधान केंद्रों के वरिष्ठ वैज्ञानिकों से बात की। इसमें चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। नाम न छापने की शर्त पर वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि एमडी ड्रग्स बाजार में बड़ी मात्रा में बेचा जा रहा है तो यह सिंथेसिस (लैब में तैयार किया हुआ) ही होगा।
कुछ फ्लोर क्लीनर, कुछ स्कूल लैब में इस्तेमाल होते हैं
- लिक्विड मेफेड्रोन दुर्लभ है। एनडीपीएस एक्ट के तहत बैन है। मूल स्रोत पूर्वी अफ्रीका में है, जहां यह खेत नामक पेड़ में मिलता है। लैब में कई उत्प्रेरकों के जरिये इसे सिंथेसिस करते हैं। अधिक इस्तेमाल से मौत हो सकती है।
- ब्रोमीन : एक कृषि रसायन है। बाजार में 300 रु./लीटर में आसानी से उपलब्ध। उत्प्रेरक के रूप में इस्तेमाल होता है।
- एसिटोन : सॉल्वेंट जैसा है। उन कंपोनेंट्स को भी आसानी से मिला देता है, जिनकी तासीर बिल्कुल विपरीत है। बाजार में 150 से 200 रु./लीटर में उपलब्ध है।
- एचसीएल : हाइड्रोक्लोरिक एसिड है। स्कूलों की लैब में भी इस्तेमाल होता है। बाजार में कीमत 220 से 250 रु./ लीटर है।
- सोडियम कार्बोनेट : बाजार में 100 रु./किलो तक में उपलब्ध।
- टॉल्विन : रिएक्शन जल्दी करता है, लेकिन पानी में घुलता नहीं है। ऑनलाइन वेबसाइटों पर भी उपलब्ध है। बाजार में कीमत 110 से 120 रु./लीटर।
- मेथेलामिन हाइड्रो क्लोराइड : एंटी बैक्टीरियल का काम करता है। कीटनाशक व पेंट के थिनर में भी इस्तेमाल होता है। बाजार में कीमत 350 से 400 रु./किलो है।
पुलिस कमिश्नर बोले- एसओपी बनानी होगी, नियमित जांच करनी होगी
गोदाम में हमें जो केमिकल मिले हैं, वे शेड्यूल्ड ड्रग्स नहीं हैं, बल्कि औद्योगिक रसायन हैं। इन्हें पुलिस भी नहीं पकड़ सकती है। इन्हीं रसायनों को प्रोसेस कर ड्रग्स बनाया जा सकता है। ऐसे मामलों को रोकने के लिए एसओपी बनाने की आवश्यकता है। इसके तहत फैक्ट्रियों की नियमित जांच हो, जिसमें एक्सपर्ट के साथ ही इंडस्ट्री और अन्य एजेंसियां भी शामिल रहें। इससे ड्रग्स बनाने से रोका जा सकता है।’ -हरिनारायणचारी मिश्रा, पुलिस कमिश्नर, भोपाल